राजस्थान में जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग ने हाल ही में एक अध्ययन में यह साबित किया है कि पक्षियों के घोंसले बनाने के तरीके से लेकर जानवरों के व्यवहार तक से मौसम के संकेतों को समझा जा सकता है। यह शोध ‘इंटरनेशनल जर्नल आफ एनवायरमेंटल साइंस’ में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि जानवरों के व्यवहार से अस्सी फीसद तक मौसम का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। यह अध्ययन सिद्ध करता है कि पुराने समय से चली आ रही यह पारंपरिक जानकारी जो ग्रामीणों की ओर से इस्तेमाल की जाती रही है, अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी है। उदाहरण के लिए मोर का नृत्य या कूजन मानसून की शुरुआत का संकेत देता है। इसी तरह चींटियों का भोजन इकट्ठा करना सूखा पड़ने का संकेत है।
विश्वविद्यालय के इस शोध दल का कहना है कि प्रकृति के संकेत आज भी कारगर हैं। पशु-पक्षियों के व्यवहार से मौसम का पूर्वानुमान लग जाता है। वैज्ञानिक अध्ययन में इन बातों और तथ्यों की पुष्टि हुई है। यानी इससे पुरानी प्रथाओं के वैज्ञानिक प्रमाण साबित हुए हैं। अध्ययन का निष्कर्ष है कि पशु-पक्षियों का व्यवहार आज भी मौसम के संकेत बताने में पूरी तरह सक्षम है। यह भी दावा किया गया है कि पारंपरिक ज्ञान का आज भी कोई तोड़ नहीं है। इसके संकेत आज भी वैज्ञानिक कसौटी पर खरे उतरते हैं।
यह भी बताया गया कि कैसे पुराने समय में लोग पारिस्थितिकी तंत्र के सदस्यों के व्यवहार से मौसम की भविष्यवाणी करते थे। लोमड़ी, सियार और अन्य जानवरों का व्यवहार भी इस प्रणाली का हिस्सा था। उदाहरण के लिए लोमड़ी खेतों में चूहों की संख्या को नियंत्रित करती है, जो कृषि के लिए अच्छा संकेत है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में भील, मीणा और बंजारा समुदायों के लोग अब भी पशु-पक्षियों के संकेतों का पालन करते हैं। उदाहरण के लिए लाल चींटियां जब अपने अंडे इधर-उधर ले जाती हैं, तो यह बारिश के करीब आने का संकेत होता है। यह पारिस्थितिकी तंत्र के इन जीवों की सूझबूझ को दर्शाता है, जो मौसम की सटीक जानकारी देते हैं।
राजस्थान में मारवाड़ के गांवों में भी मौसम के पूर्वानुमान के लिए आज भी प्रकृति के संकेतों का अनुसरण किया जाता है। जहां एक ओर विज्ञान ने मौसम की भविष्यवाणी के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का विकास किया है, वहीं दूसरी ओर ये पारंपरिक तरीके आज भी बड़े काम आते हैं। पशु-पक्षियों के व्यवहार में मौसम के महत्त्वपूर्ण संकेत छिपे होते हैं। यह पारंपरिक ज्ञान न केवल ग्रामीणों के लिए, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक अहम संदर्भ बन चुका है। यह पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाता है। प्राचीन समय से चली आ रही ये पद्धतियां अब आधुनिक विज्ञान के माध्यम से और अधिक प्रमाणित हो रही हैं।
पक्षियों और अन्य जीवों के पारंपरिक संकेतों के कुछ अर्थ होते हैं। सांप का पेड़ों पर चढ़ना बारिश की संभावना का पूर्वानुमान है। इसी तरह लोमड़ी की उपस्थिति खेतों में चूहों का नियंत्रण होने का संकेत देती है। मौसम के साथ जीवन से पक्षियों के संकेत भी जुड़े हुए हैं, जैसे चिड़िया अथवा गौरैया का घर में घोंसला बनाना खुशहाली और तरक्की का संकेत है।
पक्षियों की मौन होती दुनिया, जलवायु परिवर्तन की वजह से आ रही कमी
