भाजपा सरकार साल 2026 तक जनगणना की प्रक्रिया पूरी करने की तैयारी में है। पहले जनगणना होगी और उसके बाद परिसीमन करवाया जाएगा। परिसीमन दक्षिणी राज्यों में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। ऐसी संभावना है कि साउथ इंडिया में इसे लेकर काफी विरोध होगा, क्यों होगा यह आर्टिकल में आगे जानेंगे। दक्षिण में चार राज्यों पर पर गैर-भाजपा दलों का शासन है। इनमें से दो -तमिलनाडु और केरल- में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में विरोध की संभावना बढ़ जाती है।
लेकिन क्यों होगा विरोध?
केवल जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन से सभी दक्षिणी राज्यों में संसद की सीटों की संख्या कम हो सकती है। यह विरोध का सबसे बड़ा कारण बन सकता है। गैर-भाजपा शासित राज्यों-कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना की सरकारें इस बात को लेकर एकमत हैं। सत्ता में मौजूद कांग्रेस, डीएमके और वामपंथी दलों का मानना है कि परिसीमन एक बड़ा मुद्दा है, जो आने वाले वक़्त में तूल पकड़ेगा।
जबकि आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने अक्टूबर में इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में कहा था कि वह वह इस बात से चिंतित नहीं हैं कि परिसीमन के कारण संसद में दक्षिण का प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा।
उन्होंने कहा था, “मुझे चिंता नहीं है। आर्थिक सुधारों के कारण दक्षिणी राज्यों को शुरुआती फायदा मिला था और हमने प्रगति की है। अब उत्तर भारत को भी फायदा मिलना शुरू हो गया है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व के संबंध में मुझे नहीं लगता कि कोई महत्वपूर्ण बदलाव होगा। ऐतिहासिक रूप से राज्यों के संबंध में विधानसभा और संसद दोनों सीटें तय की गई हैं। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में 25 सांसद हैं और मेरा मानना है कि 25 सांसद ही रहेंगे, जनसंख्या के आधार पर सीटें विभाजित की जाएंगी। यही काम जारी रहना चाहिए।”
एक टीडीपी नेता ने कहा, “हम परिसीमन प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे हैं और भविष्य में दक्षिण की समस्याओं के लिए एक व्यावहारिक समाधान निकाल लेंगे।”