उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव बीजेपी और सपा के लिए काफी अहम हैं। आमतौर पर उपचुनाव बहुत ज़्यादा चर्चित और हंगामेदार नहीं होते है। कुछ उपचुनाव चर्चित उम्मीदवारों\हॉट सीट की वजह से अहम हो जाते हैं तो कुछ उस दौरान चल रहे मुद्दों की वजह से होते है। लेकिन उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा क्षेत्रों के लिए उपचुनाव के महत्वपूर्ण होने की वजह दूसरी है। यह मुकाबला कई कारणों से दिलचस्प होता जा रहा है, जिसमें भाजपा और विपक्ष दोनों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह चुनाव?
लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्तर प्रदेश की जो तस्वीर निकलकर सामने आई थी उसने सभी को चौंका दिया था। बीजेपी को इस लोकसभा चुनाव 33 सीटें मिलने के बावजूद झटका लगा था क्योंकि समाजवादी पार्टी को 37 सीटों के साथ काफी बढ़त मिली थी।
उत्तर प्रदेश में उपचुनाव जिन 9 सीटों पर होना है, ये सीटें पूरे राज्य में फैली हुई हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तीन, पश्चिमी भाग में चार और मध्य तथा ब्रज क्षेत्र में एक-एक सीट हैं। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित एक सीट है और कुछ निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां मुस्लिम वोट निर्णायक हो सकते हैं।
अगर भाजपा उपचुनाव में हारी तो क्या होगा?
अब लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए बेताब है, ताकि यह संकेत दिया जा सके कि हिंदी पट्टी में लोकसभा में मिली हार शायद एक अपवाद थी। सिर्फ़ यूपी में ही नहीं पार्टी ने हरियाणा और राजस्थान में भी अपनी जमीन खो दी है लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की वापसी ने शायद यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ पर और दबाव बढ़ा दिया है। अगर नतीजे भाजपा के लिए बुरे रहे तो पार्टी में दरार और बढ़ सकती है। वहीं दिल्ली में कुछ लोग इस पर गहरी नजर रख रहे हैं।
सपा के लिए क्या है?
दूसरी ओर सपा को यह साबित करना होगा कि लोकसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी और 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में धीरे-धीरे राजनीतिक बदलाव हो रहा है। उसने सहयोगी कांग्रेस को दरकिनार कर दिया है और सभी नौ उपचुनाव लड़ने का जिम्मा खुद उठाया है।
लेकिन अब तक अभियान में रणनीति बदलने के कोई संकेत नहीं मिले हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने विवादित नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ गढ़ा है, जिसे आरएसएस और पीएम मोदी का समर्थन प्राप्त है। कई लोग इसे जाति जनगणना की पहेली से जोड़ते हैं जिसका सामना भाजपा कर रही है। बीजेपी इस नारे के जरिए सपा की चाल की काट कर सकती है। सपा ने जवाब में नारा दिया है, ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ और अपनी अस्पष्ट पीडीए रणनीति पर कायम रही है।