बिहार के चुनाव में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर बड़ा सेल्फ गोल किया है। क्या बोलना है, कहां बोलना है… ये एक ऐसा सवाल है जो राहुल गांधी की राजनीति के साथ चुंबक की तरह चिपक चुका है। अब बहस इस बात को लेकर नहीं है कि राहुल कितने गंभीर नेता हैं क्योंकि तमाम तरह की यात्राएं निकालकर, तमाम मुद्दों को उठाकर उन्होंने ये तो दिखा दिया है कि वे राजनीति में पूरी तरह उतर चुके हैं, लेकिन जो बात अभी भी समझ से परे है वो राहुल गांधी की बोलने की शैली, उनके शब्दों का चयन।

राहुल गांधी ने विवादित बयान दिया

बिहार के मुजफ्फरपुर में 29 अक्टूबर को राहुल गांधी एक रैली को संबोधित कर रहे थे। बात कर रहे थे यमुना सफाई की लेकिन बयान दे गए छठ पूजा पर, पीएम मोदी पर। राहुल ने कहा कि मोदी जी को यमुना से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें छठ पूजा से कोई लेना देना नहीं है। उन्हें तो सिर्फ आपके वोट से मतलब है। अगर आप कहोगे नरेंद्र मोदी जी ऐसा ड्रामा कर दो, वो वोट के लिए कर देंगे। जो भी करवाना है करवा लो। आप जाकर उनको बोलो- आप स्टेज पर आकर नाच लो, वो नाच लेंगे।

बिहारी अस्मिता, बिहारी संस्कृति भावनात्मक पहलू

राहुल गांधी का ये नाचने वाला बयान ही एनडीए के लिए नया बूस्टर डोज बनता दिख रहा है। पहले तो पीएम मोदी ने नरेटिव सेट किया था कि बिहार की जनता ‘मां का अपमान’ नहीं झेलेगी, अब राहुल के इस बयान के बाद उन्होंने कहा कि बिहार की माताएं-बहनें छठी मैया का ये अपमान बर्दाश्त कैसे करेंगी?

पीएम मोदी के इन दोनों ही बयानों में एक बात समान है- बिहारी अस्मिता, बिहारी संस्कृति और एक भावनात्मक पहलू। ये तीनों ही बातें जनता पर गहरा प्रभाव डालती हैं, इतनी ताकत रखती हैं कि कई बार असल मुद्दे दब सकते हैं।

पीएम मोदी ने महागठबंधन को लपेटे में लिया

इस बार तो जब राहुल गांधी ने ऐसा बयान दे दिया, पीएम मोदी ने पूरे महागठबंधन को लपेटे में लिया। उन्होंने कहा कि आप लोगों ने देखा है, आपका ये बेटा पूरी दुनिया में छठी मैया की जय-जयकार कराने में लगा है। दूसरी तरफ ये कांग्रेस और आरजेडी वाले हैं, ये छठी मैया का अपमान कर रहे हैं। अब आप बताइए कि क्या ऐसा अपमान, बिहार, हिंदुस्तान और मेरी माताएं जो निर्जला व्रत रखती हैं, सहन कर पाएंगी? क्या बिहार की माताएं छठी मैया का ऐसा अपमान बर्दाश्त कर पाएंगी? मुझे पता है कि छठी मैया का ऐसा अपमान बिहार का कोई भी इंसान नहीं भूलने वाला है।

पीएम मोदी की गुजरात राजनीति क्या थी?

अब पीएम मोदी की इस प्रकार की शैली हमने कहीं और भी देखी है- उनके अपने गृह राज्य गुजरात में। गुजरात में पीएम मोदी 13 साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे थे, वहां की राजनीति में भी उन्होंने दो बातों पर सबसे ज्यादा फोकस किया था- एक, गुजरात का विकास मॉडल और दूसरा रहा गुजराती अस्मिता पर गौरव।

गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी को अहसास था कि किसी को उसकी संस्कृति से जोड़कर रखना कितना जरूरी है और उसका प्रभाव भी कितना ज्यादा होता है। तभी तो मोदी ने गुजरात के सीएम के रूप में एक बार कहा था कि दिल्ली के लोग गुजरात को बदनाम कर रहे हैं, हम अपनी अस्मिता की रक्षा करेंगे।

भावनात्मक मुद्दों का कितना असर?

साल 2012 का गुजरात चुनाव भी याद करना चाहिए जब मोदी ने नारा दिया था ‘मैंने गुजरात बनाया है’। उस चुनाव में 71.3 फीसदी की अप्रत्याशित वोटिंग हुई थी। यानी कि जब इस प्रकार की भावनात्मक अपील होती है, वोट प्रतिशत बढ़ने की संभावना भी ज्यादा रहती है। पीएम मोदी ने तो गुजरात के सीएम रहते हुए वल्लभ भाई पटेल को भी एक भावनात्मक मुद्दा बना दिया था, उन्होंने उनकी अपेक्षा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताया, वे बार-बार तब सरदार को ‘गुजराती नेता’ कहा करते थे। इस तरह से उन्होंने गुजराती गर्व के साथ कई मुद्दों को जोड़ दिया था। आगे चलकर जब मोदी केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए तो उन्हें भी बीजेपी को गुजरात के गर्व, गुजरात की अस्मिता के साथ जोड़ दिया।

