डॉ. विनम्र सेन सिंह

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव अक्सर मीडिया के प्रति नाराजगी खुले मंचों से जाहिर करते हैं। वह पत्रकारों से उनकी जाति भी पूछ लेते हैं। हाल की एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने एक मीडिया समूह पर मानहानि का केस करने की बात भी सार्वजनिक रूप से कही है। तो अखिलेश की नाराजगी पर दो अहम सवाल उठते हैं। पहला कि खुद उनके शासनकाल में यूपी में मीडिया की क्या स्थिति थी? दूसरा, क्या अखिलेश को खुद को यानी उनकी पार्टी के कदमों को मीडिया की आलोचना से ऊपर मानते हैं?

पहले इस सवाल पर बात करते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2012 से 2017 के दौरान मीडिया की स्थिति कैसी थी? 2016 की बात है। अखिलेश शासन का चौथा साल चल रहा था। ‘Reporters Without Borders’ नाम के संगठन ने ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट’ में उत्तर प्रदेश को भारत में पत्रकारों के लिए ‘सबसे खतरनाक क्षेत्रों’ में रखा था। रिपोर्ट कहती है कि 2015 में यूपी में 4 पत्रकार मारे गए और हर महीने हमले हुए।

‘प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ (PCI) और कुछ मीडिया वॉचडॉग्स (जैसे The Hoot) ने उस समय राज्य में पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया के साथ सरकार के संबंधों पर रिपोर्ट दी थी। अखिलेश सरकार में पत्रकारों पर खतरों को लेकर इन रिपोर्ट्स में स्पष्ट चिंता जाहिर की गई थी।

पत्रकार जगेंद्र सिंह हत्याकांड और अखिलेश सरकार

अखिलेश सरकार में मीडिया रिपोर्टिंग के खतरों को शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र सिंह हत्याकांड से अच्छे से समझा जा सकता है। मामला जून 2015 का है। जगेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के एक स्वतंत्र पत्रकार थे, जो मुख्य रूप से फेसबुक पेज ‘शाहजहांपुर समाचार’ के माध्यम से स्थानीय मुद्दों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करते थे। जगेंद्र ने तत्कालीन पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राम मूर्ति वर्मा पर अवैध खनन, भूमि कब्जा और एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता से गैंगरेप जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। ये पोस्ट मई 2015 में वायरल हुईं, जिसमें जगेंद्र ने वर्मा की संपत्ति और अपराधों पर सवाल उठाए।

आरोप लगाने वाले पत्रकार के घर ही पुलिस ने मार दिया छापा

1 जून 2015 को दोपहर में पुलिस और कुछ गुंडों ने जगेंद्र के घर पर छापा मारा। परिवार के अनुसार, वे जगेंद्र को मंत्री के खिलाफ लिखने से रोकने आए थे। जगेंद्र उस समय उसी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का इंटरव्यू ले रहे थे, जिसने वर्मा पर रेप का आरोप लगाया था।

दर्द से कराहते जगेंद्र ने कहा था-मुझे जलाया क्यों?

पुलिस ने घर में घुसकर जगेंद्र को पीटा और उन पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। जगेंद्र के बेटे राघवेंद्र ने यह सब अपनी आंखों से देखा। गंभीर रूप से झुलसे जगेंद्र को पहले स्थानीय अस्पताल और फिर लखनऊ के सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में जगेंद्र ने एक वीडियो में मरते हुए बयान दिया: “मंत्री राम मूर्ति वर्मा ने मुझे मरवाया। वे मुझे पीट सकते थे, गिरफ्तार कर सकते थे, लेकिन जलाया क्यों? पुलिस इंस्पेक्टर श्री प्रकाश राय और उनके साथियों ने मुझे जिंदा जला दिया।”

यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और मामले ने राष्ट्रीय ध्यान खींचा। 8 जून 2015 को जगेंद्र की मौत हो गई। उनका शरीर 60% से ज्यादा जल गया था। मामले में जगेंद्र के बेटे राघवेंद्र की शिकायत पर FIR दर्ज हुई, जिसमें मंत्री राम मूर्ति वर्मा, इंस्पेक्टर श्री प्रकाश राय और चार अन्य (गुफरान, आकाश गुप्ता आदि) पर हत्या, साजिश और धमकी के आरोप लगे। पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया।

परिवार ने CBI जांच और मंत्री की बर्खास्तगी की मांग की। उन्होंने धरना भी दिया। अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे Committee to Protect Journalists (CPJ) और Reporters Without Borders ने स्वतंत्र जांच की मांग की। Amnesty International ने भी यूपी सरकार से निष्पक्ष जांच की अपील की।

