महिलाओं को 15 वर्ष के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण मुहैया कराने वाले विधेयक को निकट भविष्य में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संसद में पेश किए जाने के आसार नहीं है।
कानून मंत्री डी वी सदानंद गौड़ा ने राज्यसभा को बताया कि सरकार का यह प्रयास रहा है कि महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई स्थानों पर आरक्षण प्रदान किया जाए। लेकिन इस वास्ते संविधान में संशोधन के लिए विधेयक को सदन के समक्ष लाने से पहले इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के आधार पर गहन विचारविमर्श करने की जरूरत है।
इस आशय का ‘‘संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2008 को तत्कालीन संप्रग सरकार के कार्यकाल में छह मई 2008 को राज्यसभा में पेश किया गया था। उच्च सदन में यह विधेयक नौ मार्च 2010 को पारित कर दिया गया लेकिन 15 वीं लोकसभा में यह पारित नहीं किया जा सका। 15 वीं लोकसभा के विघटन के साथ ही यह विधेयक लेप्स हो गया।
गौरतलब है कि महिला आरक्षण विधेयक 18 साल से लंबित है और इसकी राह में लगातार बाधाएं आती रही हैं। मार्च 2010 में भी जब राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ था तब विधेयक का विरोध करने वाले दलों के सदस्यों के हंगामे के कारण सदन में मार्शल तक बुलाए गए थे।
गौड़ा ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि सरकार शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और इस दिशों में कार्य कर रही है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 243 में संशोधन किया जाना है। यह मामला सरकार के विचाराधीन है।