Wrestlers Protest: कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह एक ऐसा नाम जिनको कई नामों से जाना जाता है, लेकिन बाहुबली नाम से ज्यादा प्रसिद्ध बृजभूषण शरण सिंह इस वक्त महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपों को सामना कर रहे हैं। हालांकि बृजभूषण शरण सिंह ने पहलवानों के सभी आरोपों को झूठा बताया है, लेकिन बृजभूषण शरण सिंह को लेकर कई ऐसे किस्से हैं जो उनकी तानाशाही की गवाही पेश करते हैं।

उन्हीं में एक घटना कुछ साल पहले सर्द शाम की है। एक पूर्व खेल सचिव शास्त्री भवन में अपने कार्यालय के ग्राउंड-फ्लोर कार्यालय में सामान्य दिनों की तरह आराम कर रहे थे, लेकिन उनको एक फोन कॉल आया। जिसको वो कभी नहीं भूल सकते। यह फोन कॉल किसी और की नहीं, बल्कि कुश्ती महासंघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की थी।

सचिव का कहना है कि खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई के कुछ प्रस्तावों को रोक दिया था। साथ ही टीम चयन प्रक्रिया पर स्पष्टता की मांग करते हुए विदेशी दौरे को मंजूरी नहीं दी थी, लेकिन यह बृजभूषण शरण सिंह के लिए अच्छा नहीं था, क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह अपने तरीके से काम करने के आदी थे।

सचिव का कहना है कि इसके बाद बृजभूषण ने उन्हें निर्वाचित सांसद के रूप में अपने कद की याद दिलाई और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। सचिव ने कहा कि इसका उन्होंने विरोध किया। साथ ही सिंह को शिष्टाचार की याद दिलाई। यह बीजेपी सांसद के साथ उनकी बातचीत थी।

15 जून को दायर होगी चार्जशीट

बृजभूषण पर सात महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि इस मामले में 15 जून को चार्जशीट दायर की जाएगी। बृजभूषण के खिलाफ यह अब तक का सबसे गंभीर मामला है। भारत के तीन टॉप पहलवानों, साक्षी मलिक, विनेश फोगट और बजरंग पुनिया ने भी बृज पर आरोप लगाया है। वास्तव में WFI एक व्यक्ति महासंघ (बृजभूषण शरण सिंह) के रूप में सामने आया। बृज भूषण ओवर ऑल चेरयमैन, चयन समिति के प्रमुख और एथलीटों के शिकायत पैनल के अध्यक्ष के साथ-साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद भी रहे। मतलब कुश्ती को लेकर कब-क्या फैसला लेना है, यह सभी कुछ सिंह के फैसले पर निर्भर रहा।

छह बार के सांसद हैं बृजभूषण शरण सिंह

छह बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने पहलवानों के सभी आरोपों का झूठा बताया है। बृजभूषण ने दावा किया है कि उनके 12 साल के कार्यकाल के दौरान भारतीय कुश्ती ने हरियाणा जो पहलवानों को गढ़ माना जाता है, उससे आगे बढ़कर काम किया है। यही कारण है कि भारत शीर्ष पांच कुश्ती देशों में से एक है। उन्होंने ओलंपिक में प्रदर्शन की ओर इशारा किया है, जहां पिछले चार खेलों में भारतीय पहलवानों ने पोडियम पर जगह बनाई है।

इस मामले पर द इंडियन एक्सप्रेस ने बृजभूषण शरण सिंह से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने एक बार भी एक्सप्रेस के कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया। जबकि इस साल उन्होंने कई इंटरव्यू में अपनी बात रखी है, लेकिन उनके दावों से हर कोई सहमत नहीं है।

अखाड़ा संस्कृति ने भारतीय कुश्ती को जीवित रखा: शेरावत

अनुभवी कोच कुलदीप शेरावत कहते हैं कि बृज भूषण के महासंघ ने अधिक टूर्नामेंट आयोजित करने और अंतरराष्ट्रीय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए अपना काम किया। डब्ल्यूएफआई कड़ी मेहनत का लाभ उठा रहा था। जो उसको हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक पंजाब और कर्नाटक के कुश्ती के हॉटबेड के अखाड़ों से मिल रहा है।

शेरावत कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि पहले की तुलना में घरेलू कुश्ती का दृश्य अब जीवंत है। राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट नियमित रूप से होते हैं। पूरे साल शिविर आयोजित किए जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भी भागीदारी लगातार रही है। वह आगे कहते हैं कि यह कहना कि महासंघ के प्रयासों के कारण भारत अच्छा कर रहा है, भ्रामक है। कुश्ती अखाड़ा चलाने वालों की मेहनत की बदौलत हमने ओलंपिक और विश्व चैंपियनशिप में पदक जीते हैं। शेरावत कहते हैं, “किसी भी चीज़ से ज्यादा यह अखाड़ा संस्कृति है, जिसने भारतीय कुश्ती को जीवित रखा है।”

जानिए अर्जुन पुरस्कार विजेता क्या कहते?

