Who was Sitaram Yechury: भारतीय वामपंथी राजनीति के अहम स्तंभ और सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी का आज दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया है, वे लंबे वक्त से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और उनका अस्पताल में इलाज जारी था। सीताराम येचुरी का राजनीतिक करियर काफी विराट रहा, वे दो बार राज्यसभा के सांसद भी रहे थे। उनका राज्यसभा सांसद के तौर पर दूसरा कार्यकाल साल 2017 में खत्म हुआ था।
साल 1952 में 12 अगस्त को चेन्नई के जन्मे लेफ्ट दिग्गज सीताराम येचुरी की प्रारंभिक जीवन की बात करें तो वे हैदराबाद में पले-बढ़े थे, उन्हें दसवीं कक्षा तक ऑल सेंट्स हाई स्कूल में बढ़ाई की थी। वे तेलंगाना आंदोलन के दौरान साल 1969 में दिल्ली आ गए थे और यहीं से उनकी सियासी शुरुआत हो गई थी।
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1975 में आपातकाल के दौरान तीन बार हुई थी गिरफ्तारी
सीताराम येचुरी ने दिल्ली के प्रेसिडेंट्स एस्टेट स्कूल में दाखिला लिया और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में ऑल इंडिया नंबर वन रैंक हासिल की। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में BA (ऑनर्स) और JNU से अर्थशास्त्र में MA में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने अर्थशास्त्र में PHD करने के लिए JNU में एडमिशन लिया था, लेकिन उसे 1975 में ‘आपातकाल’ के दौरान उनकी गिरफ्तारी के चलते कैंसिल कर दिया गया था।
सीताराम येचुरी साल 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) में शामिल हुए थे। वे एक साल बाद वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPIM) में शामिल हो गए थे। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे, जिसका नेतृत्व स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) करता था। आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। वे प्रकाश करात के साथ मिलकर जेएनयू को वामपंथी गढ़ बनाने के लिए ज़िम्मेदार थे।
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दक्षिणपंथी विचारधारा को रोकना रहा मकसद
इसके बाद सेल 1984 में वे CPIM की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए। येचुरी को संगठन में पूर्णकालिक सदस्य बनने में बहुत कम समय लगा था। 1978 से 1998 तक वे व्यक्तिगत रूप से पार्टी में आगे बढ़ते रहे। वे हमेशा ऐसी सियासत करते थे, जिनका मकसद दक्षिणपंथी सोच वालों को सत्ता से बाहर रखने का था। उन्होंने और पी चिदंबरम के साथ मिलकर 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार किया था। उन्होंने पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को CPIM का समर्थन दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
न्यूक्लियर डील के दौरान हुए थे चर्चित
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत के दौरान, येचुरी ने राज्यसभा में वे सभी शर्तें सूचीबद्ध कीं थीष मनमोहन सिंह सरकार द्वारा सभी शर्तें पूरी करने के बाद, प्रकाश करात ने उन्हें खारिज कर दिया, जिन्होंने दावा किया कि समझौता अभी भी सीपीएम के “स्वतंत्र विदेश नीति” के विचार का उल्लंघन करता है। ऐसा कहा जाता है कि येचुरी “नाराज और असहाय” महसूस कर रहे थे।