नॉर्थ कोलकाता के सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स मंगलवार को तीन स्पेशल कैंप की लाइन में खड़ी थीं, इस उम्मीद में कि बंगाल में चल रहे एसआईआर में उनका नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटेगा। वोटर आईडी कार्ड उन महिलाओं के लिए बहुत जरूरी दस्तावेज है, जिनका पता सरकारी कागजों में अक्सर कम मायने रखता है, क्योंकि वे भारत के सबसे बड़े रेड-लाइट इलाकों में से एक में रहती हैं।
18 साल पहले, उन्हें पहली बार एक लोकल को-ऑपरेटिव बैंक में उनके खाते और उसकी पासबुक के आधार पर वोटर के तौर पर एनरोल किया गया था। एसआईआर इन डॉक्यूमेंट्स को मान्यता नहीं देता, इसलिए वोट देने के अधिकार से वंचित होने और उसके संभावित परिणामों का डर शिविरों में साफ दिखाई देता है।
सीईओ मनोज अग्रवाल ने स्पेशल कैंपों का दौरा किया
इन महिलाओं का कहना है कि पहले से ही कई लोग खासतौर पर नेपाली बारी और बांग्लादेशी बारी नाम के वेश्यालयों में रहने वाले लोग, इस डर से चले गए हैं कि कहीं उन्हें अलग-थलग न कर दिया जाए या डिपोर्ट न कर दिया जाए। मंगलवार को चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर मनोज अग्रवाल ने स्पेशल कैंपों का दौरा किया। इन्हें आधिकारिक तौर पर हाशिये पर पड़े मतदाताओं के लिए बनाया गया था। पश्चिम बंगाल की महिला एवं बाल विकास तथा समाज कल्याण मंत्री शशि पांजा भी जायजा लेने पहुंचीं।
एक कैंप में लाइन में खड़े एक वर्कर ने बताया कि पिछली वोटर लिस्ट से फैमिली लिंक को स्थापित करने का ऑप्शन उनके लिए बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “मुझे 16 साल की उम्र में तस्करी करके यहां लाया गया था। जब मैंने वापस लौटने की कोशिश की तो मेरे परिवार ने मुझे त्याग दिया। वे मेरी मदद नहीं करेंगे।”
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एक एनजीओ द्वारा संचालित बोर्डिंग हाउस में रहने वाली एक बच्ची की मां अपने मताधिकार खोने से डरी हुई हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन अधिकारियों ने मुझे आश्वासन दिया है कि वे कुछ करेंगे।” एक और सेक्स वर्कर ने दावा किया कि कुछ साल पहले उसका वोटर कार्ड रद्द हो गया था और वह उसे दोबारा बनवाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, “मैंने 2016 में वोट दिया था। लेकिन 2021 में मुझे बताया गया कि मेरा कार्ड किसी तरह रद्द हो गया है। जब मैंने सुना कि एक कैंप खुला है, तो मैं दौड़ी-दौड़ी यहां आ गई।”
कई लड़कियां एसआईआर शुरू होने के बाद बाहर चली गईं
बिल्डिंग नंबर 3, सोनागाछी लेन की निवासी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मेरी बिल्डिंग की कई लड़कियां, जिनके पास वोटर कार्ड नहीं थे, एसआईआर शुरू होने पर डर के मारे बाहर चली गईं।” कदमतला क्लब में लगे कैंप में कतार में खड़ी एक सेक्स वर्कर फॉर्म में पते की जगह को लेकर चिंतित थी। उसने कहा, “हम छोटे-छोटे कमरों में किराए पर रहते हैं और मकान मालिक के साथ सिर्फ मौखिक तौर पर कॉन्ट्रैक्ट होता है। हम बार-बार बदलते रहते हैं। पते का कोई रिकॉर्ड नहीं है। क्या मेरा वोटर कार्ड रद्द हो जाएगा।”
उसने कहा कि इसी आशंका के चलते उसने पहले गणना फॉर्म नहीं लिया था। उसने कहा, “लेकिन अब मैं यहां कुछ स्पष्ट करने आई हूं। मेरे पास भी यहां की ज्यादातर लड़कियों की तरह आधार कार्ड , पैन कार्ड और बैंक खाता है।” एक 50 साल की महिला ने सोनागाछी की महिलाओं के लिए वोटर कार्ड बनवाने के लिए कोलकाता में हुई रैलियों का हिस्सा होने की याद ताजा की। उन्होंने कहा, “अब वे कह रहे हैं कि ये सब रद्द कर दिया जाएगा। मैं यह जानने आई हूं कि क्या सच में ऐसा है।”
