कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने रविवार को आरोप लगाया कि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील इलाके से सैनिकों को पीछे ले जाना और बफर जोन बनाना भारत के अधिकारों का ‘आत्मसमर्पण’ है। उन्होंने यह भी कहा कि जब भारत सीमा पर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और दो मोर्चों पर युद्ध जैसी स्थिति है, ऐसे में रक्षा बजट में मामूली वृद्धि देश के साथ विश्वासघात है।
ध्यान रहे कि सरकार ने शुक्रवार को कहा था कि चीन के साथ हुए समझौते में भारत किसी इलाके को लेकर कहीं झुका नहीं है। एंटनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को ऐसे समय में उचित प्राथमिकता नहीं दे रही है जब चीन आक्रामक हो रहा है और पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को प्रोत्साहन जारी है। उन्होंने कहा कि सैनिकों का पीछे हटना अच्छा है, क्योंकि इससे तनाव कम होगा। लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए। एंटनी ने कहा कि 1962 में भी गलवान घाटी के भारतीय क्षेत्र होने पर विवाद नहीं था।
एंटनी ने चेतावनी देते हुए कहा कि चीन किसी भी समय पाकिस्तान की सियाचिन में मदद करने के लिए खुराफात कर सकता है। उन्होंने कहा, हम जानना चाहते हैं कि इस संबंध में सरकार की क्या योजना है। उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसा फैसला लेने से पहले सभी राजनीतिक पार्टियों से परामर्श करना चाहिए था।
एंटनी ने आरोप लगाया कि सरकार ने अपना रक्षा बजट नहीं बढ़ाया क्योंकि चीन का ‘तुष्टिकरण’ करने के लिए यह संदेश देना चाहती थी कि वह संघर्ष नहीं चाहती। चीन की तुष्टि के लिए हम उसकी शर्तों पर अपने सैनिकों को पीछे ले जाने पर सहमत हुए हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि देश चीन और पाकिस्तान की ओर से गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है। सशस्त्र बल भी रक्षा बजट में वृद्धि की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बावजूद इसके पिछले साल के संशोधित रक्षा बजट के मुकाबले इस साल बजट में मामूली वृद्धि की गई है और यह महज 1.48 प्रतिशत है। यह देश के साथ विश्वासघात है।