बिहार में मतदान का दिन। सात बजने वाले हैं। चैनल सुबह से मतदान केंद्रों पर कतारें लगती दिखा रहे हैं। सात बजते ही मत पड़ने शुरू हो जाते हैं। उधर दिल्ली में ‘वोट चोरी कथा’ जारी है। बताया जा रहा है कि हरियाणा के चुनाव में इतने वोट हमें मिले… इतने से हम हारे… अगर इतने वोट चोरी न किए जाते, तो हमारी सरकार बनती। अचानक एक महिला की तस्वीर दिखाई जाने लगती है कि इस एक महिला ने हरियाणा के दस मतदान केंद्रों में बाईस बार वोट डाले। जानते हैं ये कौन है? ये ब्राजील की एक माडल है। हरियाणा के चुनाव में इनका क्या काम? लेकिन इसने वोट डाला। इस तरह वोटों की चोरी की गई। सरकार की चोरी की गई। हरियाणा के एक नेता ने पहले ही कहा था कि सारी व्यवस्था है… हम ही सरकार बनाने जा रहे हैं… ‘एक्जिट पोल’ में हम जीत रहे थे… हमें ही जीतना था… ये कैसे जीत गए? वोट चोरी करके जीत गए! यही वोट चोरी माडल बिहार में अपनाया जाना है। ‘वोट चोरी बम’ फटता है और चैनलों में चर्चा का विषय बन जाता है।
वोट पड़ते रहते हैं। संवाददाता नामी सीटों के लिए मतदाताओं की लगती लंबी कतारों को दिखाते रहते हैं। वे महिलाओं की लंबी कतारों की ओर इशारा करते हैं और महिलाएं भी गजब की हैं। पूछने पर सकुचाती नहीं, सीधे बोल देती हैं। हर औरत की आवाज मे एक नई खनक है। बहुतों के लिए जो ‘मुफ्त की सौगात’ हैं, ‘रेवड़ी’ हैं, ‘रिश्वतखोरी’ हैं, ‘वोट खरीद’ है, वही इन औरतों के लिए ‘मदद’ है। एक एंकर बिहार में ‘खाजा’ के लिए प्रसिद्ध शहर में ‘खाजा’ के एक दुकानदार से सबसे प्रसिद्ध ‘खाजा’ दुकान के बारे में पूछ लेता है कि पिछले वर्षो यहां कुछ हुआ कि नहीं, तो एक कहता है कि बहुत कुछ हुआ है, तो दूसरा कहने लगता है कि कुछ नहीं हुआ है… सिर्फ ‘हिंदू मुसलमान’ हुआ है!
इसी बहसा-बहसी में ‘खाजा दुकानों’ की जाति भी खुलने लगती है और मालूम होता है कि खाजा की दुकानों में खाजा की खरीेदारी भी जाति के हिसाब से चलती है। अपनी-अपनी जाति की दुकान से ही लोग ‘खाजा’ खरीदते हैं। दुकानदारों की ऐसी दो टूक बहसा-बहसी के बावजूद लोग आपस में हंसते दिखते हैं। दूसरी ओर, जब फौज को भी जाति के नजरिए से परिभााषित किया जाता है तो एक नया मोर्चा खुल जाता है। एक चैनल पर एंकर इस पर ‘अफसोस’ जताते हुए एक पुराने फौजी अफसर से इस पर टिप्पणी करने का आग्रह करता है, तो वे अपने गुस्से को किंचित दबाते हुए बोलते हैं कि भगवान के लिए फौज को तो जातिवाद से बख्श दीजिए। फौजी की कोई जाति नहीं होती। इसीलिए हमारी फौज देश को हर तरह के संकट से बचाती आई है। अगर वहां भी ‘जाति जाति’ करेंगे तो फिर बचेगा क्या?
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चुनाव प्रचार के दौरान बिहार के एक शहर की सुबह एक बाहुबली द्वारा दूसरे बाहुबली को ‘निपटा’ दिया गया, तो हत्या के आरोप में गिरफ्तार बाहुबली को हीरो मानते हुए एक नेता ने नए लोगों को भी ‘बाहुबली’ बनने की सलाह देकर अपनी आफत बुलाई। चुनाव आयोग ने तुरंत जबाव-तलब किया। कुछ चैनलों में इसे लेकर ‘तू-तू मैं-मैं’ भी होती दिखी। ऐसे ‘बाहुबलियों’ के लिए एक चैनल ने कहा ‘फुटानीबाज’। इसी तरह एक चैनल ने बिहार के शहर-दर-शहर खाक छानने के बाद वहां स्थानीय स्तर पर प्रचलित शब्द दिया ‘गर्दा उड़ाना’। इसी बीच चुनावी खबर की भाषा में एक और शब्द जुड़ा—‘कट्टा’।
मतदान के बाद की चर्चा रेकार्ड मतदान पर अटक गई और सवाल उछलने लगे कि ये बढ़ी हुई वोटिंग किसे जिताने वाली है? क्या यह नीतीश के खिलाफ ‘सत्ता विरोधी रुझान’ का परिणाम है या कि यह ‘सत्ता समर्थन’ का परिणाम है? एक चैनल ने खबर निकाली कि पहले चरण में बिहार में भारी मतदान हुआ है जो अब तक के चुनावों के मतदान के फीसद के मामले में रेकार्ड तोड़ है। चैनलों में इतना अधिक मतदान के कारणों पर बहसें जारी रहीं, लेकिन इसी बीच एक विपक्षी मुख्यमंत्री ने बयान देकर बहसों को फिर दूसरे चरण के मतदान के अभियान की ओर यह कहकर मोड़ दिया कि कांग्रेस मुसलमान है और मुसलमान कांग्रेस है।
जाहिर है कि बिहार चुनाव में अब तक इतना खुलकर हिंदू-मुसलिम नहीं हुआ था, जितना इस बयान के बाद हुआ। एक एंकर ने कहा कि यह चुनाव का ध्रुवीकरण करना है… यह तो कांग्रेस के भविष्य के लिए भी खतरनाक है..! सत्ता प्रवक्ता कहते रहे कि हम भारी बहुमत से सरकार बनाएंगे, लेकिन एक ‘विश्लेषक’ ने सावधान किया कि बढ़ा हुआ मतदान किसी ओर भी जा सकता है। परिणामों से पहले निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी ही कही जा सकती है। मौका मिलेगा तो देखेंगे।
