Ex CJI Chandrachud: पूर्व सीजेआई का नाम उनकी मां ने धनंजय क्यों रखा। इसकी पीछे एक दिलचस्प किस्सा है। चंद्रचूंड़ ने अपने रिटायरमेंट के अंतिम यह दिलचस्प किस्सा सुनाया था। पूर्व सीजेआई ने कहा था कि मेरी मां ने मुझे बचपन में कहा था कि मैंने तुम्हारा नाम धनंजय रखा है लेकिन तुम्हारे धनंजय का धन भौतिक संपत्ति नहीं हैं। मैं चाहती हूं कि तुम ज्ञान अर्जित करो।
पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ के पिता व देश के पूर्व चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ और उनकी मां प्रभा दोनों शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे। डीवाई चंद्रचूड़ के पिता वाईवी चंद्रचूड़ ने गंधर्व महाविद्यालय से संगीत की शिक्षा ली थी, जबकि मां प्रभा जयपुर घराने की मशहूर शास्त्रीय गायक किशोरी अमोनकर की शिष्या थीं।
‘द वीक’ को दिए एक इंटरव्यू में चंद्रचूड़ ने बताया था कि मेरे माता-पिता एक दूसरे को जानते थे, लेकिन उनकी अरेंज मैरिज ही हुई थी। दोनों साल 1943 में विवाह के बंधन में बंधे थे। उन्होंने बताया कि मेरे माता-पिता ने मुझे भी संगीत सीखने को प्रेरित किया। बचपन में सीखा भी।
पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ कहते हैं कि मेरी मां की गुरु किशोरी अमोनकर हफ्ते में एक बार मां को संगीत सिखाने आया करती थीं। मैं पर्दे के पीछे बैठकर अपनी मां को रियाज करते देखा करता था। कई बार शनिवार को मां के साथ उनके गुरु के घर भी जाता था और वहां छोटे बच्चों के साथ खेला करता था, लेकिन ज्यादातर वक्त दोनों को रियाज करते ही देखता था। संगीत में इतना डूब जाता था कि रो पड़ता था। चंद्रचूड़ कहते हैं कि कई बार तो मेरी मां सोचती थीं कि आखिर क्या हो गया जो मेरा बेटा संगीत सुनते-सुनते रोने लगा, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें कभी वजह समझ में नहीं आई।
किशोरी अमोनकर कौन थीं?
किशोरी अमोनकर प्रख्यात शास्त्रीय गायक थीं। उन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत के बल पर दशकों तक हिंदुस्तान के संगीतप्रेमियों के दिल में अपनी जगह बनाए रखी। 10 अप्रैल 1932 को मुंबई में जन्मी किशोरी अमोनकर को हिंदुस्तानी परंपरा के अग्रणी गायकों में से एक माना जाता है। किशोरी अमोनकर जयपुर-अतरौली घराने की प्रमुख गायिका थीं। वह एक विशिष्ट संगीत शैली का प्रतिनिधित्व करती थीं, जिसका देश में बहुत मान है। किशोरी अमोनकर बचपन से ही संगीतमय माहौल में पली बढ़ीं थी। किशोरी अमोनकर ने न केवल जयपुर घराने की गायकी की बारिकियों और तकनीकों पर अधिकार प्राप्त किया, बल्कि उन्होंने अपने कौशल, बुद्धिमत्ता और कल्पना से एक नई शैली का भी सृजन किया।
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