Justice Chitta Ranjan Dash: उड़ीसा और कलकत्ता हाई कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस चित्त रंजन दाश ने 2023 में अपने एक फैसले से काफी सुर्खियां बटोरी थीं। जिसमें उन्होंने युवा लड़कियों से अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण करने की सलाह दी थी।

चित्त रंजन दाश ने अपने फैसले में कहा था, ‘ अन्य कर्तव्यों के अलावा किशोरियों को सलाह दी गई है वि यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें। क्योंकि समाज की नजर में वे तब गिर जाती हैं, जब वे मुश्किल से दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए ऐसा करती हैं।’ उनके इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया था। साथ ही कहा था कि न्यायिक आदेशों में इस तरह की टिप्पणियां गलत संकेत भेजती हैं।

इस घटना के कुछ ही महीने बाद, जस्टिस दाश ने फिर से विवाद खड़ा कर दिया, जब उन्होंने अपने विदाई समारोह के दौरान खुलासा किया कि वे RSS के सदस्य थे। उन्होंने तब भी कहा था, जैसा कि उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा है, कि अपनी संबद्धता के बावजूद, उन्होंने सभी मामलों और वादियों से निष्पक्षता से निपटा, चाहे वे किसी भी पार्टी से संबंधित हों। आइए जानते हैं बार बेंच को दिए इंटरव्यू में उन्होंने किन बातों का खुलासा किया।

वकालत करने के आपके फैसले को किसने प्रभावित किया? क्या जज बनना हमेशा से आपकी योजना का हिस्सा था?

मेरे पिता एक वकील थे और 1973 में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 379 में संशोधन किया गया था। उस समय, एक गरीब व्यक्ति ने मेरे पिता से अपना केस लड़ने का अनुरोध किया। मेरे पिता इस केस को लेकर उड़ीसा हाई कोर्ट में बहस करने गए और तत्कालीन चीफ जस्टिस जीके मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ उनकी दलीलों से बहुत प्रभावित हुई। तत्कालीन चीफ जस्टिस ने मेरे पिता को अपने चैंबर में बुलाया और उन्हें

न्यायपालिका में शामिल होने के लिए कहा। शुरू में वे अनिच्छुक थे, लेकिन कुछ समझाने के बाद, उन्हें उड़ीसा हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया। हालांकि, 53 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

मेरे पिता की असामयिक मृत्यु के बाद, मुझे न्यायपालिका में आने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मेरी विधवा मां ने मुझे न्यायपालिका में आने के लिए प्रेरित किया। और इसलिए, मैं एक जज बन गया, अन्यथा मुझे बार का हिस्सा बनकर खुशी होती।

आपने अपने विदाई भाषण में कहा कि आप बचपन से ही आरएसएस के सक्रिय सदस्य थे। संगठन से जुड़कर आपने क्या सीखा?

आरएसएस के बारे में कई गलतफहमियां हैं। संगठन के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं, फिर भी इसे ‘अछूत संगठन’ माना जाता है। लेकिन आरएसएस कभी भी किसी व्यक्ति के दिमाग में यह बात नहीं भरता है, जैसा कि कई लोग कहते हैं। मैं यह इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मैंने खुद इसका अनुभव किया है। आरएसएस लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को बेहतर बनाने की कोशिश करता है। यह आपको एक बेहतर नागरिक बनना सिखाता है और आपको सिखाता है कि आप जहां भी हों, आपको देश के लिए काम करना चाहिए। चाहे वह प्रधानमंत्री हो, कलेक्टर हो, जज हो या फिर शिक्षक, आपको देश के लिए काम करना चाहिए – यही आरएसएस की एकमात्र विचारधारा है।

मैं कह सकता हूं कि आरएसएस मूलतः एक मशीनरी संगठन है और कभी भी क्रांतिकारी संगठन नहीं रहा है। लेकिन एक कहानी यह भी है कि आरएसएस अछूत है। इतिहास बताता है कि इंदिरा गांधी ने भी कभी-कभी आरएसएस की मदद मांगी थी। चीन युद्ध के दौरान भी आरएसएस ने राहत कार्य किया था। ये बातें नागरिकों को कभी नहीं बताई जातीं।

आरएसएस यही सिखाता है कि जब भी आप कोई काम करें तो निष्पक्ष होकर करें और अपने काम के प्रति समर्पित रहें तथा राष्ट्र के प्रति समर्पित रहें। लेकिन दिन-प्रतिदिन आरएसएस के खिलाफ गलत बयानबाजी की जा रही है। लोग गलत आंकड़े दे रहे हैं तथा आरएसएस के बारे में गलत सूचना प्रसारित कर रहे हैं, जिससे संगठन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।

क्या आपको लगता है कि राजनीतिक संबद्धता वाले जज अपने निर्णय लेने में तटस्थ हो सकते हैं?

