विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और चीन के संबंधों को पटरी पर लाने के लिये बृहस्पतिवार को आठ सिद्धांत रेखांकित किये जिनमें वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रबंधन पर सभी समझौतों का सख्ती से पालन, आपसी सम्मान एवं संवेदनशीलता तथा एशिया की उभरती शक्तियों के रूप में एक दूसरे की आकांक्षाओं को समझना शामिल है।
चीनी अध्ययन पर 13वें अखिल भारतीय सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में पिछले वर्ष हुई घटनाओं ने दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। उन्होंने साथ ही स्पष्ट किया किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से पालन और सम्मान किया जाना चाहिए और यथास्थिति को बदलने का कोई भी एकतरफा प्रयास स्वीकार्य नहीं है।
विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर स्थिति की अनदेखी कर जीवन सामान्य रूप से चलते रहने की उम्मीद करना वास्तविकता नहीं है। जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के संबंध दोराहे पर हैं और इस समय चुने गए विकल्पों का न केवल दोनों देशों पर बल्कि पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ेगा।
That is why the events in Eastern Ladakh last year have so profoundly disturbed the relationship because they not only signaled a disregard for commitments about minimising troop levels but also showed a willingness to breach peace and tranquility: EAM S Jaishankar https://t.co/rLICHPRgUN
— ANI (@ANI) January 28, 2021
पूर्वी लद्दाख गतिरोध के संबंध में जयशंकर ने कहा, “वर्ष 2020 में हुई घटनाओं ने हमारे संबंधों पर वास्तव में अप्रत्याशित दबाव बढ़ा दिया है। पिछले वर्ष (पूर्वी लद्दाख में) हुई घटनाओं ने दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि इसने (लद्दाख की घटनाओं ने) न सिर्फ सैनिकों की संख्या को कम करने की प्रतिबद्धता का अनादर किया, बल्कि शांति भंग करने की इच्छा भी प्रदर्शित की। जयशंकर ने कहा कि हमें चीन के रुख में बदलाव और सीमाई इलाकों में बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती पर अब भी कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं मिला है।
द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिये आठ सूत्रीय सिद्धांत का उल्लेख करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रबंधन पर पहले हुए समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जो समझौते हुए हैं, उनका पूर्णतया पालन किया जाना चाहिए । वास्तविक नियंत्रण रेखा का कड़ाई से पालन और सम्मान किया जाना चाहिए । यथास्थिति को बदलने का कोई भी एकतरफा प्रयास पूर्णतया अस्वीकार्य है।”
जयशंकर ने कहा कि दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए कि बहु ध्रुवीय एशिया इसका एक महत्वपूर्ण परिणाम है। उन्होंने कहा, “स्वाभाविक तौर पर हर देश के अपने अपने हित, चिंताएं एवं प्राथमिकताएं होंगी लेकिन संवेदनाएं एकतरफा नहीं हो सकतीं। अंतत: बड़े देशों के बीच संबंध की प्रकृति पारस्परिक होती है।”
उन्होंने कहा कि उभरती हुई शक्तियां होने के नाते प्रत्येक देश की अपनी आकांक्षाएं होती हैं और इन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता। विदेश मंत्री ने कहा कि सीमावर्ती इलाकों में शांति स्थापना चीन के साथ संबंधों के सम्पूर्ण विकास का आधार है और अगर इसमें कोई व्यवधान आयेगा तो नि:संदेह बाकी संबंधों पर इसका असर पड़ेगा।
चीन के साथ संबंधों पर उन्होंने कहा कि संबंधों को आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब वे आपसी सम्मान एवं संवेदनशीलता तथा आपसी हित जैसी परिपक्वता पर आधारित हों। उन्होंने कहा, “हमारे सामने मुद्दा यह है कि चीन का रुख क्या संकेत देना चाहता है, यह कैसे आगे बढ़ता है और भविष्य के संबंधों के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं।”