शिवसेना के छात्र संगठन युवा सेना ने राज्य में छात्र संघ चुनाव कराने का विरोध किया है। बता दें कि इस साल के शुरूआत में ही छात्र संघ के चुनाव की घोषणा हुई थी। उस समय भी युवा सेना ने इसका विरोध किया था। लेकिन राज्य में विधानसभा का चुनाव होने के कारण उसे कराया नहीं जा सका। अब युवा सेना इस मुद्दे को शिवसेना के सीएम उद्वव ठाकरे के सामने नए सिरे से उठाना चाहती है। राज्य में शिवसेना की सरकार बनने के बाद एकबार फिर छात्र संघ के चुनाव का मुद्दा सीएम के सामने रखने की योजना है।

25 साल बाद छात्र संघ होना था चुनाव: बता दें कि छात्र संघ का चुनाव इसी साल अगस्त और सितंबर के महीने में होना था लेकिन राज्य में विधानसभा का चुनाव होने के कारण सुरक्षा का हवाला देते हुए इसे टाल दिया गया था। राज्य में 25 साल बाद छात्र संघ का चुनाव होना था। महाराष्ट्र पब्लिक यूनिवर्सिटी एक्ट 2016 में छात्र संघ का चुनाव कराने प्रावधान किया गया था।

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छात्र परिषद का गठन 30 सितंबर को होना था: बता दें कि पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने 2018 में घोषणा की थी कि चुनाव सभी 11 राज्य विश्वविद्यालयों और इसके संबद्ध कॉलेजों में होंगे। लेकिन कानूनी मुद्दों के वजह से इस साल होने की उम्मीद थी। विश्वविद्यालय छात्र परिषद का गठन 30 सितंबर को किया जाना था। लेकिन राज्य में विधान सभा का चुनाव होने के कारण ऐसा नहीं हो सका।

चुनाव के लिए सभी संगठन सहमत है: युवा सेना के सचिव वरुण सरदेसाई ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि, “हमने पिछली सरकार से (छात्र चुनाव रद्द करने की) मांग की थी और यह मांग अभी भी कायम है। तावड़े ने चुनावों पर चर्चा करने के लिए सभी युवा विंग के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त बैठक बुलाई थी। इस बैठक में एबीवीपी के अलावा सभी ने कहा कि वे छात्र चुनाव नहीं चाहते हैं। लेकिन जब चुनाव की घोषणा हुई तो इससे सभी संगठन सहमत हो गए।”

समय से चुनाव परिणाम घोषित नहीं होता है तो चुनाव कैसे: सरदेसाई ने सवाल करते हुए कहा कि सबसे पहले आप कॉलेज में राजनीति क्यों लाना चाहते हैं? एक बार जब कॉलेजों में चुनाव होंगे, तो सभी को राजनीति के इस सर्कस में खींच लिया जाएगा। क्योंकि छात्र एक नए उम्र में हैं, वे नहीं जानते है कि सही या गलत क्या है। उन्हें उकसाना बहुत आसान है। कोई भी विश्वविद्यालय जो अपने मूल कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकता है। क्या वह चुनाव करा सकता है। उदाहरण के लिए परीक्षा परिणाम को ले सकते है। जो समय से कभी नहीं घोषित किया जाता है।

ऐसे अनगिनत नेता है जो छात्र राजनीति से नहीं है: चुनाव प्रक्रिया के दो महीने बाद एक छात्र परिषद का गठन किया जाता है। हम विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों को क्या शक्तियां दे रहे हैं? क्या वे कोई महत्वपूर्ण बदलाव कर सकते हैं? छात्र समिति वर्ष में केवल दो बार चुना जाता है। जिसमें बजट पहले से ही निर्धारित होता है। वे आपकी राय नोट करते हैं लेकिन वे वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं। आज ऐसे अनगिनत राजनेता हैं जो छात्र राजनीति से नहीं आए है।