हम जी रहे हैं, क्योंकि हमें जीना है या कि जीना पड़ रहा है। जो भी हो, लेकिन कभी-कभी मन में विचार आता है कि जीवन के अंतिम सत्य से जब हमारा सामना होगा, तो क्या यह सवाल भी हमारे मन में ही रह जाएगा कि हम मनोवांछित तरीके से जी लिए या उसके अनुरूप जीना शेष रह गया! मानव जीवन की यही विडंबना है कि कोई भी आम शख्स अपने जीवन काल में ‘भरपूर जीवन जी लिए’ जैसा दावा नहीं कर सकता। हमारी हर एक आती-जाती सांस इस धरा पर हमारे अस्तित्व का ह्रास करती चली जाती है… और हम वर्ष-दर-वर्ष अपने जन्मदिन की खुशियां मनाते रह जाते हैं। इस तथाकथित मायावी दुनिया में मायाचार का बोलबाला है। ऐसे में जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है, ऐसी सोच ही हमें तमाम आकुल-व्याकुल परिस्थितियों से निजात दिला सकती है।
एक बार भी हमारे चेतन या अवचेतन मन में यह विचार नहीं आता कि पल-प्रतिपल हमारा जीवनकाल समाप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है। यों देखा जाए तो इसकी बड़ी वजह यह है कि हर कोई ‘जीते-जीते जिए ही चला जाएगा’, कुछ इसी प्रकार की भ्रमित अवस्था में रहता है। जीवन के अंतिम सत्य को सब जानते और पहचानते हैं, लेकिन आखिरी सांस तक जीने की तमन्ना मन-मयूर में हिलोरे लिया करती है। बस ऐसे ही दौर में कभी देखते ही देखते सांसें जवाब दे जाती है और हम पंचतत्त्व में विलीन हो जाते हैं। परिजन भी समय के साथ शोक की बेला से उबर जाते हैं। दरअसल, यही संसार की रीत है कि ‘जाने वाले के साथ कोई नहीं जाता’, महज कुछ दिनों का शोक और फिर देखते ही देखते सब कुछ वैसा का वैसा, जैसा कभी था।
ऐसी स्थिति में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि हम अपने जीवन मूल्य को समझें और वही करें जो सच्चे अर्थों में हमारे अंतर्मन में सुकून का कारण बनता है। वास्तव में हम जानते हैं कि हमें एक न एक दिन इस असार संसार से जाना ही है। आती-जाती सांसें चाहे जीवन के पल छीन रही हो, लेकिन हम इस तथ्य को लेकर गंभीर नहीं होते। यह मानव मात्र की दुर्बलता है कि उसके अंतरंग में जिजीविषा के भाव निरंतर बने रहते हैं। एक प्रकार से यह जीवट की निशानी है। इसके बावजूद कहीं न कहीं, किसी न किसी प्रकार मन की अतृप्त प्यास मन की मन में ही रह जाती है। ऐसे में बेहतर हो अगर हम अपने जीवन काल में ही अपनी प्राथमिकताओं को वरीयता देकर जो कुछ जहां अधूरा है, उसे पूरा करने का प्रयास करें।
छोटे-छोटे पलों में खुशी ढूंढ़ना, अच्छा महसूस करने की तलाश या तलाश में खोई जिंदगी?
इन्हीं संदर्भों में हमें जीवन के नैतिक मूल्यों के साथ ‘जीवन मूल्य’ भी निर्धारित कर लेना चाहिए। इस संसार में हर कोई कहीं न कहीं किसी न किसी पर आश्रित है। यानी हर कोई किसी अन्य पर किसी न किसी रूप में निर्भर करता है। एक-दूसरे के जीवन मूल्य परस्पर आपस में गुंथे रहते हैं। यही एक-दूसरे पर निर्भरता की स्थिति परिवार और समाज की रचना में सहायक होती है। इसका वृहद स्वरूप सकल राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति में परिलक्षित होता है। इसी आधार पर व्यक्ति में राष्ट्रीयता के भाव भी जागृत होते हैं। इससे भी आगे जाएं तो विश्व बंधुत्व की भावना भी इन्हीं अवधारणाओं से उपजी हुई मानी जा सकती है। हम अपनी धारणाओं और भावनाओं के माध्यम से अपने जीवन में अपना कार्यक्षेत्र सुनिश्चित करते हुए घर-परिवार के अतिरिक्त समाज और राष्ट्र के लिए भी अपना जीवन सार्थक सिद्ध कर सकते हैं।
जहां तक किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तिगत जीवन का प्रश्न है, तो किसी भी व्यक्ति का जीवन मात्र उसके लिए ही महत्त्वपूर्ण नहीं होता। बल्कि अन्य के लिए भी महत्त्व का होता है। इसी आधार पर मानवीयता के गुणों का समावेश भी व्यक्ति विशेष में होता आया है। आमतौर पर हर एक व्यक्ति के कुछ न कुछ सामाजिक सरोकार भी होते हैं। इन सरोकारों से जुड़ कर ही हम परस्पर सौहार्दपूर्ण संबंधों को विकसित करते हुए अपने अस्तित्व की सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं। हमें अपने लिए ही नहीं जीना चाहिए, बल्कि दूसरों के लिए भी अपने जीवन का कुछ अंश न्योछावर करते रहना चाहिए। चाहे इस अंश में समय हो या धन, लेकिन समर्पण की भावना के साथ अगर हम किसी के हित में कुछ करते हैं, तो हम निमित्त बन जाते हैं। ऐसे निमित्त बनने पर अंतर्मन में असीम आनंद की दिव्य अनुभूति से दो-चार हो सकते हैं।
आमतौर पर जिंदगी के अंतिम पड़ाव में हम लगभग थक चुके होते हैं। ऐसे में एक विचार मन में आ सकता है कि अब तक हमने क्या खोया और क्या पाया, लेकिन तब तक जिंदगी का कारवां करीब-करीब गुजर चुका होता है। ऐसी स्थिति हमारे साथ घटित न हो, इसलिए हमें समय रहते अपनी प्राथमिकताओं को सुनिश्चित करते हुए उसी मुताबिक जिंदगी की दशा और दिशा तय कर लेनी चाहिए, ताकि जीवन के अंतिम पलों में मन में यह मलाल नहीं रहे कि अगर हमें कोई और जीवन मिलता तो बहुत कुछ करते या जीवन को जीने के और तरीके खोजते। दरअसल, हम सब जीवन यात्री हैं। इसलिए यात्रा के दौरान किशोरावस्था नहीं, तो युवावस्था, युवावस्था नहीं, तो प्रौढ़ावस्था में थोड़ा रुक कर यह विचार कर लेना चाहिए कि हमारे जीवन का असल उद्देश्य क्या है!