अर्जुन पुरस्कार विजेता और पुणे में अपनी अकादमी चलाने वाले पहलवान काका पवार का कहना है कि एक पहलवान की प्रगति तभी है, जब वो जिला स्तर पर प्रतिस्पर्धा में भाग लेना, उसके बाद स्टेट लेवल पर और बाद में राष्ट्रीय स्तर के लिए क्वालीफाई करने के लिए वहां जीतना और शीर्ष चार में स्थान बनाना है।

पवार कहते हैं, “महासंघ केवल राष्ट्रीय चैम्पियनशिप स्तर पर एक भूमिका निभाता है। इससे पहले स्थानीय अकादमियां ही ज्यादातर चीजों का ध्यान रखती हैं और नेशनल से लेकर ट्रेनिंग कैंप तक सब कुछ सरकार देखती है। बेशक, यह सब डब्ल्यूएफआई की अगुवाई में होता है, लेकिन यह एक पहलवान के विकास में बिल्कुल भी योगदान नहीं देता है।” यह भारत की ओलंपिक पदक विजेताओं की यात्रा को देखकर लगता है।

उदाहरण के तौर पर, साक्षी मलिक जिन्होंने 2016 में कांस्य पदक जीता। उनको सबसे ज्यादा फायदा रोहतक में मजबूत कुश्ती संस्कृति से हुआ। सुशील कुमार (कांस्य 2008, रजत 2012), योगेश्वर दत्त (कांस्य 2012), रवि दहिया (रजत, 2020) और बजरंग पुनिया (कांस्य 2020) सभी ने नई दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में अपनी कला सीखी। साथ ही राष्ट्रीय शिविरों के बाहर प्रशिक्षण लिया।

कुश्ती को लेकर महाराष्ट्र यकीनन हरियाणा के बाद सबसे बड़ा केंद्र है। राष्ट्रमंडल और एशियाई पदक विजेता राहुल अवारे अपने पिता की वजह से कुश्ती की तरफ आगे बढ़े। शुरुआत में बीड में उनके गांव में स्थानीय प्रशिक्षकों ने उनको ट्रेनिंग दी। कोल्हापुर में उनके मामा ने उन्हें भारत के कुश्ती में ढाला। पवार कहते हैं कि अवारे एक कुशल पहलवान हैं। अवारे इस बात का एक उदाहरण हैं कि कैसे एक पहलवान का करियर स्थिर हो जाता है यदि वह गुणवत्ता वाले स्पारिंग भागीदारों और पुराने कोचिंग तरीकों की कमी के कारण केवल राष्ट्रीय शिविरों में ही प्रशिक्षण लेता है। यह एक कठिन स्थिति है।

बृजभूषण को कई तरह के फैसले लेने का अधिकार था

सिंह को लेकर एक सिस्टम कागजों पर था, लेकिन फिर भी कुछ शर्ते थी। बृज भूषण को डब्ल्यूएफआई के लिखित दिशानिर्देशों के अनुसार हर बड़े मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार दिया गया था। WFI के अध्यक्ष के रूप में बृज भूषण ने चयन समिति का भी नेतृत्व किया। जिसने उन्हें ‘अगले 3-4 महीनों के दौरान कौन सा पहलवान देश का प्रतिनिधित्व करेगा इसकी भी सिफारिश करने का अधिकार दिया।’

ओलंपिक के लिए दिशानिर्देशों में कहा गया है कि बृजभूषण की अगुवाई वाली चयन समिति के पास ट्रायल आयोजित करने का अधिकार होगा। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं होगा कि कोटा हासिल करने वाले सभी पहलवानों को ट्रायल्स में शामिल होने के लिए कहा जाएगा।

एशियाई खेलों के संबंध में, डब्ल्यूएफआई के नियमों में कहा गया है: “सभी भार वर्गों में चयन परीक्षण अनिवार्य हैं, हालांकि, चयन समिति के पास ओलंपिक/विश्व चैम्पियनशिप के पदक विजेताओं जैसे प्रतिष्ठित खिलाड़ियों का चयन करने का विवेकाधिकार होगा, बशर्ते प्रमुख द्वारा सिफारिश की गई हो।

ऐसे में कोई पहलवान किसी निर्णय से असंतुष्ट था तो उसके पास डब्ल्यूएफआई की शिकायत निवारण समिति से संपर्क करने का विकल्प था। संयोग से वह भी बृज भूषण के नेतृत्व में था, जो भारतीय कुश्ती पर उनके नियंत्रण को दर्शाता था। WFI के संचालन में लिखित दिशा-निर्देशों में मनमानी भी दिखाई पड़ती है।

