हम जानते हैं कि सोनिया गांधी इंदिरा गांधी की बहू हैं। हम यह भी जानते हैं कि न होतीं अगर इंदिरा गांधी की बहू, तो कभी न उनकी गिनती होती इस देश के सबसे शक्तिशाली राजनेताओं में। न होतीं इंदिरा गांधी की बहू सोनियाजी, तो न रहतीं भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल की अध्यक्ष पिछले दो दशक से। सो, क्यों जरूरत पड़ी पिछले सप्ताह इस बात को कहने की कि ‘मैं इंदिराजी की बहू हूं, किसी से नहीं डरती हूं’? इस बात को इस अंदाज में कहा इंदिराजी की इस बहू ने जैसे उनकी कोशिश थी किसी को डराने-धमकाने की। किसी को संदेश भेजने की कि मुझे सताने की कोशिश अगर की तो देख लूंगी। वास्तव में संदेश था इंदिराजी की याद इस अंदाज में दिलाने की और संदेश था प्रधानमंत्री के लिए। सोनियाजी के इस पैगाम का विश्लेषण किया जाए, तो मालूम होता है कि सोनियाजी नरेंद्र मोदी को उस समय का याद दिलाना चाहती थीं जब जनता सरकार ने इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया था 1978 में किसी मामूली गुस्ताखी को लेकर और ऐसा करके नींव रख डाली इंदिरा गांधी की राजनीतिक वापसी की।
वास्तव में बहुत बड़ी गलती की थी जनता सरकार ने, लेकिन वह समय और था, वह देश और था, वह श्रीमती गांधी और थीं, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह मामला और था। जिस मामले को लेकर सोनियाजी प्रधानमंत्री को धमकाने की कोशिश कर रही हैं उसके पहलू उलझे हुए नहीं हैं, स्पष्ट हैं। नेशनल हेरल्ड अखबार, जो दशकों से प्रचार करता आया है कांग्रेस पार्टी का, बंद होने वाला था, क्योंकि उसको पिछले कुछ दशकों से न ज्यादा लोग पढ़ते थे और न खरीदार थे इतने कि अखबार जिंदा रह सके। सो, हाल यह हुआ कि उसका घाटा नब्बे करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया था और कांग्रेस पार्टी की मदद की जरूरत पड़ गई अखबार को जीवित रखने के लिए। सो, कांग्रेस पार्टी ने नब्बे करोड़ रुपए का ऋण चुका कर मदद की नेशनल हेरल्ड की। यहां तक सब ठीक हुआ। कांगे्रस पार्टी को पूरा अधिकार था अपने इस अखबार को बचाने का प्रयास करने का। लेकिन इसके बाद जो हुआ उसमें से आती है घोटाले की वह ‘आपराधिक’ बू, जिसके कारण दिल्ली हाई कोर्ट ने तय किया कि सोनिया गांधी और उनके पुत्र को अदालत में पेश होने की आवश्यकता है, ताकि वे समझाएं कि एक राजनीतिक अखबार का व्यावसायिक इस्तेमाल कैसे हुआ!
अब सोनियाजी के प्रवक्ता और हमदर्द कहते फिर रहे हैं कि व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हुआ था और न हो सकता था, क्योंकि उनके इरादे नेक थे अखबार को खरीदने के बाद और मकसद सिर्फ था कि अखबार की संपत्ति को आम लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाए, एक ‘नॉन-प्रॉफिट’ संस्था द्वारा, लेकिन यह बात उन्होंने पहले कभी नहीं कही।
सुब्रमण्यम स्वामी ने जो केस दर्ज किया है गांधी परिवार के खिलाफ कोई तीन वर्ष पहले, उसका मुख्य आरोप यह है कि नेशनल हेरल्ड को एक निजी कंपनी द्वारा खरीदा गया था, जिसका नाम है यंग इंडियन और जिसके मालिक हैं सोनिया और राहुल गांधी। इस कंपनी के बोर्ड पर बैठाए गए हैं सोनिया गांधी के दोस्त और वफादार और यंग इंडियन का औपचारिक पता है सोनिया के खास दोस्त सुमन दुबे के घर का। इस कंपनी के कब्जे में है नेशनल हेरल्ड की तमाम संपत्ति, जिसकी कीमत स्वामी के मुताबिक पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है। स्वामी यह भी आरोप लगाते हैं कि दिल्ली में नेशनल हेरल्ड की बिल्डिंग की एक मंजिल का किराया है पचास लाख रुपए और किराए पर दे दी गई है पूरी बिल्डिंग। और इस बिल्डिंग में खुल चुके हैं कई सरकारी और निजी दफ्तर। यह सरमाया किसका है? गांधी परिवार का या कांगे्रस पार्टी का?
दिल्ली हाई कोर्ट में जब स्वामी का यह मुकदमा पहुंचा, तो जज साहब ने आदेश दिया कि सोनिया गांधी, उनके पुत्र और कंपनी बोर्ड के अन्य सदस्य पेश हों और अपनी सफाई उनके सामने रखें। पेशी अगर हो जाती चुपके से, अदालत की गरिमा को कायम रखते हुए, तो बात वहीं पर खत्म हो जाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
कानूनी मामला राजनीतिक बना दिया है न सिर्फ सोनीयाजी ने, बल्कि उनके बेटे राहुल ने भी, जिनका कहना है कि प्रधानमंत्री के दफ्तर से बदले की राजनीति की जा रही है, जिसके निशाने पर हैं वे खुद और उनका परिवार। ‘ऐसा करते हैं ये लोग, ऐसी ही है उनकी राजनीति,’ राहुलजी ने पत्रकारों से कहा। और इशारा गया उनके सांसदों को कि संसद का यह शीतकालीन सत्र भी नहीं चलने दिया जाएगा। सो, ऐसा ही हुआ और जिस जीएसटी की कांगे्रस पार्टी कहने को तो समर्थक है वह अब शायद अगले अप्रैल से नहीं लागू हो पाएगा। यानी कि गांधी परिवार की ‘इज्जत’ के लिए देश का नुकसान होता है तो होने दो, उनको क्या।
ऐसा सोनिया और राहुल गांधी अगर कर रहे हैं इस उम्मीद से कि हंगामा मच जाएगा देश भर में और उनके समर्थक सड़कों पर उतर आएंगे, तो वे किसी वहम का शिकार बने हुए हैं। आज का भारत वह नहीं है, जो इंदिरा गांधी के जमाने में था और न ही श्रीमती सोनिया गांधी को देख कर इस देश के वासियों को याद आती है उस श्रीमती गांधी की, जिन्होंने दशकों तक राज किया इस देश पर।
सच तो यह है कि कांगे्रस पार्टी की राजनीतिक विचारधारा में और उसके राजनीतिक तौर-तरीकों में सख्त जरूरत दिख रही है परिवर्तन और विकास की। सच यह भी है कि जब संसद को चलने नहीं दिया जाता है किसी न किसी बहाने, तो नुकसान होता है संसद का कम और उस राजनीतिक दल का ज्यादा, जो हंगामे करके सदन की कार्यवाही में बाधा बनता है।