उम्मीद लेकर हमारे पास मुस्कुराते हुए पहुंचे किसी कनिष्ठ कहे-माने जाने वाले व्यक्ति से बातचीत शुरू हो और उसे शुरुआत में ही डांट-फटकार की भाषा या सख्त लहजे में कुछ कहा जाए, तो इसका सामान्य असर क्या पड़ता है? आमतौर पर होगा यही कि उस कनिष्ठ व्यक्ति का उत्साह मंद हो जाएगा और उसके चेहरे से मुस्कुराहट जाती रहेगी। उसके बाद वह बातचीत तो करेगा, लेकिन हमें वरिष्ठ मानते हुए एकतरफा तौर पर वह हमारी बात को ध्यानपूर्वक सुनेगा।
इसे एक मामूली-सा उदाहरण कहा जा सकता है, लेकिन व्यवहार में इसका महत्त्व बड़ा होता है। इस तरह के असामान्य व्यवहार से किसी के कोमल मन को गहरा दुख पहुंच सकता है। वह यह सोचने पर मजबूर हो सकता है कि सामने वाला यह बात सामान्य तरीके से भी तो कह सकता था! पता नहीं, किस कारण से उसने ऐसा किया!
छोटा हो या बड़ा, हर किसी की यह दिली ख्वाहिश होती है कि उसके साथ सम्मानजनक तरीके से बातचीत की जाए। ऐसी इच्छा रखने वाले लोग समाज में हर जगह होते हैं। चाहे घर हो या कार्यालय, सफर में हों या रेस्तरां में। एक छोटी-सी इच्छा यही रहती है कि उसे प्यार मिले, सम्मान मिले, लेकिन इसके उलट उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि अगर उनके साथ भी कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा ही करे, तब उन्हें कैसा महसूस होगा। अगर कोई कनिष्ठ व्यक्ति सम्मान और प्यार की भूख रखता है, तो वरिष्ठ माने जाने वाले लोगों की तो यह स्वाभाविक इच्छा होगी?
दरअसल, सम्मान पाने की इच्छा रखने की बात सोचना कोई बुरी बात नहीं होती।
अगर कोई व्यक्ति ऐसा सोचता है तो यह एक स्वाभाविक लालसा है। मगर हम सामने वाले को सम्मान नहीं दे पा रहे हैं और चाहते हैं कि हमें सम्मान मिलता रहे तो यह संभव नहीं हो पाता। एकतरफा कुछ भी लंबा नहीं चलता। अगर हम ऊंचे पद पर बैठे हों, तो डरा-धमका कर या किसी की मजबूरी का फायदा उठा कर सामने वाले व्यक्ति से सम्मान पाते हुए दिख भी जाएं, लेकिन यह दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं होता। यह स्थायी भी नहीं होता। जिस दिन हमारा यह पद जाएगा, सामने वाला व्यक्ति हमारा सम्मान करना बंद कर देगा। शायद इसलिए कहा जाता है कि हम इज्जत कमा सकते हैं, लेकिन किसी से छीन नहीं सकते हैं।
यों भी, इज्जत कमाना कोई आसान काम नहीं होता। इसके लिए अपने अहंकार को दरकिनार करना पड़ता है। मन को उदार बनाना पड़ता है। संकुचित सोच से दूर होना पड़ता है। अपनी अवधारणाओं पर विचार करना और जरूरी होने पर उसे तोड़ना पड़ता है। ये सब बातें व्यक्ति के भीतर तभी आ पाती हैं, जब उसके माता-पिता ने उसे इस तरह के संस्कार दिए हों या उसने अभ्यास कर खुद को इस तरह का बनाया हो। जो व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाता है, उसे सामने वालों से ढेरों शिकायतें रहती हैं। उसे लगता है कि मुझे वह नहीं मिल पा रहा है, जो मुझे मिलना चाहिए।
हालांकि इस तरह सोचते समय वह यह ध्यान में नहीं रखता है कि वह खुद भी किसी के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रहा है। वह अधिकार की बात तो सोचता है, लेकिन यह भूल जाता है कि उसके कुछ कर्तव्य भी हैं। अगर हम अपने कर्तव्य को पूरा न करें और अधिकार की ही बातें करते रहें, तो यह बेमानी हो जाता है।
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कई बार देखा जाता है कि लोग हमेशा समाज, कार्यस्थल, परिवार, कुटुंब या जीवन में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को याद करते हैं, जो सद्व्यवहार वाले हों। भले ही उस व्यक्ति से किसी के हितों की पूर्ति हो पा रही हो या नहीं। वे उसके गुणों को सराहते हैं।
ऐसे व्यक्ति जब संसार से चले जाते हैं या दोनों के बीच स्थान की भी दूरी हो जाती है, तब भी वे उसे याद करते हैं। सम्मान देने वाले को व्यक्ति अपने सुख और दुख, सब तरह की बात आसानी से बता देते हैं। यहां तक कि मालिक और नौकर के बीच में भी एक दूसरे को बराबर सम्मान देने की स्थिति होती है, तो बेहतर संबंध बन जाता है और कई बार उनका रिश्ता पिता-पुत्र की तरह का हो जाता है। दूसरी ओर, दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति केवल आलोचना के ही पात्र होते हैं। उन्हें मन से कोई पसंद नहीं करता है।
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शिक्षक, माता-पिता, वरिष्ठ जन और समाज के गणमान्य व्यक्ति हमेशा यह कहते पाए जाते हैं कि सम्मान देने से सम्मान मिलता है। अगर किसी को कुछ दे नहीं सकते हो, तो कम से कम सम्मान तो दे ही दिया जाए। इसमें कुछ लगता नहीं है। सिर्फ दो मीठे बोल काफी होते हैं। और अगर इतना भी नहीं कर सकते हैं, तो कम से कम किसी के साथ दुर्व्यवहार तो नहीं ही करना चाहिए, उसके मन को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए या उसका अपमान नहीं करना चाहिए। मनुष्य के भीतर एक मन होता है जो बहुत कोमल होता है।
उसे सुख-दुख और अच्छाई-बुराई का अनुभव होता है। किसी व्यक्ति को दुख पहुंचाने से किसी को कोई लाभ मिलता हो, ऐसा नहीं है। मगर कुछ लोगों के अहं की कैद इतनी प्रबल होती है कि वर्चस्व के मानस में जीते हुए वे इस सवाल पर सोचते भी नहीं। अगर हम किसी को सम्मान देते हैं, तो बदले में हमें सम्मान मिलता है। ऐसा करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है।