पक्षियों के मौसम के संकेत में उनकी उड़ान की ऊंचाई (कम ऊंचाई पर उड़ना बारिश का संकेत है, जबकि ऊंची उड़ानें अच्छे मौसम का संकेत देती हैं), उनकी आवाज (जैसे उल्लू का बोलना या मोर का नाचना बारिश का संकेत माना जाता है) और उनका भोजन व्यवहार (तूफान से पहले खूब खाना) शामिल है। कुछ ग्रामीण परंपराएं पक्षियों के घोंसले बनाने की जगह को भी मौसम का सूचक मानती हैं। उल्लू का चीखना और गौरैया का धूल में लोटना बारिश का संकेत माना जाता है। यदि कौवे कांटेदार पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, तो इसे बारिश कम होने की संभावना के रूप में देखा जाता है।
इसी तरह पक्षियों का आसमान में ऊंची उड़ान भरना अच्छे मौसम का संकेत होता है, यानी बारिश की कोई संभावना नहीं होती। जोड़े में उड़ने वाले कौवे भी अच्छे मौसम का संकेत देते हैं। इसी तरह तूफान से पहले पक्षी वसा जमा करने के लिए अधिक सक्रिय हो जाते हैं और खूब खाना खाते हैं। बारिश आने पर मुर्गियां बेचैन हो जाती हैं या धूल में खुद को रगड़ती हैं।
हंस की छाती की हड्डी का लाल या गहरे रंग का होना ठंडी और तूफानी सर्दी का संकेत हो सकता है। यदि सारस आकाश में गोलाकार परावलय बना कर उड़ते हैं, तो यह शीघ्र वर्षा का संकेत है। पेड़ों पर दीमक का तेजी से घर बनाना अच्छी वर्षा का संकेत है। जब पक्षी एक साथ इकट्ठा होते हैं और अपने पंख फड़फड़ाते हैं, तो मौसम में बदलाव की उम्मीद की जाती है। वहीं चातक को बारिश का पक्षी माना जाता है। इसका आगमन मानसून के मौसम का संकेत है। इस तरह पशु-पक्षियों की हरकतों को देख कर मौसम का काफी हद तक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
असल में यह हमारा पशु-पक्षियों से जुड़ा पारंपरिक ज्ञान है, जिसे हमारे पूर्वजों ने पूरा मान और सम्मान दिया है। मनुष्य लंबे समय से पशु-पक्षियों के व्यवहार को बदलते मौसमों के संकेतक के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। कई लोक कथाएं और किस्से हैं, जो बताते हैं कि पक्षियों की बढ़ती या घटती गतिविधि एक अध्याय के अंत और एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देती है।
हम में से ज्यादातर लोग इस जुड़ाव को भूल चुके हैं, लेकिन कोई भी पक्षी प्रेमी आपको सर्दियों के आखिरी नीरस दिनों में पक्षियों को रंग-बिरंगे रंग में रंगते देखने के उत्साह के बारे में जरूर बता देगा। सामान्य पक्षियों की तरह प्रवासी पक्षी भी कई अनुमान बताते हैं, जैसे ‘माकिंगबर्ड’ और ‘ब्लैकबर्ड’ का रात भर चहचहाना बताता है कि गर्म दिन आने वाले हैं। कई प्रवासी पक्षी सर्दियों के आगमन अथवा जाने के बारे में इशारा करते हैं।
केवल पर्यावरण की बात करें, तो पक्षियों का अध्ययन पारिस्थितिकी संतुलन को समझने में मदद करता है, क्योंकि वे कीट नियंत्रण, परागण और बीज प्रसार में अहम भूमिका निभाते हैं। पक्षी पर्यावरण में हो रहे बदलाव के शुरुआती संकेत देते हैं। उनकी आबादी में गिरावट आवासों के क्षरण या जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकती है।
पक्षी कीटों को नियंत्रित करते हैं, बीज फैलाते हैं और परागण में मदद करते हैं, जो मानव द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई पौधों के लिए अहम है। पक्षी मृत जीवों और कचरे को साफ करने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। पक्षियों का वैज्ञानिक अध्ययन उनके व्यवहार, प्रवास, प्रजनन और शारीरिक विशेषताओं को समझने में इंसान की पूरी तरह से मदद करता है। हमें केवल इस ज्ञान की समझ होने और इसके वैज्ञानिक प्रयोगों को पहचानने की जरूरत है।
