हाल के एक अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 1990 के बाद से हर साल करोड़ों गैलन पानी सूखता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने विश्व में दो हजार बड़ी झीलों के अध्ययन में पाया है कि हर साल उनमें से 215 खरब लीटर पानी कम हो रहा है। इसे कुछ इस तरह से समझा जा सकता है – वर्ष 1992 से 2020 के बाद दुनिया में इतना पानी खत्म हो चुका है जितना अमेरिका की सबसे बड़ी झील यानी नेवादा की लेक मीड जैसी 17 झीलों में होता।

अध्ययन के मुताबिक, जिन झीलों वाले इलाके में पहले से ज्यादा बारिश हो रही है, वे भी सूखती जा रही हैं। तापमान बढ़ने के कारण अब ज्यादा पानी भाप बनकर उड़ रहा है। साथ ही, पानी की कमी के कारण अब लोग कृषि, बिजली उत्पादन और पीने के लिए भी झीलों से पानी ले रहे हैं।हाल में पत्रिका साइंस में छपे इस अध्ययन के मुताबिक, झीलों के सूखने का तीसरा कारण बारिश का अनियमित हो जाना और नदियों का रास्ता बदल लेना है, जिसकी वजह भी जलवायु परिवर्तन हो सकती है। ईरान की उर्मिया झील के सूखने का यही प्रमुख कारण माना गया है। अध्ययन के मुताबिक इस झील से सालाना 10.5 खरब लीटर पानी कम हो रहा है।

शोधकर्ता कहते हैं कि झीलों का पानी कम होने का अर्थ यह नहीं है कि वे यकायक लापता हो जाएंगे लेकिन इसका नतीजा यह हो सकता है कि झील के पानी के लिए प्रतिद्वंद्विता बढ़ेगी क्योंकि अब बिजली उत्पादन आदि में भी उनका इस्तेमाल होगा। मुख्य शोधकर्ता फैंगफांग याओ कोलराडो यूनिवर्सिटी में जलवायु विज्ञानी हैं। वह कहते हैं, इस कमी के आधे से ज्यादा के लिए मानव उपभोग और अन्य परोक्ष मानवीय कारण जिम्मेदार हैं।झीलों से पानी निकालना एक सीधा मानवीय कारण है जिसके कारण पानी लगातार घट रहा है।

सहायक शोधकर्ता कोलराडो यूनिवर्सिटी के बेन लिवने कहते हैं कि यह ज्यादा स्पष्ट भी है क्योंकि इसका दायरा स्थानीय और बड़ा है और इसमें इलाके को पूरी तरह बदलने की क्षमता है। हालांकि, लिवने कहते हैं कि अपरोक्ष मानवीय कारण भी जिम्मेदार हैं, जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और धरती का तापमान बढ़ रहा है। वह कहते हैं कि इस कारण पूरे विश्व पर और उसकी हर चीज पर असर हो रहा है।

याओ कहते हैं कि कैलिफोर्निया की मोनो झील का सिकुड़ना एक सटीक मिसाल है। वह कहते हैं जिन इलाकों में जलवायु परिवर्तन के कारण ज्यादा बारिश हो रही है, वहां भी पानी कम हो रहा है क्योंकि गर्म हवा झीलों के पानी को ज्यादा सोख रही है। लिवने कहते हैं कि इससे एक दुष्चक्र बन रहा है क्योंकि हवा में ज्यादा पानी होने का मतलब है कि बारिश भी ज्यादा हो सकती है।

अपने अध्ययन के लिए याओ, लिवने और उनके सहयोगियों ने 30 साल तक उपग्रहों से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके अलावा कंप्यूटर से लगाया गया अनुमान और अन्य स्रोतों से मिला जलवायु परिवर्तन का आंकड़ा भी इस विश्लेषण का आधार बना है। शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका की सबसे बड़ी मीड झील ने 1992 से 2020 के बीच दो-तिहाई पानी खो दिया था। हालांकि 1992 से 2013 के बीच सिकुड़ना सबसे ज्यादा हुआ। उसके बाद कुछ समय तक स्थिरता बनी रही और फिर झील फैलने लगी। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि इस फैलाव में भी समस्या है क्योंकि झीलें नदियों से आ रही रेत और गाद से भरती जा रही हैं।

तापमान बढ़ने के कारण अब ज्यादा पानी भाप बनकर उड़ रहा है। साथ ही, पानी की कमी के कारण अब लोग कृषि, बिजली उत्पादन और पीने के लिए भी झीलों से पानी ले रहे हैं। मुख्य शोधकर्ता फैंगफांग याओ कोलराडो यूनिवर्सिटी में जलवायु विज्ञानी हैं। वह कहते हैं, इस कमी के आधे से ज्यादा के लिए मानव उपभोग और अन्य परोक्ष मानवीय कारण जिम्मेदार हैं। सहायक शोधकर्ता कोलराडो यूनिवर्सिटी के बेन लिवने कहते हैं कि अपरोक्ष मानवीय कारण भी जिम्मेदार हैं, जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और धरती का तापमान बढ़ रहा है।