केरल हाईकोर्ट की जस्टिस के खिलाफ एडवोकेट की तरफ से दायर किया गया केस खारिज कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने वकील को उस बात पर तीखी फटकार लगाई जिसमें उसने फेसबुक पोस्ट को आधार बनाकर जस्टिस के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि फेसबुक लतीफे सुनाने और अपनी बातें शेयर करने का प्लेटफार्म है। हम उसे एविडेंस में शुमार नहीं कर सकते।

हाईकोर्ट ने तीखे तेवर दिखाते हुए कहा कि अगर किसी आम नागरिक ने इस तरह की रिट दाखिल की होती तो कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि वो कानून की जानकारी नहीं रखता। लेकिन 21 साल से अदालत में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट ने ये हरकत की है। वैसे तो ये केस याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाने के लिए बेहद फिट है। लेकिन हम इससे गुरेज कर रहे हैं, क्योंकि याचिका को हाईकोर्ट ने एडमिट ही नहीं किया है।

वकील ने रिट में कहा- महिला जज रजिस्ट्री को देती हैं कम केस लगाने की हिदायत

दरअसल, हाईकोर्ट एडवोकेट यशवंत शिनॉय की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें महिला जस्टिस मेरी जोसेफ पर आरोप लगाया गया था कि वो रोजाना बीस केसों की ही सुनवाई करती हैं। शिनॉय ने कोर्ट से यहां तक कहा कि मास्टर ऑफ रोस्टर चीफ जस्टिस होता लेकिन फिर भी मेरी जोसेफ रजिस्ट्री को हिदायत देकर कहतीं हैं कि वो रोस्टर में उनकी अदालत के पास बीस केसों से ज्यादा लिस्ट न करे।

एडमिशन कोर्ट से हियरिंग कोर्ट की तुलना नहीं कर सकते- हाईकोर्ट

जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने एडवोकेट की हर बात का जवाब कानूनी तरीके से दिया। जस्टिस का कहना था कि वकील को ये बात ध्यान में रखनी होगी कि एडमिशन कोर्ट की तुलना हियरिंग कोर्ट से न की जाए। एडमिशन कोर्ट के पास याचिकाएं लिस्ट होती हैं तो उन्हें मेरिट के आधार पर उन्हें रिजेक्ट या एडमिट करना होता है। उनके पास रोजाना पचास केस भी लगे हो सकते हैं तो 100 भी। अलबत्ता हियरिंग कोर्ट की कार्यप्रणाली एडमिशन कोर्ट की तुलना में जटिल होती है। हियरिंग कोर्ट तमाम तथ्यों के आधार पर किसी नागरिक के जीवन का फैसला करती है। वो आनन फानन में किसी केस के बारे में निर्णय नहीं ले सकती। कई दफा सारे का सारा दिन मामले को परखने में लग जाता है।

जजों के काम करने का अपना अपना तरीका, सभी एक जैसे नहीं हो सकते

हाईकोर्ट ने जजों के सुनवाई करने के तरीके को भी विस्तार से बयां किया। जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन का कहना था कि कुछ जज दस्तावेजों को डिटेल में पढ़ते हैं और उसके आधार पर केस के बारे में अपनी राय बना लेते हैं। लेकिन कुछ जज वकीलों के मुंह से सच को बाहर लाना चाहते हैं।