जीवन एक निरंतर चलने वाली यात्रा है, जहां हर व्यक्ति आगे बढ़ने और सफलता पाने की इच्छा रखता है, लेकिन आज की भाग-दौड़ भरी दुनिया में सबसे बड़ी गलती जो हम करते हैं, वह है दूसरों से अपनी तुलना करना। हम सोचते हैं कि किसी के पास ज्यादा पैसा है, किसी की नौकरी बेहतर है, किसी का घर बड़ा है, किसी की लोकप्रियता अधिक है। और इन सबके बीच हम खुद को छोटा महसूस करने लगते हैं। यह प्रवृत्ति हमारी खुशी को खत्म कर देती है, आत्मविश्वास को तोड़ देती है और हमारे विकास को रोक देती है।

वास्तविकता यह है कि हर व्यक्ति की परिस्थितियां अलग होती हैं। किसी के पास जो है, वह उसके प्रयासों और किस्मत का मिला-जुला परिणाम है। हमारा जीवन, हमारी कहानी, हमारे अवसर बिल्कुल अलग हैं। फिर क्यों हम अपनी तुलना उनसे करें? यह ऐसा ही है जैसे आम और सेब की तुलना करना। दोनों फल अच्छे हैं, लेकिन अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ। ठीक उसी तरह हम सब अलग हैं, अपनी अनूठी पहचान के साथ। इसलिए यह समझना जरूरी है कि तुलना की आदत हमें आगे नहीं ले जाएगी, बल्कि यह हमें मानसिक रूप से कमजोर करेगी। जब हम खुद को दूसरों के मानकों से मापते हैं, तो हम अपनी क्षमता को अनदेखा कर देते हैं। इसके बजाय अगर यह ठान लें कि हमें सिर्फ खुद से प्रतिस्पर्धा करनी है, तो हमारी सोच और हमारा जीवन दोनों बदल जाएंगे।

सोशल मीडिया ने तुलना की बीमारी को और बढ़ाया

खुद से प्रतिस्पर्धा करने का मतलब है कि हर दिन हमें अपने पिछले दिन से बेहतर बनना है। यही असली विकास है। जब हम दूसरों से नहीं, बल्कि खुद से मुकाबला करते हैं, तो हमारी ऊर्जा सही दिशा में लगती है। तुलना में जो समय और मानसिक शक्ति हम बर्बाद करते हैं, वह हमारी प्रगति को रोकती है। लेकिन जब हम खुद को सुधारने पर ध्यान देते हैं, तो हर दिन हमारे लिए नई सफलता लेकर आता है। यह सोच हमें आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाती है। उदाहरण के लिए, अगर आज हमने कल से एक नया शब्द सीखा है, एक अच्छी आदत अपनाई है, एक गलती सुधार ली है, तो यह भी एक जीत है। यह जीत दुनिया को दिखाने के लिए नहीं, बल्कि खुद के विकास के लिए होती है। यही छोटी-छोटी जीत मिलकर बड़ी सफलताएं बनाती हैं।

रिश्तों को संभालने के लिए केवल भावनाओं से नहीं समझदारी भी है आवश्यक

आज के समय में सोशल मीडिया ने तुलना की बीमारी को और बढ़ा दिया है। हम किसी की सफलता की तस्वीर देखते हैं और तुरंत खुद को कमतर समझने लगते हैं। मगर यह याद रखने की जरूरत है कि सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाला जीवन अधूरा सच है। वहां सिर्फ चमक है, संघर्ष नहीं। जो मेहनत, जो असफलताएं, जो दर्द उस सफलता के पीछे है, वह कोई नहीं दिखाता। इसलिए उन तस्वीरों को देखकर अपनी कीमत आंकने की कोशिश में नहीं लग जाना चाहिए। असली मूल्यांकन तभी होगा जब हम खुद से पूछेंगे कि ‘क्या आज मैं कल से बेहतर हूं?’

हर दिन अपने लिए तय किए जा सकते हैं छोटे-छोटे लक्ष्य

विडंबना यह है कि सोशल मीडिया जिस तरह का संजाल रचता है, उसमें सबसे पहले इसी बात पर चोट पहुंचती है कि हमारी सोचने की प्रक्रिया बाधित होती है। इसके बाद हम किसी बात पर वस्तुपरक तरीके से मूल्यांकन कर पाने में सक्षम नहीं रह जाते। हर मसले पर यह देखने और अपेक्षा करने में मशगूल हो जाते हैं कि हमारे सामने क्या है और उसमें से क्या हमारे पास नहीं है। इसी क्रम में जब हम इस भाव में थोड़ा ज्यादा डूब जाते हैं, हर वक्त इस पर गौर करने लगते हैं कि सामने के पास जो है, वह हमारे पास होना ही चाहिए, तो यह हमारे भीतर उसे पाने की प्रतिस्पर्धा पैदा करने के बजाय एक प्रकार की हीन भावना भरती है। हम खुद को सामने वाले से कमतर समझने लगते हैं। सवाल है कि आखिर इस तरह तुलना हमें कहां लेकर जाएगी।

अब फिल्टर लगाकर सोशल मीडिया पर चिपकाई जाती है चेहरे की मुस्कान, बिना किसी उपलब्धि के भी खुश रहना एक कला

खुद से प्रतिस्पर्धा करने का यह सिद्धांत अपनाने के लिए कुछ सरल आदतें अपनानी होंगी। हर दिन अपने लिए छोटे-छोटे लक्ष्य तय किए जा सकते हैं। मसलन, आज तीस मिनट पढ़ना है, एक नया कौशल सीखना है, या किसी से प्यार से बात करनी है। दिन के अंत में खुद से सवाल करना चाहिए कि ‘क्या मैंने आज अपने लक्ष्य पूरे किए?’ अगर जवाब हां है, तो हम जीत गए। अगर नहीं, तो कल और बेहतर करने का प्रयास कर सकते हैं। यही निरंतरता हमें उदार और बड़ा बनाएगी। दूसरों की सफलता से प्रेरणा लेना गलत नहीं है, लेकिन प्रेरणा और तुलना में फर्क है। प्रेरणा हमें आगे बढ़ने की ताकत देती है, जबकि तुलना हमें पीछे धकेलती है। इसलिए दूसरों को देखकर जलने के बजाय उनसे सीखना चाहिए और खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

खुद से हार जाना सबसे बड़ी हार

याद रखने की जरूरत है कि जीवन की सबसे बड़ी जीत तब होती है, जब हम खुद को जीत लेते हैं। खुद से हार जाना सबसे बड़ी हार है और खुद पर जीत हासिल करना सबसे बड़ी विजय है। जब हम हर दिन खुद को सुधारते हैं, तो हमें न किसी से जलन होती है, न किसी को नीचा दिखाने की जरूरत। तब हम संतोष, आत्मविश्वास और खुशी से भर जाते हैं। तो बहुत सोचने के बजाय आज से यह संकल्प लिया जा सकता है कि अब तुलना नहीं, सिर्फ प्रगति पर गौर किया जाएगा। अब दूसरों को नहीं, खुद को जीतना है। हर दिन खुद को कल से बेहतर बनाना है। यही जीवन का असली मंत्र है, यही सफलता का सबसे सुंदर रास्ता है।