सर्वेक्षण कहते हैं कि दुनिया की 75 फीसद आबादी धर्म गुरुओं और धर्म आधारित संगठनों पर आस्था रखती है। जनजागरूकता में धार्मिक संगठन के सामाजिक सरोकार मायने रखते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए परमार्थ निकेतन ऋषिकेश ने स्त्री, प्रकृति और योग के समुच्चय को चुना है। इसके तहत उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों खासकर सीमांत गांवों में रह रही लड़कियों के शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए महिला सशक्तिकरण व पर्यावरण संरक्षण के लिए पहल होगी। परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि महाराज और उनकी अमेरिकी मूल की शिष्या साध्वी भगवती को उम्मीद है कि इस योजना से लड़कियों से लेकर पर्यावरण तक को कई लाभ मिलेंगे।
बेटी का जन्म और पौधे का पालन
स्वामी चिदानंद मुनि कहते हैं कि धर्म का असली उद्देश्य समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना और ईमानदारी से अपने सामाजिक दायित्वों को निभाना है। सामाजिक दायित्वों को लेकर नए आविष्कार करने से धर्म में निरंतरता बनी रहती है। चिदानंद मुनि का कहना है कि समाज का मूल आधार बेटियां हैं। इसलिए परमार्थ निकेतन ने ‘शिक्षा से शादी तक’ का अभियान शुरू किया है। इसका मकसद बेटियों को आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और शैक्षिक रूप से स्वावलंबी बनाना है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के कार्य को भी मूर्त रूप देना है।
परमार्थ निकेतन बेटियों के जन्मदिन पर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में ‘पेड़ लगेंगे बेटी के नाम’ से प्रयोग करेगा। विभिन्न गांवों में बेटियों के जन्मदिन पर उनके नाम पर अलग-अलग फलदार किस्म के पौधे लगाए जाएंगे। जब ये पौधे वृक्ष का रूप लेंगे तो फल देने के साथ पर्यावरण को और अधिक स्वच्छ बनाएंगे। इससे सघन वृक्षारोपण अभियान भी सफल होगा।
परमार्थ निकेतन खासकर सीमांत क्षेत्रों में ऐसा माहौल बनाना चाहता है जिससे बेटियों के जन्म लेने पर पूरा गांव खुशी मनाए। संस्था के सौजन्य से बेटियों के जन्मदिन के दिन पांच-पांच पौधे अखरोट, सेव, कीवी, चंदन तथा अन्य प्रजातियों के लगाए जाएंगे। जब बेटियां पांच से छह साल की हो जाएंगी तो ये वृक्ष फल देने लगेंगे और इन वृक्षों के फलों से होने वाली आमदनी इन बेटियों की पढ़ाई-लिखाई और रहन-सहन में खर्च की जाएगी।
स्वामी चिदानंद मुनि ने कहा कि इन फलदार वृक्षों के पीछे बेटियों का आर्थिक भविष्य भी जुड़ा है। उदाहरण के लिए, 15 से लेकर 20 साल में चंदन का पेड़ इतना बड़ा हो जाएगा कि उसकी कीमत बाजार में 15 से 20 लाख तक हो जाएगी। जब बिटिया की शादी का समय आएगा तब पांच चंदन के पेड़ों की कीमत एक से सवा करोड़ रुपए के लगभग होगी जिससे लड़की के परिवार का आर्थिक अभ्युदय भी होगा। ‘शिक्षा से शादी तक’ अभियान के तहत नारा दिया गया है ‘पेड़ लगेंगे, बेटी के नाम’।
इस अभियान के तहत परमार्थ निकेतन ने सबसे पहले उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के सीमांत जिले उत्तरकाशी को चुना है। इसके बाद चमोली, पिथौरागढ़, चंपावत होते हुए पूरे पर्वतीय क्षेत्र में इसे जन-आंदोलन का रूप दिया जाएगा। इस मुहिम के पीछे बाल विवाह को रोकने की भावना भी है। संयुक्त राष्टÑ बाल कोष के आकलन के अनुसार भारत में हर साल 18 साल से कम उम्र की लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी कर दी जाती है। स्वामी चिदानंद मुनि कहते हैं कि हमें पूरी उम्मीद है कि ‘शिक्षा से शादी तक’ का हमारा अभियान बाल विवाह रोकने के साथ-साथ महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अभ्युदय के लिए सशक्त माध्यम बनेगा।
साध्वी भगवती की भूमिका