इसका उदाहरण पिछले साल तब सामने आया, जब पहलवान बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों से पदक जीतने के बाद भारत लौटे। बृज भूषण ने पुरुष पहलवानों को विश्व चैंपियनशिप के लिए चयन ट्रायल में भाग लेने से छूट दी थी, जो एक महीने बाद होनी थी। हालांकि, विनेश और साक्षी सहित महिलाओं के लिए यह नियम लागू नहीं किया गया था। इन लोगों को फिर से कठोर प्रक्रिया से गुजरने के लिए मजबूर किया गया।

बृजभूषण के पास चयन ट्रायल करने की विशिष्ट शैली थी

इतना ही नहीं बृजभूषण के पास चयन ट्रायल आयोजित करने की एक विशिष्ट शैली थी, जहां वो अपनी इच्छा के अनुसार मुकाबलों को शुरू और बंद कर देते थे। साथ ही कभी-कभी रेफरी को निर्देश भी देते थे कि क्या करना है। इन ट्रायल्स के साथ पहलवानों की परीक्षा खत्म नहीं हुई। यदि वे जीत जाते हैं, तो उन्हें इस बात पर अपनी उंगली उठानी होगी कि महासंघ एक टूर्नामेंट में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समय पर कार्य को पूरा करे।

वीजा आवेदन और सरकार द्वारा संचालित ट्रैवल एजेंसी को फ्लाइट बुकिंग के बारे में सूचित करने जैसी चीजें बहुत बुनियादी लग सकती हैं, लेकिन डब्ल्यूएफआई के साथ यह सामान्य प्रक्रिया नहीं थी। शेरावत कहते हैं कि पिछली U-23 विश्व चैंपियनशिप के दौरान कई कोच और पहलवान यात्रा नहीं कर सके, क्योंकि हमारे वीजा समय पर नहीं आए। ऐसा इसलिए था क्योंकि हमारे आवेदन देर से जमा किए गए थे।

2021 में WFI द्वारा फ्लाइट बुकिंग में हुई गड़बड़ी

2021 में WFI द्वारा उनकी फ्लाइट बुकिंग में गड़बड़ी के बाद भारत की शीर्ष महिला पहलवान अंशु मलिक और सोनम मलिक को वजन कम करने के लिए एक हवाई अड्डे के टर्मिनल पर कसरत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वो अपने मुकाबलों से घंटों पहले अल्माटी पहुंचे। खाली पेट प्रतिस्पर्धा की, लेकिन किसी तरह टोक्यो ओलम्पिक क्वालीफाई किया।

जबकि बृजभूषण ने राष्ट्रीय शिविरों और अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंटों के लिए चयन प्रक्रिया पर पैनी नज़र रखी। यह प्रशिक्षण और प्रतियोगिता के वार्षिक कैलेंडर (एसीटीसी) योजनाओं से स्पष्ट था। ACTC सरकार की एक न्यूनतम अनिवार्य आवश्यकता है, जिसमें संघों को पूरे वर्ष के लिए अपने कार्यक्रम को सूचीबद्ध करना होता है। एएफआई के 22 पन्नों के प्रस्ताव के विपरीत, इस साल की विश्व चैंपियनशिप और अगले साल के ओलंपिक के लिए डब्ल्यूएफआई की योजना और पदक का अनुमान सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जबकि 2022 के लिए उनका एसीटीसी केवल दो पेज लंबा था, जिसमें केवल टूर्नामेंट के नाम सूचीबद्ध थे।

बृजभूषण के साथ भाग-दौड़ करने वाले पूर्व खेल सचिव के अनुसार, WFI ‘कमोबेश एक बंद महासंघ की तरह है क्योंकि कभी भी किसी ने ऐसा कुछ नहीं कहा जो अध्यक्ष को पसंद न आया हो। हालांकि, चिंता की बात यह है कि अखाड़ों द्वारा प्रतिभाशाली पहलवानों के बावजूद भारत एक मजबूत बेंच स्ट्रेंथ विकसित करने में विफल रहा। शेरावत का कहना है कि इसका कारण डब्ल्यूएफआई की अधिकांश टूर्नामेंटों के लिए एक ही पहलवानों का चयन करने की प्रवृत्ति और कार्यक्रमों में भागीदारी को कम करना है। जहां पहलवान अपना दमखम दिखा सकें।

इसका नतीजा इस साल दो रैंकिंग सीरीज मुकाबलों में देखने को मिला, जहां भारतीय पहलवान फ्रीस्टाइल में खाली हाथ लौटे, जिसे देश की ताकत माना जाता है। बृज भूषण को अब हटा दिया गया है। उनका कोई भी करीबी WFI में शीर्ष पदों के लिए चुनाव नहीं लड़ सकेगा। उम्मीद है कि नया प्रशासन अच्छा आएगा। शेरावत कहते हैं कि ‘हमारा जैसा देश ओलंपिक में एक या दो पदक से संतुष्ट नहीं हो सकता। हम बहुत कुछ बेहतर कर सकते हैं।”