रामगोपाल यादव बोले- केवल FIR से मंत्री को नहीं हटा सकते

इतने भयंकर विरोध के बावजूद अखिलेश सरकार ने इसे आत्महत्या बताने की कोशिश की। फोरेंसिक रिपोर्ट में कहा गया कि आग खुद से लगाई गई लगती है। एक गवाह (वही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता) ने बाद में बयान बदल लिया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने परिवार से मिलकर 30 लाख रुपये मुआवजा और दो बेटों को सरकारी नौकरी दी, लेकिन मंत्री को नहीं हटाया। राम गोपाल यादव ने कहा कि FIR मात्र से मंत्री को नहीं हटाया जा सकता। जांच राज्य पुलिस के पास रही और कोई बड़ा एक्शन नहीं हुआ।

…तो ये था मीडिया का हाल

जगेंद्र सिंह हत्याकांड की पूरी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में है। कोई भी गूगल पर सर्च करके इस केस के बारे में पूरी जानकारी हासिल सकता है। अखिलेश यादव के शासनकाल में मीडिया पर हमले का सबसे जघन्य उदाहरण था। हालांकि ऐसा नहीं है कि मीडिया पर यह आखिरी हमला था। लेकिन बाकी के हमले इतने जघन्य नहीं थे। उनकी जानकारी भी हम आगे देंगे।

विपक्ष में रहते हुए सपा ने जब मीडिया पर किए हमले

इस लेख की शुरुआत में दो अहम सवाल उठाए गए थे। दूसरा सवाल था कि क्या अखिलेश को खुद को यानी उनकी पार्टी के कदमों को मीडिया की आलोचना से ऊपर मानते हैं? तो इस सवाल का जवाब पिछले कुछ वर्षों में सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी के मामले हैं।

जब पीटे गए पत्रकार

2021 में मुरादाबाद में अखिलेश की रैली थी। जिले के एक होटल में पार्टी का ट्रेनिंग कैंप चल रहा था। इस कैंप के दौरान ही जब मीडिया के लोगों ने अखिलेश यादव से सवाल करना शुरू किया तो वह भड़क गए। उन्होंने कहा- ‘आप लोग बिके हुए पत्रकार हो, सिर्फ मुझसे ही पूछते हो, बीजेपी के क्यों नहीं पूछते।’ बताते हैं कि अखिलेश ने खुद कैमरे के सामने अपने सुरक्षाकर्मियों से कहा था कि इन्हें (पत्रकारों को) मारो। हालत यह हुई कि कई पत्रकारों ने होटल के रसोई में छिपकर अपनी जान बचाई।

सीधे पूछते हैं पत्रकारों की जाति

PDA की राजनीति को मजबूती देने का दावा करने वाले अखिलेश सीधे तौर पर पत्रकारों का सरनेम और जाति भी पूछ लेते हैं। अगर कोई उनकी खुद की जाति पूछ ले तो भड़क जाते हैं। ऐसा ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें अखिलेश पत्रकार से पूछते हैं कि जाति क्या है आपकी, OBC हो? इस पर कोई बताता है कि ‘मिश्रा’ हैं तो अखिलेश कहते हैं कि अरे मिश्रा जी! मिश्रा जी कुछ तो शर्म करो!

कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया पर इस वीडियो को देख सकता है और अखिलेश यादव के व्यंग्य को समझ सकता है। क्या अखिलेश किसी अन्य पार्टी के नेता से यह बर्दाश्त कर पाएंगे कि वह किसी पत्रकार से ‘यादव’ सरनेम की वजह से बदसलूकी करे या फिर कहे कि शर्म करो। तो फिर ‘मिश्रा’ होने पर ऐसी नाराजगी क्यों?

मीडिया समूहों के बहिष्कार का आह्वान

अप्रैल 2025 में अखिलेश यादव ने सार्वजनिक मंच से कुछ मीडिया समूहों का बहिष्कार करने की बात कही। आखिर लोकतंत्र में कोई राजनीतिक पार्टी या नेता कैसे किसी मीडिया समूह के बहिष्कार का आह्वान कैसे कर सकता है? नवंबर 2025 में भी आजमगढ़ की एक रैली और संसद सत्र के दौरान अखिलेश ने मीडिया पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया।

अखिलेश को सोचना चाहिए…

अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि वह एक लोकतांत्रिक देश के नेता हैं। किसी तानाशाही राष्ट्र में नहीं हैं। मीडिया समूहों के बहिष्कार के जरिए वे लोकतंत्र के एक पूरे स्तंभ का बहिष्कार कर रहे हैं। आलोचनात्मक मीडिया को भी राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को सकारात्मक ढंग से लेना चाहिए। अखिलेश जब मीडिया पर आरोप लगाते हैं तो उन्हें अपने शासनकाल की तरफ भी नजर घुमाकर देखना चाहिए। कई बार केवल मीडिया पक्षपाती नहीं होता, आपका नजरिया भी पक्षपाती होता है।

(नोट: लेखक विनम्र सेन सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। यह उनके निजी विचार हैं। वह राजनीतिक विश्लेषक और चिंतक के रूप में कई मीडिया समूहों में लेखन करते हैं।)