MK Stalin rejects Yogi Adityanath’s claim: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच भाषा और परिसीमन को लेकर जुबानी जंग तेज हो गई है। स्टालिन ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि तमिलनाडु की दो-भाषा नीति और निष्पक्ष परिसीमन की मांग पूरे देश में गूंज रही है, जिससे भाजपा घबराई हुई है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा नेता अब ‘नफ़रत पर व्याख्यान’ देने लगे हैं, जो विडंबना नहीं बल्कि ‘राजनीतिक ब्लैक कॉमेडी’ है।
स्टालिन बोले- विरोध भाषा का नहीं, अंधराष्ट्रवाद का है
स्टालिन ने साफ किया कि तमिलनाडु किसी भाषा का विरोध नहीं करता, बल्कि जबरन थोपी जा रही नीतियों और अंधराष्ट्रवाद के खिलाफ है। उन्होंने इसे वोट के लिए ‘दंगा कराने की राजनीति’ बताते हुए कहा कि यह सम्मान और न्याय की लड़ाई है।
वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ ने स्टालिन की आलोचना पर पलटवार करते हुए कहा कि देश को भाषा के आधार पर बांटना गलत है। उन्होंने बताया कि तमिल भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जिसका इतिहास और विरासत समृद्ध है। आदित्यनाथ ने सवाल किया कि हिंदी से नफरत क्यों होनी चाहिए, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हर भाषा सीखना जरूरी है।
एएनआई पॉडकास्ट में योगी आदित्यनाथ ने इसे ‘संकीर्ण राजनीति’ करार देते हुए कहा कि कुछ नेता अपने वोट बैंक को बचाने के लिए भाषा और क्षेत्र के नाम पर विभाजन की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने जनता से अपील की कि वे ऐसी राजनीति से सावधान रहें और देश की एकता को मजबूत बनाए रखें।
सीएम योगी ने कहा था कि स्टालिन क्षेत्र और भाषा के आधार पर विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका वोट बैंक खतरे में है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भाषा को लोगों को एकजुट करना चाहिए, न कि विभाजित करना चाहिए।
हिंदी का जबरदस्ती विरोध कर रहे स्टालिन, 1937 में शुरू हुई थी भाषा की लड़ाई
तमिलनाडु में हिंदी भाषा के विरोध के बारे में पूछे जाने पर हिंदी पट्टी के राज्य के मुख्यमंत्री सीएम योगी ने कहा, “देश को भाषा या क्षेत्र के आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। हम वाराणसी में काशी-तमिल संगमम की तीसरी पीढ़ी के आयोजन के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी के आभारी हैं। तमिल भारत की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है और इसका इतिहास संस्कृत जितना ही पुराना है। हर भारतीय तमिल के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखता है क्योंकि भारतीय विरासत के कई तत्व अभी भी इस भाषा में जीवित हैं। तो, हमें हिंदी से नफरत क्यों करनी चाहिए?”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी भाषा विभाजित करने का काम नहीं करती, यह एकजुट करने का काम करती है। आदित्यनाथ ने एक व्यापक परिप्रेक्ष्य की वकालत की तथा एकता और समावेशिता के महत्व पर बल दिया।