छत्तीसगढ़ में एक मुठभेड़ में सीपीआई (माओवादी) प्रमुख नंबाला केशव राव (जिन्हें उनके युद्ध नाम बसवराजू से जाना जाता है) को एक एनकाउंटर में मार गिराया गया था। उनके मारे जाने के महीनों बाद तेलंगाना खुफिया विभाग के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि प्रतिबंधित पार्टी के सैन्य प्रमुख थिप्पीरी तिरुपति उर्फ देवूजी ने अब इसके नए महासचिव का पदभार संभाल लिया है।

कौन है तिरुपति?

पिछले दो दशकों से तिरुपति सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय सैन्य आयोग या सैन्य शाखा के प्रमुख थे। संगठन को 2009 से सरकार द्वारा एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है। मई में मुठभेड़ के बाद 62 वर्षीय तिरुपति का नाम बसवराजू के संभावित उत्तराधिकारी के रूप में भारतीय खुफिया एजेंसियों के रडार पर आया था।

तेलंगाना के जगतियाल जिले (जिसे करीमनगर के नाम से जाना जाता था) के रहने वाले तिरुपति मडिगा दलित समुदाय से हैं। राज्य के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “तिरुपति का नेतृत्व महत्वपूर्ण होगा क्योंकि वह एक हाशिए की पृष्ठभूमि से आते हैं और आदिवासियों सहित पार्टी के कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सकते हैं।” तिरुपति, जो सीपीआई (माओवादी) पोलित ब्यूरो के शेष तीन सदस्यों में से एक हैं। खुफिया अधिकारी ने कहा, “अब जब पुराने नेतृत्व के कई लोग मारे जा चुके हैं, तो दूसरी श्रेणी का नेतृत्व ही पार्टी का मार्गदर्शन करेगा।”

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तिरुपति, मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू से आगे चल रहा था। सोनू भी खुफिया अधिकारियों के अनुसार दावेदारों में से एक थे। सोनू को संगठन का वैचारिक प्रमुख माना जाता है। माना जाता है कि दोनों माओवादी नेताओं पर एक-एक करोड़ रुपये का इनाम है और वे दक्षिणी छत्तीसगढ़ के पहाड़ी और जंगली इलाके अबूझमाड़ में छिपे हुए हैं। ये इलाका लंबे समय से विद्रोहियों का गढ़ रहा है।

पोती ने लगाई थी गुहार

मई में बसवरजू के एनकाउंटर के बाद तिरुपति की पोती ने एक वीडियो बयान जारी कर अपने दादा से छिपने की जगह से बाहर आकर आत्मसमर्पण करने की अपील की। उन्होंने कहा, “प्रिय दादाजी, कृपया घर आइए। मैं हमेशा से आपसे मिलने के लिए तरसती रही हूं, लेकिन दुख की बात है कि कभी मौका नहीं मिला। जब भी मैं मीडिया में आपके बारे में पढ़ती हूं, मुझे गर्व और दर्द दोनों महसूस होता है। मुझे पता है कि आपने एक समतावादी समाज के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, लेकिन हाल की घटनाएँ बेहद दुखद रही हैं।”

कई अन्य माओवादी नेताओं की तरह, तिरुपति भी रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन (RSU) की उपज हैं, जो 1975 में हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में एक दक्षिणपंथी समूह के सदस्यों द्वारा एक छात्र नेता की कथित हत्या के बाद उभरा था। हालांकि पिछले पांच दशकों में, खासकर 1992 में सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाने के बाद, आरएसयू का प्रभाव कम हुआ है। लेकिन इस समूह ने सीपीआई (माओवादी) के कार्यकर्ताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

2000 में, तिरुपति ने पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी का गठन किया, जो चार साल बाद सीपीआई (माओवादी) के पूर्ववर्ती संगठनों में से एक की सशस्त्र शाखा थी। ऐसा माना जाता है कि वह 2007 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में हुए एक हमले में शामिल था, जहां माओवादियों ने एक पुलिस बेस कैंप पर हमला किया था और 55 सुरक्षाकर्मियों को मार डाला था। तिरुपति को अप्रैल 2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में हुए घात लगाकर किए गए हमले में भी भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे।

तिरुपति ऐसे समय में महासचिव का पद संभाल रहे हैं जब माओवादी संकट में हैं। पोलित ब्यूरो के एक दस्तावेज़ के अनुसार (जिसे द इंडियन एक्सप्रेस ने पहले देखा था) सीपीआई (माओवादी) ने अपने कार्यकर्ताओं को पीछे हटने के लिए कहा है क्योंकि परिस्थितियाँ आक्रामक अभियानों के लिए अनुकूल नहीं हैं। केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बल छत्तीसगढ़ और आसपास के राज्यों में माओवादियों पर शिकंजा कस रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि 2026 तक वामपंथी उग्रवाद का सफाया कर दिया जाएगा।