Sangam Nose Bathing Importance: प्रयागराज महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य कमाने की इच्छा से देश-दुनिया से करोड़ों लोग पहुंचे। उन्होंने महाकुंभ में स्नान किया, विभिन्न तीर्थों की यात्रा की और दर्शन-पूजन किया। लेकिन मौनी अमावस्या पर जब लाखों श्रद्धालु विशेष रूप से संगम नोज पर स्नान के लिए उमड़ पड़े, तब अफरा-तफरी का माहौल बन गया। प्रशासन और संत समाज ने स्पष्ट किया कि प्रयागराज के किसी भी घाट पर स्नान करने से उतना ही पुण्य मिलेगा जितना संगम नोज पर, फिर भी श्रद्धालु वहां जाने की होड़ में लगे रहे।
संगम की ओर ही क्यों उमड़ती है भीड़?
श्रद्धालुओं की यह धारणा है कि कुंभ-महाकुंभ का पुण्य लाभ केवल संगम नोज पर ही मिलेगा, जहां तीनों नदियों का संगम होता है। किंतु पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत की बूंदें संपूर्ण प्रयागराज में गिरी थीं, जिससे पूरा क्षेत्र पुण्यदायी और फलदायी माना जाता है। विद्वानों के अनुसार प्रयागराज में स्थित सभी घाटों का समान महत्व है।
Sangam Nose vs Other Ghats: प्रयागराज के प्रमुख घाट और उनका महत्व
Prayagraj Bathing Ghat List: महाकुंभ के लिए प्रशासन ने कुल 41 घाट तैयार किए हैं, जिनमें 10 पक्के और 31 अस्थायी घाट शामिल हैं। इनमें से प्रमुख घाट इस प्रकार हैं:
गंगा नदी के घाट यानी वे घाट जहां पर सिर्फ गंगा का जल है।
दशाश्वमेध घाट: यह घाट प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले के सामने स्थित है। सावन में जलाभिषेक के लिए लोग यहीं से जल ले जाते हैं।
रसूलाबाद घाट: प्रयागराज में यह घाट शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित रसूलाबाद मोहल्ले में स्थित है। यहां पर पक्का घाट बनाया गया है। इसका नाम चंद्रशेखर आजाद घाट भी है क्योंकि अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी ही गोली से शहीद हुए चंद्रशेखर आजाद का अंतिम संस्कार यहीं हुआ था।
शंकर घाट: रसूलाबाद घाट के बगल में तेलियरगंज मोहल्ले में गंगा तट पर शंकर घाट है। यहां प्रसिद्ध नागेश्वर महादेव मंदिर भी है।
द्रौपदी घाट: प्रयागराज स्थित 12 माधवों में से एक बिंदु माधव की स्थली द्रौपदी घाट वैष्णव साधुओं के लिए प्रमुख तीर्थस्थल है।
रामघाट: संगम क्षेत्र में संगम नोज के पास स्थित इस घाट पर शहर के वे लोग आया करते हैं, जो पूरे साल गंगा स्नान करते हैं।
दारागंज श्मसान घाट: दारागंज में शास्त्री पुल के आरंभ बिंदू के पास स्थित इस घाट पर आम तौर पर अंतिम संस्कार के लिए लोग आया करते हैं।
शिवकुटी घाट: यह घाट तेलियरगंज के पास ही शिवकुटी मोहल्ले में स्थित है। इसको कोटेश्वर घाट भी कहते हैं।
यमुना नदी के घाट यानी वे घाट जहां पर सिर्फ यमुना का जल है।
बलुआ घाट: शहर के पुराने मोहल्लों में से एक दरियाबाद इलाके में स्थित बलुआ घाट पक्की सीढ़ियों वाला घाट है। यहां पर इस्कॉन मंदिर और काशी नरेश का महल भी है।
गऊघाट: शहर के पुराने रेलवे पुल के पास नीचे यह घाट स्थित है। यहां पर बड़ी संख्या में लोग स्नान करने आते हैं।
बोट क्लब घाट: यह घाट सरस्वती घाट और गऊघाट के बीच स्थित है। यहां पर बोट क्लब बना हुआ है। स्थानीय लोग यहां नौका विहार करते हैं। यहीं पर त्रिवेणी महोत्सव का भी आयोजन होता है।
सरस्वती घाट: यह घाट अकबर के किले के पास स्थित मनकामेश्वर महादेव के मंदिर के बगल में है। इसके पास में ही सरस्वती पार्क और मिंटो पार्क है। यहां पर भी वोटिंग होती है और बड़ी संख्या में लोग नौकायन करते हैं। यहां से संगम जाने के लिए हर समय नाव मिलती हैं।
किला घाटः अकबर के किले के ही पास स्थित इस घाट से हर जगह जाने के लिए नाव मिलती है। यह एक प्रमुख घाट है और संगम के काफी करीब है।
अरैल घाट: नैनी क्षेत्र में स्थित अरैल घाट यमुना नदी के किनारे बना हुआ है, यह घाट अकबर के किले और त्रिवेणी संगम के ठीक सामने स्थित है। इसी क्षेत्र में त्रिवेणी पुष्प, जैन मंदिर, बौद्ध विहार, पक्की बारादरी, सीढ़ी वाला घाट बने हुए हैं। यह का दृश्य प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ है। कुंभ और महाकुंभ के अवसर पर यहीं पर वीआईपी घाट बनाए जाते हैं और विशिष्ट लोगों के लिए यहीं पर ठहरने और आने-जाने की व्यवस्था है। सभी बड़े संतों का आश्रम और उनके शिविर यहीं पर बने हुए हैं।
सोमेश्वर महादेव घाट: अरैल घाट के पास सोमेश्वर महादेव मंदिर के सामने सोमेश्वर घाट है। यहां पर काफी लोग स्नान करने जाते हैं। यही वह घाट है, पर जहां संगम के बाद संगम का जल आगे गंगा के रूप में बढ़ता है।
संत समाज के अनुसार प्रयागराज के सभी घाटों पर स्नान करने से समान पुण्य प्राप्त होता है क्योंकि संगम का जल प्रवाहित होकर पूरे क्षेत्र में फैलता है। इसलिए केवल संगम नोज पर भीड़ लगाने की आवश्यकता नहीं है। श्री लक्ष्मी नारायण आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी विमलेशाचार्य जी महाराज के अनुसार कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज के किसी भी घाट का जल त्रिवेणी का ही जल है। ऐसे में संगम नोज पर भीड़ लगाने के बजाय श्रद्धालुओं को अन्य घाटों पर भी स्नान करना चाहिए ताकि अव्यवस्था न हो और सभी सुरक्षित रहें।
यमुना नदी प्रयागराज में आकर गंगा में विलीन हो जाती हैं। यानी यमुनोत्री से निकलीं यमुना प्रयागराज में गंगा में समा जाती हैं। इसके आगे फिर वह संगम का जल गंगा के रूप में ही विंध्याचल, मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया से पटना होते हुए बंगाल की खाड़ी स्थित गंगासागर में जाकर मिलती हैं। महाकुंभ के बारे में और जानने के लिए यहां पढ़ें