कोई काम किया जाए और वह किस स्तर का रहा, उसकी गुणवत्ता क्या रही, उसमें कमियां क्या रहीं, इस पर अगर कोई राय मिले यानी ‘फीडबैक’ मिले, तो वह काम की गुणवत्ता में सुधार का एक सबसे बेहतर जरिया होता है। इस तरह की राय को हम इस लिहाज से अच्छा मानते हैं कि वह हमें अपने काम में सुधार करने और उससे कुछ बेहतर करने का मौका देती है। हालांकि कुछ लोग अहं के दायरे में सिमटे होते हैं। वे इस तरह की राय को चोट की तरह की देखते हैं। मगर सच यह है कि काम पर ईमानदार राय मिलना काम को बेहतर बनाने का सबसे कारगर उपाय है। हममें से कई लोगों के अनुभव ऐसे भी रहे होंगे कि इससे हमें अपने पेशेवर विकास में भी मदद मिली है। अन्य क्षेत्र में भी यह उतना ही उपयोगी है।

विडंबना यह है कि यह बात बहुत कम लोगों को हजम होती है। राय मिलने को अक्सर लोग नकारात्मक तरीके से लेते हैं। इसके कारण को समझने का प्रयास किया जाए, तो यह शायद हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं रही है, इसलिए लोग अपने काम को हमेशा पूरा मानते हैं और इस पर आने वाली राय को आलोचना के रूप में देखते हैं। यही वजह है कि अक्सर लोग राय देने से कतराते हैं। यह स्थिति राय देने और लेने, दोनों के लिए ठीक नहीं है। इसका हर्जाना हम सभी को भरना पड़ता है, क्योंकि इससे अपने कुछ नया सीखने और नया सोचने की संभावना को हम खुद ही खत्म कर देते हैं। जबकि अपने काम पर मिलने वाली राय को एक अवसर की तरह देखना चाहिए।

संवेदनशील नागरिक बनने की प्रक्रिया में होना चाहिए शामिल

दरअसल, हमारे किसी काम को कोई नया व्यक्ति अपने और नए नजरिए से देखता हैं। ऐसे में जो बिंदु और विचार अभी तक छूट रहे थे, उन बिंदुओं को वह उसमें शामिल करने की सलाह देता है। इससे हमारा काम और इसकी गुणवत्ता पहले की अपेक्षा और अधिक बेहतर होती है। सवाल है कि इस विकल्प को बंद क्यों करना! जिस तरह हम स्कूल में कई सारी नई बातें सीखते हैं, वैसे हमें यह भी सीखना होगा कि किस तरह से किसी इंसान के जीवन में यह मायने रखता है कि उसे एक व्यक्ति के रूप में और बेहतर बनना है। इसके सहारे व्यक्ति दूसरों के विचारों को सुनना और सम्मान देना सीखता है। हम यह सोचने के स्तर पर लोकतांत्रिक होते हैं कि कोई दूसरा व्यक्ति भी कुछ जानता है और कई दफा हमसे बेहतर जानता है। इस तरह हम समाज के एक संवेदनशील नागरिक बनने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।

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यह घर और स्कूल दोनों से ही शुरू होना चाहिए, क्योंकि इसे सीखने के लिए भी समय चाहिए। यह आने वाले समय में दोनों के लिए एक अच्छी प्रक्रिया साबित होगी। अक्सर घर-परिवार में भी यह देखने को मिलता है कि किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने पर बात लड़ाई और मनमुटाव तक पहुंच जाती है। जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। इससे हमारे आपसी संबंध भी खराब होते हैं और हमारा काम भी प्रभावित होता है। अगर हम खुले मन से इसको स्वीकार करें, तो इसका हल किया जा सकता है। पर यह सिर्फ बोलने के लिए होता है। असल में कोई सलाह देता है तो हमें उस व्यक्ति से ही चिढ़ होने लगती है। दरअसल, हमारे यहां व्यक्ति में सुधार से ज्यादा संबंधों की ज्यादा चिंता होती है।

अगर हम वास्तव में किसी के शुभचिंतक हैं या कोई हमारा हित सोचता है, तो वह हमें आगे बढ़ता हुआ देख कर खुश होगा। हमारी कमी और गलतियों के बारे में हमें बताएगा और उसमें सुधार करने की कोशिश करेगा। यह हमारे सीखने की प्रक्रिया एक महत्त्वपूर्ण चरण है। यों भी इंसान जन्म से लेकर मरने तक कुछ न कुछ नया सीखता ही रहता है और सीखना भी चाहिए। यह हमारे आगे बढ़ने और अपना बेहतर रूप सामने लाने में हमारी मदद करता है।

बेशकीमती प्रक्रिया को क्यों किया जाता है नजरअंदाज

सवाल है कि इस बेशकीमती प्रक्रिया को नजरअंदाज क्यों किया जाए। इसका खुलकर स्वागत और उस अनुरूप सुधार करना चाहिए। रही बात संबंधों की, तो इससे संबंध और मजबूत होने की संभावना बढ़ जाती है। हम सभी अपने आसपास इस तरह के अनुभवों को देखें, तो इससे हमारे रिश्ते मजबूत ही हुए हैं। हां, इसमें समय लग सकता है। एक मुश्किल यह भी है कि कई बार अपनी राय किसी खास काम पर नहीं, बल्कि उसे करने वाले व्यक्ति के बारे में दिया जाने लगता है। इससे बात और बिगड़ जाती है। इसका एक और बड़ा नुकसान यह भी है कि इससे हमारा समाज कुछ नया करने और सोचने से भी कतराने लगता है। एक समाज के तौर पर यह भी हमारे लिए हानिकारक है।

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जो नया हम अपने आसपास देख रहे हैं, उसके पीछे उन कुछ झक्की और धुन के पक्के लोगों का योगदान है, जिन्होंने असफल होने या निंदा का डर छोड़कर अपने आप को किसी काम में झोंक दिया और लगातार उस पर मिलने वाली राय या सलाह पर गौर करते हुए उस पर काम करते हैं। हर क्षेत्र में लोग सलाह लेते हैं और उसमें आवश्यक सुधार करते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इस काम के लिए अलग सलाहकार टीम को रखती हैं और अपने काम को और बेहतर बनाती हैं। अगर वह ऐसा न करे, तो ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी। यानी यह नियम हर जगह लागू होता है, बस उसे सकारात्मक रूप में लिया जाए। एक बेहतर समाज और एक बेहतर इंसान बनने की प्रक्रिया में यह एक महत्त्वपूर्ण औजार है।