जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया की सबसे बड़ी नदी अमेजन भी सूखती जा रही है। हालत यह है कि ब्राजील के अमेजानस राज्य में नदी का जलस्तर औसतन पच्चीस फुट नीचे चला गया है। इस चुनौती से निपटने के लिए हालांकि नदी तल की खुदाई का काम शुरू किया जा रहा है, लेकिन समस्या की गहनता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि संसार की इस सबसे बड़ी नदी का एक बड़ा हिस्सा अनेक स्थानों पर उथले तालाबों में बदल गया है। चूंकि अमेजन जलीय यातायात का भी एक माध्यम है, इसलिए नदी के घटते जलस्तर के कारण नाव से बच्चों को स्कूल छोड़ना, मरीजों को अस्पताल पहुंचाना और स्थानीय चुनावों में शहरों से गांवों तक मतदान सामग्री पहुंचाने जैसे काम भी प्रभावित हो रहे हैं।
उधर, विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने भी हाल ही में जारी अपनी रपट में कहा है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा बढ़ रहा है। इससे नदियों की ही प्यास नहीं बुझ पा रही है। संगठन ने कहा है कि दुनिया भर की नदियों के लिए वर्ष 2023 पिछले तीस वर्षों की तुलना में सबसे खराब साल रहा है।
नदियां रह जा रही प्यासी
अमेजन के सूखने की स्थिति से हर कोई अचंभित है। क्या नदियां सूख कर गायब होने लगेंगी, वैसे ही जैसे पुराने तालाब गायब हो गए या गायब कर दिए गए? खुद नदियों के प्यासे रह जाने की यह परेशानी दुनिया के किसी एक देश या किसी एक हिस्से की नहीं है। नदियों के संरक्षण के प्रति यदि मानव अब भी संवेदनशील नहीं हुआ तो सारी दुनिया को इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। वे देश खुशनसीब हैं, जिन्हें प्रकृति ने नदी जैसी संरचनाओं का वरदान दिया है। नदियां अभी भी मनुष्य जाति के लिए पृथ्वी पर स्वच्छ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं, लेकिन अंधाधुंध विकास ने उनको बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों का रास्ता बदलना या उनके प्रवाह क्षेत्र में वर्षा का औसत परिवर्तित होकर बहुत कम हो जाना, नदी संरक्षण में दूसरी बड़ी समस्या है। नदियों की परिवर्तित स्थिति का सबसे बड़ा उदाहरण है आगरा में यमुना का प्रवाह। मुगलकाल में जो नदी ताजमहल से सट कर बहती थी, अब उसका प्रवाह ताजमहल से बहुत दूर हो गया है।
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पुराणों में कथा है कि जब देवी सरस्वती को नदी रूप में पृथ्वी पर जाने के लिए कहा गया, तो सरस्वती ने ब्रह्मा से कहा- ‘आप तो मेरा स्वभाव जानते हैं। मैं मनुष्य की कुत्सित प्रवृत्तियों को कैसे सहन करूंगी?’ इस पर ब्रह्मा ने जवाब दिया कि ‘तुम्हें जब भी लगे कि मनुष्य का व्यवहार असह्य हो गया है, तुम उसी समय स्वयं को समेट कर लौटने की तैयारी कर लेना।’ कभी अपने उद्दाम प्रवाह के साथ बहने वाली सरस्वती आज लुप्त हो गई है। क्या नदियों के प्रति मनुष्य के जिस असह्य व्यवहार की ओर सरस्वती नदी की कहानी में इंगित किया गया है, मूल रूप से वह नदियों के प्रति उपेक्षाभाव ही था।
नदियों के रूप में है मान्यता
भारत में नदियों को माता का दर्जा दिया जाता है। पवित्र अवसरों पर नदियों में स्नान का आज भी बहुत महत्त्व है। इन नदियों में गंगा नदी की महत्ता और भी अधिक है। मान्यता है कि अपने पुरखों के उद्धार के लिए राजा भगीरथ गहन तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे। गंगा की महत्ता को लेकर अनेक प्रसंग प्रचलित हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह पाया गया था कि गंगा का पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता। कीटाणु उसमें नहीं पनप पाते। इसीलिए दूसरे विश्वयुद्ध के समय अंग्रेज सैनिक अपने साथ गंगाजल ले जाया करते थे, लेकिन उसी गंगा के पानी का कुछ समय पहले परीक्षण किया गया, तो पाया गया कि अनेक स्थानों पर वह आचमन करना तो दूर, स्पर्श करने लायक भी नहीं बचा है। गंगा किनारे उद्योगों से सतत हो रहे प्रदूषण ने हमारी आस्थाओं के जल को बीमारियों का कारक बना दिया। जब नदी को देवी मानने वाले देश में नदियां अपनी स्थिति पर आंसू बहाती प्रतीत होती हैं, तो फिर दुनिया के अन्य देशों में उनके अधर प्यासे ही रह जाएं, तो क्या आश्चर्य?
