हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और नेता विपक्ष के चयन के मामले में कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के ‘दबदबे’ को नजरअंदाज नहीं कर सका। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में जीत के तमाम बड़े-बड़े दावों के बाजवूद जब पार्टी को विधानसभा चुनाव में हार मिली थी तो तभी से यह कहा जा रहा था कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व विशेषकर राहुल गांधी भूपेंद्र सिंह हुड्डा से नाराज है।

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही नए प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष के पद पर कौन बैठेगा, इसे लेकर कांग्रेस हाईकमान माथापच्ची में जुटा था।

कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर राव नरेंद्र सिंह और नेता विपक्ष के पद पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नियुक्ति की है। राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति को हुड्डा खेमे की जीत और विरोधी खेमे के लिए झटका माना जा रहा है। इन दोनों नियुक्तियों के बाद यही कहा जा रहा है कि कांग्रेस क्या हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ‘मर्जी’ के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है?

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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के पीछे हरियाणा में पार्टी नेताओं की गुटबाजी को ही सबसे बड़ी वजह माना गया था।

हुड्डा के खिलाफ उठी थी आवाज

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ हरियाणा में कई जगह से आवाज उठी थी। पिछले कुछ महीनों में सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा, राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के खेमे नजदीक आ रहे थे। यह माना जा रहा था कि कांग्रेस इस बार प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष के पद पर हुड्डा के विरोधी खेमे के किसी नेता को बैठाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हरियाणा कांग्रेस में एक लकीर बिल्कुल साफ है। एक तरफ हुड्डा हैं जबकि दूसरी ओर कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला, चौधरी बीरेंद्र सिंह, कैप्टन अजय यादव सहित बाकी नेता आते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, हुड्डा की वजह से ही किरण चौधरी, चौधरी बीरेंद्र सिंह, अशोक तंवर, (दोनों बाद में वापस आ गए) को पार्टी छोड़कर जाना पड़ा था।

जाट-ओबीसी राजनीति का समीकरण

राव नरेंद्र सिंह को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने हरियाणा में ओबीसी राजनीति के रास्ते पर चलने की कोशिश की है क्योंकि इससे पहले पार्टी जाट और दलित का समीकरण बनाकर चलती थी। इससे पहले कांग्रेस में जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे या 2014 के बाद नेता विपक्ष की कुर्सी पर थे, तब तक पार्टी ने दलित नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इनमें फूलचंद मुलाना, अशोक तंवर, कुमारी सैलजा और चौधरी उदयभान के नाम शामिल हैं। राव नरेंद्र सिंह ओबीसी समुदाय में आने वाले यादव जाति से आते हैं। गुरुग्राम से रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिलों तक यादव समुदाय राजनीतिक रूप से ताकतवर है।

नियुक्ति होते ही शुरू हो गया विरोध

राव नरेंद्र सिंह की नियुक्ति पर कांग्रेस की ओबीसी सेल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कैप्टन अजय यादव ने विरोध जताया है। यादव ने कहा है कि कांग्रेस को अपने फैसले पर आत्म निरीक्षण करने की जरूरत है। यादव ने साफ कहा है कि राहुल गांधी चाहते थे कि हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष किसी ऐसे नेता को बनाया जाए जो युवा हो लेकिन यह फैसला बिल्कुल इसके उलट है। उनका कहना है कि इस फैसले से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल गिर गया है। कैप्टन अजय सिंह यादव को भी हुड्डा विरोधी खेमे का नेता माना जाता है।

इसके अलावा हरियाणा के पूर्व मंत्री प्रोफेसर संपत सिंह ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाने का विरोध किया है। प्रोफेसर संपत सिंह हरियाणा में छह बार विधायक रहे हैं। संपत सिंह ने कहा है कि कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले को फिर से पार्टी की कमान सौंप दी गई है। उन्होंने सीधा सवाल उठाया है कि एक साल के मंथन के बाद क्या यही बदलाव है?

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हरियाणा कांग्रेस में अहम पदों पर हुई इन नियुक्तियों से साफ है कि कांग्रेस हाईकमान हुड्डा की छाया से आगे नहीं निकल पाया है। यह बात भी सही है कि भले ही कांग्रेस हरियाणा में सरकार बनाने में कामयाब नहीं रही हो लेकिन राज्य में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं। हुड्डा हरियाणा की लगभग 25% आबादी वाले जाट समुदाय से आते हैं और 2005 से 2014 तक मुख्यमंत्री रहे हैं।

बहरहाल, हुड्डा ने विरोधी खेमे के नेताओं के साथ ही राज्य की राजनीति पर नजर रखने वाले तमाम लोगों के बीच यह संदेश पहुंचा दिया है कि कांग्रेस दरबार उनकी सियासी ताकत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। आज भी कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत है और राज्य में पार्टी के 37 में से 32 विधायक उनके साथ चट्टान की तरह खड़े हैं।

यह भी देखना दिलचस्प होगा कि हुड्डा के विरोधी खेमे के नेता अब किस तरह राज्य में अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हैं?

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