बिहार की कोर्ट ने एक मामले में आरोपी की बेल खारिज करके उसे जेल भेजने का आदेश दिया तो सुप्रीम कोर्ट का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने पटना के पब्लिक प्रॉस्टीक्यूटर पर भड़कते हुए कहा कि जब बेल के मामले में हमने एक बार आदेश दे दिया है तो उसकी पालना क्यों नहीं की जा रही है। उन्होंने यहां तक भी कहा कि जब बेल रिजेक्ट की गई तो आपने मजिस्ट्रेट को हमारा आदेश क्यों नहीं दिखाया।

जस्टिस संजय किशन कौल जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने आरोपी को अंतरिम राहत देते हुए पटना के मजिस्ट्रेट की कोर्ट के 8 सितंबर 2022 को दिए आदेश को रद करते हुए बेल की एप्लीकेशन किसी दूसरी कोर्ट में सुने जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि कोई हमारा फरमान न माने ये मंजूर नहीं होगा। बेंच ने ये भी कहा कि जब तक दूसरी कोर्ट जमानत पर फैसला नहीं देती तब तक आरोपी को अरेस्ट नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- मजिस्ट्रेटों को ट्रेनिंग सेंटर में भेज दिया जाएगा

दोनों जस्टिसों के तेवर इतने ज्यादा तल्ख थे कि उन्होंने यहां तक कहा कि हमने एक आदेश की पालना के लिए कई बार फरमान जारी किए हैं। लोअर कोईट के साथ सारे हाईकोर्ट्स को समझना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है। लेकिन उसके बाद भी नाफरमानी की जा रही है। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिनों पहले अपने आदेश में यहां तक कहा था कि अगर उसका आदेश नहीं माना गया तो आरोपियों को जबरन जेल भेजने वाले मजिस्ट्रेटों को ट्रेनिंग सेंटर में भेज दिया जाएगा। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश लैंड ऑफ लॉ है। इसे मानना जरूरी है।

सतेंद्र आंतिल केस में जस्टिस कौल ने दिया था फरमान

सतेंद्र आंतिल के केस में जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा था कि आरोपियों को जेल भेजना समस्या का सही समाधान नहीं है। कोर्ट की चिंता जेलों में हो रही विचाराधानी कैदियों की भरमार को लेकर थी। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा था कि लोअर कोर्ट बेल के मामलों में आरोपी को तब तक जेल न भेजें जब तक कि उसके खिलाफ दर्ज केस बेहद गंभीर न हो।

शीर्ष अदालत का कहना था कि सरकारें भी जेलों में कम गंभीर मामलों में बंद कैदियों की रिहाई को लेकर उपाय करें। बहुत से विचाराधीन कैदी बेहद साधारण मामलों में लंबे अरसे से जेल में बंद हैं। पिछली सुनवाई के दौरान एमीकस क्यूरी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कुछ राज्यों ने अभी तक इस बात को लेकर हलफनामा दायर नहीं किया है कि विचाराधीन कैदियों को रिहा करने के मामले में वो क्या कदम उठाने जा रहे हैं।