बिहारी अस्मिता पर दाँव

मोदी जी के पहले कार्यकाल से लेकर अब तक पीएम मोदी पर जब भी निजी टिप्पणियां की गईं उन्होंने उन्हें तुरंत गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया। पीएण मोदी ने उन पर की गयी टिप्पणियों को गुजरात का अपमान बताया। अब राज्य बदला है, लेकिन राजनीति वही चल रही है।

पीएम मोदी की मां को लेकर मंच से अपशब्द हुए, इसे सीधे सभी माताओं के अपमान से जोड़ दिया गया। इसके बाद राहुल गांधी ने नाचने वाला बयान है, उसे तुरंत छठ से जोड़ा गया और बिहारी अस्मिता, बिहारी संस्कृति से जोड़ने की कवायद हुई। ये सारे प्रयास ही बताने के लिए काफी हैं कि गुजरात की राजनीति अब बिहार में भी अपनी दस्तक दे चुकी है।

मोदी का चेहरा गुजरात में, अब बिहार में भी

वैसे देखा तो ये भी जा रहा है कि गुजरात स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स के साथ-साथ गुजरात मॉडल को भी बिहार में बेचा जा रहा है। गुजरात में चेहरे की राजनीति पर खासा जोर रहा था, तब भी मोदी को ही आगे किया गया और अब बिहार में भी मोदी को आगे किया जा रहा है। नीतीश को सीएम चेहरा घोषित किया गया है, लेकिन सच्चाई यही है कि निर्भरता एनडीए की पीएम मोदी पर है। पीएम मोदी भी जब बिहार पहुंच रहे हैं, उनका पूरा प्रयास है कि जनता उन पर विश्वास करे, उनके वादों पर अपना विश्वास दिखाए।

राष्ट्रवाद वाली रणनीति, गुजरात के बाद बिहार

गुजरात मॉडल का एक दूसरा रूप भी है जो अब हर चुनाव में बीजेपी की एक बड़ी रणनीति बन चुका है। विकास के साथ राष्ट्रवाद का तड़का। आज की बीजेपी सिर्फ हिंदुत्व पर जीवित नहीं है, पीएम मोदी ने भी खुद को कोई हिंदू हृदय सम्राट बनाने की कोशिश नहीं है। बात हिंदुत्व की होती है, लेकिन फोकस विकास पर भी दिखता है। बिहार में भी एनडीए का जो संकल्प पत्र सामने आया है, उसमें इसकी छाप साफ दिखाई देती है। सात नए एक्सप्रेस वे बनाने की बात, रेलवे नेटवर्क को विस्तार देने की कोशिश, ये सारे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स उन सपनों की उपज है जो किसी जमाने में मोदी ने गुजरात को भी दिखाए थे। उनके समर्थक मानते हैं कि उन्होंने काफी हद तक वो वहां डिलीवर भी किया।

ऐसे में बिहार को जो विकास सपना दिखाया जा रहा है, वहां पर भी गुजरात की छाप साफ दिखाई देती है। इसके ऊपर जिस राष्ट्रवाद की राजनीति पर सवार होकर आज मोदी बिहार में उतरे हैं, उसकी प्रयोगशाला भी गुजरात ही दिखाई देती है। गुजरात में ही उन्होंने खुद को एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया था, ऐसा दिखाया था कि वे कठोर निर्णय ले सकते हैं। इसके बाद केंद्र की राजनीति में आकर भी कभी सर्जिकल स्ट्राइक, कभी एयर स्ट्राइक और फिर ऑपरेशन सिंदूर जैसे मुद्दों को उठाकर उन्होंने इस राष्ट्रवाद की राजनीति को और ज्यादा धार देने का काम किया है। बिहार के चुनाव में भी वे समय-समय पर इस सियासी हथियार का भी इस्तेमाल कर ही रहे हैं।

स्थाई सरकार का दांव, नेरेटिव बिल्डिंग

बिहार चुनाव में पीएम मोदी लगातार स्थाई सरकार की बात भी कर रहे हैं, वे बिहार को लालटेन के दौर में वापस ना जने की अपील कर रहे हैं। उनका यह अंदाज भी गुजरात में ही सबसे पहले दिखा था। वे हमेशा कहां करते थे कि गुजरात को एक स्थाई सरकार की जरूरत है, ऐसी सरकार जो लंबे समय तक उनकी सेवा कर सके, अपनी सभी जनयोजनाओं को पूरा कर सके। नेरेटिव सेट किया जाता था कि अगर सरकार बदली तो विकास थम जाएगा, योजनाएं बंद हो जाएंगी। कुछ ऐसा ही नेरेटिव बिहार में भी सेट किया जा रहा है। यहां मोदी-नीतीश की जोड़ी को विकास से जोड़ा जा रहा है और राहुल-तेजस्वी को जंगलराज का प्रतीक दिखाया जा रहा है। यानी कि हर मायने में बिहार की राजनीति में गुजरात मॉडल ने अपनी दस्तक दी है, ये सफल कितनी रहती है, आने वाले दिनों में साफ होगा।