नरपतदान चारण

सुहागरात के दिन उसका पति कमरे में आता है, और उसके हाथों में होती है ‘कुकड़ी’। उस ‘कुकड़ी’ को देखकर वह घबरा जाती है क्योंकि वो जानती है कि क्या होने वाला है,वो अपने घर की औरतों से हमेशा से सुनती आई है कि ससुराल में परीक्षण किया जाता है। लिहाजा, अब उसे डर है कि पति ये परीक्षण करने वाला है कि उसकी बीवी पवित्र है या नहीं।

थोड़ी देर बाद उसका पति वो धागे का गुच्छा लेकर बाहर जाता है और चीख-चीखकर सबको बताता है, ‘अरे, वो खराब है।’ इसके बाद पति के परिजन उस नई दुल्हन से उसके पुराने पुरुष मित्र का नाम पूछते हैं और नाम ना बताने तक उसे तरह तरह की प्रताड़ना देते है। प्रताड़ना से तंग आकर वह लड़की रो-रोकर कहती रह जाती है कि उसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया है, लेकिन ससुराल वाले उसको खूब पीटते हैं।

कहते हैं, पंचायत के सामने वो लड़की मान ले कि उसके शारीरिक संबंध थे। आखिरकार एक दिन वो लड़की मान ही लेती है कि पहले उसके जीजा के साथ संबंध थे। अब ससुराल वाले लड़की के पिता और जीजा के पीछे पड़ जाते हैं और पैसा मांगते हैं। उस लड़की को अपने घर की बहू के रूप में स्वीकार करने के लिए। आखिर में मजबूर होकर लड़की के परिजन हजारों दे देते हैं और जैसे ही पैसा मिल जाता है, वो बहू घर में सबकी दुलारी हो जाती है।

सौ वर्षों से भी पुरानी इस ‘कुकड़ी प्रथा’ को राजस्थान में रहने वाले ‘सांसी’ और महाराष्ट्र के ‘कंजर’ समुदाय के लोग अपनाते हैं। इसके लिए सफेद सूत के धागों से ‘कुकड़ी’ (गेंद जैसा गुच्छा) बनाई जाती है। सुहागरात के दिन परीक्षण में अगर सबकुछ ठीक रहा तो ‘कुकड़ी’ को परिजनों और पंचों को दिखाकर बताया जाता है कि दुल्हन पवित्र है। सबूत के तौर पर सफेद कपड़ा पीहर पक्ष और ‘कुकड़ी’ ससुराल पक्ष को दी जाती है। अगर रक्तस्राव नहीं हुआ और ‘कुकड़ी’ पर खून नहीं लगा है तो इसका मतलब शादी से पहले उसके किसी से संबंध बने हैं।

दूल्हा खुद चिल्ला-चिल्लाकर सबको बताता है कि ये चरित्रहीन है। ससुराल वाले दुल्हन को पीटते हैं। पूछते हैं कि उस लड़के का नाम बता। लड़की के मुंह से नाम जानने के बाद जाति की पंचायत बैठती है, जिसमें लड़की के परिवार पर लाखों रुपए का जुर्माना लगा दिया जाता है। जुर्माने से बचने और अपने पवित्रता साबित करने के लिए लड़की को दो और मौके दिए जाते हैं।

ये है प्रथा के पीछे का इतिहास

इस कुप्रथा को सल्तनत काल और मुगल काल में अपनाया जाता था। दरअसल, जब विदेशी भारत आए तो वो औरतों को उठाकर ले जाते थे। इसके बाद उनका बलात्कार करते थे और फिर जहां मन करता था, फेंककर चले जाते थे। उस जमाने में कई लोग अपनी नई ब्याही बहुओं के कौमार्य परीक्षण के लिए सूत के धागे का इस्तेमाल करते थे। फिर समय के साथ दूसरे समाजों से तो ये घटिया प्रथा खत्म हो गई और लेकिन सांसी , कंजर आदि समुदाय वालों ने इसे अपना लिया।

अब जागरूकता का भी हो रहा उदय

हाल ही की एक घटना है। भीलवाड़ा में ही एक लड़की के परिवार ने लोकलाज के डर से ससुराल पक्ष से बलात्कार का मामला छिपाया, जो शादी के बाद कुकड़ी प्रथा के बाद सामने आ गया। जिसके बाद पंचायत ने पीड़िता पर जुर्माना लगाने की बात कही। इस पर पीड़ित परिवार शिकायत लेकर भीलवाड़ा पुलिस के पास पहुंचा। पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज कर पंचों को पीड़िता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए पाबंद किया। वहीं राज्य महिला आयोग ने भी पीड़िता से संबंधित मामले की पुलिस रिपोर्ट मांग ली।

वैज्ञानिक चेतना की आवश्यकता

अरविंद के अनुसार कुछ लड़कियों का कौमार्य इतना कोमल होता है कि वह साधारण खेलकूद में ही भंग हो जाता है। मासिकधर्म के दिनों में रक्तस्राव सोखने के लिए इंटरनल सैनिटरी पैड रखने से भी यह भंग हो सकता है। घुड़सवारी और दूसरी कई गतिविधियों में हो सकता है। अत: यह बेतुका ही है। मन में इस तरह के भ्रम बना लेना ठीक नहीं है। इसलिए पिछड़े समाजों में वैज्ञानिक चेतना जागृत करने का कार्य किया जाना चाहिए।