सवालों की झड़ी लगाते हुए उसने कहा, “मेरे पास अपने माता-पिता के दस्तावेज नहीं हैं। मुझे छोटी उम्र में यहां लाया गया था और तब से अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं है। मेरे माता-पिता मर चुके हैं और मेरे भाई मुझे पसंद नहीं करते। लेकिन मेरे बेटे के पास वोटर कार्ड है। क्या वह रद्द हो जाएगा।”
सीईओ अग्रवाल ने कहा कि वे सभी को शामिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। सोनागाछी के 14 मतदान केंद्रों पर लगभग 11400 मतदाता हैं। लगभग 70% गणना फॉर्म वापस जमा कर दिए गए हैं। लगभग 3600 लोगों ने कहा है कि उन्हें फॉर्म नहीं मिले। इसलिए हम उन तक पहुंचने के लिए यहां हैं।
समस्याओं को सुलझाने की कोशिशें कर रहें- सीईओ
अग्रवाल ने माना कि समस्याएं हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि वे उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “कई आवेदकों के पास उचित दस्तावेज नहीं हैं, कई लोगों को अपने परिवारों से रिकॉर्ड मिलान करने में दिक्कत हो रही है। हमारे पास विशेष अधिकार हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। ये शिविर यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि नए मतदाता आसानी से आवेदन कर सकें।”
महिलाओं के पास 2002 के एसआईआर डॉक्यूमेंट नहीं है- मंत्री पांजा
अपने दौरे के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, मंत्री पांजा ने कहा, “यहां की महिलाओं के पास 2002 के एसआईआर दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि आधार कार्ड और बैंक खाते जैसे अन्य दस्तावेज हैं। यहां की महिलाओं की निजता को ध्यान में रखते हुए, ऐसे विशेष शिविरों की आवश्यकता थी।”
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मंगलवार को शिविरों में शामिल हुए नॉर्थ कोलकाता के डीईओ विजय भारती ने कहा कि वे अन्य हाशिये पर पड़े समूहों जैसे अनाथों और वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों तक भी पहुंचेंगे। सेक्स वर्कर्स की एक कम्युनिटी बेस्ड ऑर्गेनाइजेशन की एडवोकेसी ऑफिसर महाश्वेता मुखर्जी ने चुनाव आयोग के सामने सेक्स वर्कर्स की चिंताओं को उठाया। इसी के तहत स्पेशल कैंप की स्थापना की गई। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “एसआईआर के बाद कम से कम 10% लड़कियां इस इलाके से भाग गई हैं।”
2007 में सेक्स वर्कर्स को पहली बार वोटर आईडी कार्ड मिले थे
सेक्स वर्कर्स को पहली बार 2007 में वोटर आईडी कार्ड मिले थे। यह उनके द्वारा 1995 में स्थापित उषा मल्टीपर्पस कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की बदौलत संभव हुआ था। समिति द्वारा दी गई पासबुक की मदद से सेक्स वर्कर्स ने वोटर बनने के लिए आवेदन किया। उषा मल्टीपर्पस कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की संरक्षक भारती डे ने कहा, “हमने रैलियां निकालीं और विरोध प्रदर्शन किए। चुनाव आयोग ने सेक्स वर्कर्स को उनके सहकारी बैंक खातों की डिटेल के आधार पर वोटर लिस्ट में शामिल करने पर सहमति व्यक्त की।”
उषा के मैनेजर और चीफ एग्जीक्यूटिव शांतनु चटर्जी ने कहा, “जिस दिन चुनाव आयोग के अधिकारियों ने सोनागाछी और सहकारी बैंक का दौरा किया और डिटेल की जांच की, 270 सेक्स वर्कर्स को वोटर आईडी कार्ड मिल गए। धीरे-धीरे न केवल सोनागाछी में, बल्कि राज्य के अन्य रेड-लाइट इलाकों में भी हजारों महिलाओं को वोटर आईडी कार्ड मिल गए। फिर आधार और पैन कार्ड आए।”