इस प्रयोग में साध्वी भगवती की अहम भूमिका है। साध्वी भगवती 1996 में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के बाद पीएचडी कर रही थीं। इस दौरान वे भारत भ्रमण के लिए आईं और ऋषिकेश में गंगा तट पर स्थित परमार्थ निकेतन की संध्याकाल आरती में पहुंचीं। वहां के माहौल ने भगवती को सदा के लिए गंगा और भारत से जोड़ दिया। साध्वी कहती हैं कि मैं भारत में नहीं बल्कि अब भारत मुझ में रहता है। साध्वी भगवती को 2000 में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में संन्यास दीक्षा मिली थी।
शौचालय और स्त्री शिक्षा का रिश्ता
परमार्थ निकेतन की स्थापना ऋषिकेश के सामने गंगा तट पर स्वर्गाश्रम क्षेत्र में दशनामी संन्यासी परंपरा के संत महामंडलेश्वर स्वामी सुखदेवानंद जी महाराज ने 1942 में की थी। स्वामी चिदानंद मुनि महाराज ने स्वामी धर्मानंद महाराज से संन्यास दीक्षा 22 साल की उम्र में 1974 में ली थी। अस्सी साल पहले शुरू हुई यह संस्था राष्टÑीय और अंतरराष्टÑीय स्तर पर समाज निर्माण के क्षेत्र में कई अहम कार्य कर रही है।
परमार्थ निकेतन दिव्यांग सेवा शिविर, नि:शुल्क चिकित्सा शिविर, नारी संसद, लोक संसद, गंगा स्वच्छता अभियान, पर्यावरण संरक्षण अभियान, वृक्षारोपण अभियान जैसे काम में जुटा रहता है। भारत में 45 फीसद लोग निरक्षर हैं और 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 2.68 करोड़ दिव्यांग आबादी है जो देश की पूरी आबादी का 2.21 फीसद है जिसमें 1.5 करोड़ पुरुष तथा 1.8 करोड़ महिला दिव्यांग आबादी है।
हमारा संकल्प दिव्यांग मुक्त भारत बनाना है। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना, बाल विवाह की कुप्रथा को समाप्त करना, लड़कियों के लिए स्कूल में शौचालयों का निर्माण करना और उन्हें अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के साथ माहवारी के प्रति सही जानकारी दी जाती है। शौचालय और लड़की की शिक्षा का रिश्ता जुड़ा हुआ है। कई स्कूलों में शौचालयों के अभाव के कारण लड़कियां माहवारी आते ही स्कूल छोड़ देती हैं।
पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता को माहवारी को लेकर सही जानकारी का अभाव होता है जिसके कारण माहवारी आते ही बेटियों की शादी कर देते हैं। इसलिए परमार्थ निकेतन ने इस विषय को राष्टÑव्यापी अभियान के तौर पर लिया। परमार्थ निकेतन ‘ग्लोबल इंटरफेथ एलायंस’ के माध्यम से न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी संतों को एक मंच प्रदान करता है ताकि सभी धर्माचार्य और उनके अनुयायी सामाजिक परंपराओं पर एक सकारात्मक चर्चा कर सकें और धर्म विश्व शांति का सबसे सबल माध्यम बन सके।
योग को दिलाया अंतरराष्ट्रीय मंच
परमार्थ निकेतन ने अंतरराष्टÑीय योग दिवस को नई पहचान दिलाई जिसमें साध्वी भगवती की विशेष भूमिका रही है। चिदानंद मुनि कहते हैं कि पिछले 39 सालों से परमार्थ निकेतन योग महोत्सव को मनाता आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्टÑीय योग दिवस की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाई। इसे सफल बनाने के लिए परमार्थ निकेतन ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। वैसे, 1997 से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के गंगा तट पर एक से सात मार्च तक अंतरराष्टÑीय योग सप्ताह महोत्सव मनाता चला आ रहा है।
इसमें अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इटली, चीन, जापान, रूस और अन्य देशों के योगाचार्य के साथ विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु अनुयायियों के साथ भाग लेते हैं। योग महोत्सव की तैयारी के लिए साध्वी भगवती कई महीनों पहले विभिन्न देशों की यात्रा पर निकल जाती हैं और विश्व के विभिन्न धर्माचार्यों से संवाद करती हैं। कोरोना के दो साल में आनलाइन अंतरराष्टÑीय योग महोत्सव का आयोजन किया गया। अब 2023 में एक से सात मार्च तक फिर से विश्व के विभिन्न धर्माचार्य अंतरराष्टÑीय योग महोत्सव में परमार्थ निकेतन के गंगा तट पर एक साथ एक मंच पर जुटेंगे।