देश की आजादी में कई क्रांतिकारियों ने एक अहम भूमिका निभाई थी, कई सपूतों ने अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी। ऐसे ही एक महान सपूत का नाम था खुदीराम बोस।
कौन थे खुदीराम बोस?
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, ऐसा ही कुछ खुदीराम बोस के साथ भी था, बचपन से ही देश भक्ति की अलख उनके अंदर जलती रहती थी, अंग्रेजों के खिलाफ भी वे लगातार मोर्चा खोलते रहते थे।
खुदीराम बोस के अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन
इस बीच देश में कई समीकरण तेजी से बदल रहे थे। 19 जुलाई 1905 को पश्चिम बंगाल को अंग्रेजी हुकूमत ने दो हिस्सों में बांट दिया था- एक हिस्सा तो बना पूर्वी बंगाल और असम, वही दूसरा हिस्सा बना पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा। अब इस बंगाल विभाजन से कई क्रांतिकारी आक्रोशित थे, उन्हीं में से एक रहे खुदीराम बोस जिन्होंने तब युगांतर जैसे संगठनों के साथ जुड़कर अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का नया मोर्चा खोल दिया।
क्या है मुजफ्फरपुर कांड?
अब वैसे तो खुदीराम बोस ने अपनी जीवन काल में देश के लिए कई बार कुर्बानियां दीं, लेकिन सभी के जहन में मुजफ्फरपुर बम कांड ताजा है। असल में उस जमाने में मुजफ्फरपुर में एक जज हुआ करते थे, उनका नाम था- डगलस किंग्सफोर्ड। अब उस जज की सिर्फ एक खासियत थी कि वो हर क्रांतिकारी के खिलाफ सख्त से सख्त फैसला सुनाते थे। ऐसी में खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने उन्हें मारने की तैयारी की, रणनीति ऐसी थी कि जज किंग्लफोर्ड जब अपनी बग्घी से आएंगे तो उस पर बम फेंका जाएगा। अब उन दोनों ने बम से हमला किया भी, लेकिन निशाना चूक गया और दो अन्य ब्रिटिश महिलाओं की मौत हो गई।
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खुदीराम बोस को कब हुई फांसी?
उस एक कांड के बाद खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी दो अलग-अलग दिशाओं में भाग गए। बाद में थक हार कर प्रफुल्ल ने तो आत्महत्या कर ली, वही खुदीराम बोस को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया। फिर 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई।
खुदीराम बोस की अर्थी क्यों थी खास?
उस जमाने के एक मशहूर वकील और अंग्रेजी अखबार बंगाली के रिपोर्टर उपेंद्रनाथ सेन एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं। उनके मुताबिक खुदीराम बोस के लिए जो अर्थी तैयार की गई थी उस पर वंदे मातरम उकेरा गया था।
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