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वैज्ञानिकों का कहना है कि लगातार बढ़ रही गर्मी के कारण हिमखंड तेजी से पिघलने लगे हैं। गर्मी के दिनों में नदियों के प्रवाह को अक्षुण्ण रखने का काम ये हिमखंड ही करते हैं। यदि हिमखंड ही नहीं बचे, तो नदियों में पानी की अजस्र धारा कैसे बचेगी? बड़ी नदियों की बुरी हालत का एक कारण यह भी है कि हम छोटी नदियों के प्रति संवेदनशील नहीं रह गए हैं। जबकि छोटी-छोटी नदियां ही अपनी जल संपदा बड़ी नदियों में उड़ेल कर उन्हें समृद्ध करती हैं। ये नदी की शिराओं की तरह होती हैं। इनका सूख जाना बड़ी नदियों की सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विकासशील देशों में तो विकास के नाम पर अनेक छोटी नदियों का अस्तित्व खत्म कर दिया गया है। भारत में ही अनियोजित नगर नियोजन के कारण कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व की नदियां तक नालों में बदल गई हैं।
दम तोड़ रहीं नदियां
पंजाब की कालीबेई नदी इसका उदाहरण है लगातार उपेक्षा के कारण यह नदी भी गंदे नाले में बदल गई। फिर संत बलबीरसिंह सिचेवाल का ध्यान इस ओर गया, तो उन्होंने इस नदी को इसके पुराने दिन लौटाने का संकल्प लिया। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया और एक बार फिर कालीबेई को उसका सौंदर्य और प्रवाह वापस मिल गया। आज हजारों श्रद्धालु इस नदी तट पर जाते हैं। यह प्रसंग इस बात का उदाहरण है कि यदि समाज के कुछ लोग भी नदियों के प्रति संवेदनशील हों और उनके संरक्षण का संकल्प लें, तो छोटी नदियों को बचाया जा सकता है। छोटी नदियां बचेंगी तो उनका साथ और सह-अस्तित्व बड़ी नदियों को भी बचा लेगा। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में उन महिलाओं का विशेष रूप से जिक्र किया था, जिन्होंने अपनी कोशिशों से मध्यप्रदेश में दम तोड़ती हुई घुरारी नदी को बचा लिया।
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विशेषज्ञों का मानना है कि जहां पृथ्वी पर शुद्ध पानी के स्रोत कम हो रहे हैं, वहीं प्रतिव्यक्ति जल की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यदि नदियों को नहीं बचाया गया, तो आने वाले दिन पूरी मानवता के लिए बहुत कठिन होंगे। इसके लिए जरूरी है कि लोगों को नदियों से जोड़ने की भी पहल हो। जैसे हरियाणा की पंद्रह किलोमीटर लंबी थापना नदी के किनारे रहने वाले लोगों ने पहल की है। यह नदी भी दुर्दशा की शिकार थी। लेकिन लोगों ने इसके पुनरुद्धार के प्रयास किए और जब नदी में जीवन लौट आया, तो सितंबर के आखिरी रविवार को इसका जन्मदिन मनाना शुरू कर दिया। संयोगवश, सितंबर का आखिरी रविवार दुनिया भर में विश्व नदी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
छोटी नदियों के प्रति नहीं रही संवेदनशील
वैज्ञानिकों का कहना है कि लगातार बढ़ रही गर्मी के कारण हिमखंड तेजी से पिघलने लगे हैं। गर्मी के दिनों में नदियों के प्रवाह को अक्षुण्ण रखने का काम ये हिमखंड ही करते हैं। यदि हिमखंड ही नहीं बचे, तो नदियों में पानी की अजस्र धारा कैसे बचेगी? बड़ी नदियों की बुरी हालत का एक कारण यह भी है कि हम छोटी नदियों के प्रति संवेदनशील नहीं रह गए हैं। जबकि छोटी-छोटी नदियां ही अपनी जल संपदा बड़ी नदियों में उड़ेल कर उन्हें समृद्ध करती हैं।