आरएसएस का पूर्व सदस्य होने के बावजूद मेरा काम संगठन की विचारधारा से प्रभावित नहीं हुआ। जज बनने के बाद मैं सिर्फ़ भारत के संविधान और दूसरे क़ानूनों के प्रति प्रतिबद्ध था। आप मेरे द्वारा दिए गए किसी भी फ़ैसले को देख सकते हैं। आरएसएस कभी भी आपको “राइट” या “लेफ्ट” में रहने का उपदेश नहीं देता। आरएसएस के कई लोगों का झुकाव वामपंथी है और वास्तव में, अब कांग्रेस में भी कई लोग हैं। लेकिन मुख्य बात यह है कि आरएसएस कभी भी किसी भी तरह की राजनीति नहीं करता, चाहे वह लेफ्ट हो या राइट। राजनीति में इसकी कोई भूमिका नहीं है और यह सिर्फ़ एक मशीनरी संगठन है।

जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने हाल ही में जज के पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। क्या आपको लगता है कि जजों को राजनीति में शामिल होना चाहिए?

हां, जजों को राजनीति में इस तरह शामिल नहीं होना चाहिए। अगर आपने न्यायिक जीवन अपनाया है, तो आपको न्यायिक अनुशासन भी अपनाना चाहिए। यहां तक ​​कि आरएसएस भी कहता है कि अगर आपने कोई खास पोशाक पहनी है, तो आपको उस पोशाक को कैसे बनाए रखना है, यह भी पता होना चाहिए। बीजेपी में शामिल होना उनका अपना फैसला था, इस पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। लेकिन जज को अपनी कुर्सी को राजनीति में शामिल होने का माहौल बनाने का आधार नहीं बनाना चाहिए। अगर जज राजनीति में शामिल होना चाहते हैं, तो उन्हें राजनीतिक मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने आपके उस आदेश की आलोचना की है जिसमें किशोरियों से अपनी यौन इच्छाओं पर “नियंत्रण” रखने को कहा गया है । क्या आपको लगता है कि न्यायिक आदेश में ऐसी टिप्पणी करना सही था? क्या आप इस विचार पर कायम हैं?

यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है, इस पर मुझे कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मैंने कहीं भी पीड़ित को शर्मिंदा करने का काम नहीं किया है। पूरा फैसला शोध कार्य का एक हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया है कि इस आयु वर्ग के लोगों को यौन संबंध बनाने का अधिकार दिया जाना चाहिए। फिर मैंने यह स्टैंड लिया कि यह अधिकार नहीं हो सकता, क्योंकि यह कानून के तहत अपराध है और उस कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं किया गया है, इसलिए कोई अधिकार आधारित दृष्टिकोण नहीं अपना सकता। यह कर्तव्य आधारित दृष्टिकोण होना चाहिए। जहां तक ​​यौन संबंध का सवाल है, आपको खुद को अपराध से दूर रखने के लिए इस अवधि से बचना चाहिए।

मैंने दिशा-निर्देश देते हुए समाज की वास्तविकता के बारे में कहा है। मैंने अपना दृष्टिकोण नहीं दिया है। मेरा निर्णय इतने शब्दों में नहीं है; मुझे लगता है कि आदेश में कुछ गलतियां रही होंगी, लेकिन उसे सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट है।

लेकिन मैं अपने निर्णय पर कायम हूं और मैं उससे इन्कार नहीं कर सकता। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि इस फैसले का आरएसएस की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि सोशल मीडिया पर कुछ ट्रोल्स कह रहे हैं।

इसे दूसरे तरीके से देखें तो यह फैसला एक पिता की अपनी बेटी को दी गई सलाह है। अगर मेरी बेटी किसी से प्रेम संबंध में है और वह किसी को डेट करती है, तो मैं उसे साफ-साफ बता दूंगा कि तुम डेटिंग कर सकती हो, लेकिन सेक्स से दूर रहो। राई का पहाड़ बनाया जा रहा है। कोई भी पिता अपनी बेटी को ऐसी सलाह देगा।

मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि इस फैसले का आरएसएस की विचारधारा से कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि सोशल मीडिया पर कुछ ट्रोल्स कह रहे हैं। हम आखिरकार भारतीय हैं…इसमें कोई संदेह नहीं कि हम एक आधुनिक समाज में रह रहे हैं, फिर भी हमारा ढांचा अभी भी पारंपरिक है। हमारे समाज में सेक्स अभी भी वर्जित है। मैंने कई जगहों का दौरा किया है, चाहे वह गांव हो या शहर, और लोगों से मेरी बातचीत के बाद, मैं कह सकता हूं कि समाज के अधिकांश वर्गों के लिए सेक्स वर्जित है। आप आंकड़ों से देख सकते हैं कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत भी मामले सामने आते हैं। अधिकांश मामले मध्यम वर्ग से आते हैं, उच्च वर्ग से नहीं। इसलिए मैंने कहा कि मेरा फैसला मूल रूप से एक पिता की अपनी बेटी को सलाह है।