अक्सर लोग अपनी आराम-तलब जीवनशैली को अपने सुख से जोड़ लेते हैं। वे अपनी पैतृक संपत्ति, जमीन-जायदाद आदि को स्थायी मानकर बैठे-बिठाए जीवन बिताने को रईसी और शान का प्रतीक समझते हैं। ऐसे लोग प्राय: मलूक दास की यह पंक्ति दोहराते मिल जाते हैं- ‘अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।’ जबकि इन पंक्तियों में यह अर्थ छिपा है कि अत्यधिक संपत्ति इकट्ठा करने, लालच करने और सदैव ऐश्वर्य प्राप्ति की चिंता में घुलते रहने से व्यक्ति के जीवन की सच्ची शांति खो जाती है। कुदरत ने सभी के जीने के लिए राहें बनाई है। हमारा काम अपना कर्तव्य निभाते हुए हुए उन राहों पर चलना है। यह सही है कि खुशियां न तो सिर्फ काम-काम या पैसा-पैसा करने से मिलती है और न ही सब कुछ छोड़कर आराम करने से। बल्कि जिंदगी की खुशियों के लिए काम और आराम के बीच सही संतुलन की आवश्यकता है।
कुछ वर्ष पहले महामारी की मार समाज के हर तबके पर किसी न किसी रूप में पड़ी। लाखों लोगों ने अपनों को खोया। रोजी-रोजगार, उद्योग धंधे, सामान्य कामकाज आदि भी व्यापक रूप से प्रभावित हुए। पर इस दौरान एक महत्त्वपूर्ण बात निकलकर सामने आई, जिसने स्वास्थ्य के प्रति हमारी सोच को बदलने का काम किया। दरअसल, काल के गाल में समा चुके लाखों लोगों में समाज के कामगार, मजदूर और कृषि से जुड़े मेहनतकश लोगों की संख्या सबसे कम रही। आधुनिक आराम-तलब जिंदगी से दूर, मिट्टी से जुड़े लोग स्वास्थ्य के स्तर पर आमतौर पर सुरक्षित रहे। उनकी सक्रिय जीवन पद्धति और हर वातावरण में टिके-बचे रहने की शक्ति ने उन्हें इससे दूर रखा।
शारीरिक श्रम, जिसे ज्यादातर सक्षम और संपन्न लोग बेचारगी की दृष्टि से देखते हैं, शायद वही हमारे स्वास्थ्य की बेहतरी का रास्ता है। वर्तमान समय में अधिकांश लोग और खासकर युवा आधुनिक जीवनशैली के नाम पर आराम-तलबी के फंदे में फंसकर गंभीर बीमारियों को गले लगाते जा रहे हैं। पहले शारीरिक श्रम से जुड़े कामों और चलने-फिरने से दूर होना, फिर अपने को तंदुरुस्त और सौष्ठव बनाने और दिखाने के लिए कृत्रिम साधनों, व्यायाम केंद्रों की पनाह में जाना एक चलन बन चुका है।
आजकल छोटी से छोटी जगहों पर भी कई-कई जिम का होना और उनमें जरूरत तथा बिना जरूरत उमड़ती युवाओं की भीड़ एक सामान्य बात है। जबकि बगैर किसी जानकारी के ऐसे संसाधनों को अपनाना घातक बीमारियों को निमंत्रण देना ही है। बिना सोचे-समझे कठिन कसरत से उच्च रक्तचाप, मांसपेशियों में ऐंठन, हड्डियों में कमजोरी, मांसपेशियों को नुकसान, मस्तिष्क में हार्मोन का असंतुलन, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना जैसी बहुत सारी समस्याएं लोगों को बीमार बनाने के साथ ही काल के गाल में भी धकेल रही हैं।
छोटे-छोटे पलों में खुशी ढूंढ़ना, अच्छा महसूस करने की तलाश या तलाश में खोई जिंदगी?
आज बड़ों के साथ-साथ बच्चों में भी निष्क्रिय या गतिहीन जीवनशैली आम हो चुकी है। बच्चों में निष्क्रिय जीवनशैली का अर्थ है बहुत कम शारीरिक गतिविधि और लंबे समय तक बैठे या लेटे रहना। स्कूलों की अत्यधिक समय लेने वाली ऊबाऊ गतिविधियां, किताबों का बढ़ता बोझ, लगातार और बहुत अधिक स्मार्टफोन की स्क्रीन में खोए रहना, शारीरिक गतिविधियों, खेल-कूद से बढ़ती दूरी, परिवार में आपस में बढ़ती संवादहीनता और बढ़ता अकेलापन, नकारात्मक वातावरण, अस्वस्थ खान-पान आदि बच्चों से उनका बचपन छिनकर उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार बना रहा है।
अभिभावकों को लगता है कि अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रखकर, व्यक्तित्व के विकास के नाम पर उन्हें कई आवश्यक, अनावश्यक गतिविधियों से जोड़कर, उनकी गैरजरूरी बातों को भी पूरा कर, खेल-कूद की ओर उन्मुख न कर और सुख के संसाधनों का जमावड़ा लगाकर उनका भला कर रहे हैं। पर वास्तव ऐसे माता-पिता जाने-अनजाने अपने बच्चों के जीवन को गर्त में धकेल रहे हैं। उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से बीमार और कमजोर बना रहे हैं।
कामयाबी के सफर पर आगे बढ़ने के लिए दूसरों से नहीं करें तुलना, खुद से मुकाबला ही बेहतर रास्ता
बीसवीं सदी के मध्य में जेरेमी मोरिस और राल्फ पैफेनबर्गर के शोध ने शारीरिक गतिविधियों और स्वास्थ्य के संबंध को समझने की नींव रखी थी। अपने शोध में उन्होंने पाया कि शारीरिक श्रम करने वालों की तुलना में बैठकर काम करने वालों को हृदय संबंधी बीमारियों से मृत्यु दर अधिक थी। इस शोध से दिल की सेहत को बनाए रखने के लिए शारीरिक गतिविधियों के महत्त्व के प्रति लोगों की धारणा में बड़ा बदलाव आया।
आज कार्यालयों में बैठ कर काम करने वाले तमाम लोग दिन भर की व्यस्तता के बाद भी अपनी निष्क्रिय जीवनशैली के कारण स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रपट के अनुसार, दुनिया में आज ज्यादातर लोग निष्क्रिय जीवन बिता कर कई-कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। भारत में भी निष्क्रिय जीवनशैली लोगों के बीच आम होती जा रही है। जबकि शारीरिक निष्क्रियता एक बड़ी आबादी के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है। यह हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, कुछ प्रकार के कैंसर, उच्च रक्तचाप जैसी खतरनाक बीमारियों के अलावा मानसिक अवसाद का कारण भी बन रहा है।
कहा जा सकता है कि शारीरिक सक्रियता में ही बच्चे और बड़े सभी के स्वस्थ और सुखी जीवन का सार छिपा है। दैनिक जीवन के कामों में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी, पैदल चलना, टहलना, सीढ़ियां चढ़ना, मोबाइल या कंप्यूटर देखने के समय को कम से कम करना, खेलना-कूदना, योग, स्वास्थ्य लक्ष्य का निर्धारण आदि के द्वारा जीवन में शारीरिक सक्रियता का समावेश कर स्वास्थ्यकर जीवन जिया जा सकता है।