Who is Justice Shekhar Kumar Yadav: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव ने रविवार को विहिप के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देकर विवाद खड़ा कर दिया। समान नागरिक संहिता पर बोलते हुए जस्टिस यादव ने विवादास्पद टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत बहुसंख्यक आबादी की इच्छा के अनुसार काम करेगा।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस यादव ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। यह कानून है। यह हाईकोर्ट के जज के तौर पर बोलने जैसा नहीं है; बल्कि कानून बहुसंख्यकों के हिसाब से चलता है। इसे परिवार या समाज के संदर्भ में देखें तो बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी सुनिश्चित करने वाली बात ही स्वीकार की जाएगी।
जज ने अपने भाषण के दौरान कई अन्य विवादास्पद टिप्पणियां कीं, जिनमें मुसलमानों के खिलाफ अपमानजनक शब्द “कठमुल्ला” का प्रयोग भी शामिल था। उन्होंने चरमपंथियों को “कठमुल्ला” कहा और सुझाव दिया कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। जज यादव की पहली की टिप्पणियों और बयानों पर करेंगे तो देखेंगे कि किस प्रकार उन्होंने पहले भी अपने बयानों से विवाद खड़ा किया है। ऐसे में जस्टिस शेखर यादव के बारे में जानते हैं।
जज जस्टिस शेखर यादव कौन हैं?
जस्टिस यादव वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज हैं। 16 अप्रैल, 1964 को उनका जन्म हुआ। यादव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानूनी शिक्षा प्राप्त की। 1988 में कानून की डिग्री के साथ स्नातक किया। 1990 में उन्होंने एक वकील के रूप में नामांकन कराया और इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुख्य रूप से सिविल और संवैधानिक कानून पर केंद्रित कानूनी करियर की शुरुआत की।
जज शेखर यादव ने उत्तर प्रदेश राज्य के लिए अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता और स्थायी वकील के रूप में काम किया और बाद में अतिरिक्त मुख्य स्थायी वकील की ज़िम्मेदारी संभाली। उन्होंने भारत संघ और रेलवे के लिए वरिष्ठ पैनल वकील के रूप में भी काम किया और वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के स्थायी वकील के रूप में प्रतिनिधित्व किया।
12 दिसंबर 2019 को जस्टिस यादव को इलाहाबाद हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 26 मार्च 2021 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख 15 अप्रैल 2026 है।
जज शेखर यादव के बयानों से कब-कब विवाद खड़ा हुआ?
कोर्ट के बाहर की टिप्पणियों के अलावा जस्टिस यादव ने अपने कुछ निर्णयों में वैचारिक रंग भरा है। अक्टूबर 2021 में यादव ने केंद्र सरकार से भगवान राम, भगवान कृष्ण, रामायण, महाभारत, भगवद गीता और अन्य को सम्मान देने के लिए एक कानून लाने की अपील। उस मामले में जमानत देते हुए उन्होंने राम जन्मभूमि विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और कहा कि यह उन लोगों के पक्ष में था जो “राम” में विश्वास करते हैं।
जज यादव ने कहा था कि राम इस देश के हर नागरिक के दिल में बसते हैं, वह भारत की आत्मा हैं। इस देश की संस्कृति राम के बिना अधूरी है।
जस्टिस शेखर यादव ने इस बात पर भी जोर दिया कि भगवान कृष्ण और राम के सम्मान के लिए कानून लाने के साथ-साथ देश के सभी स्कूलों में इसे अनिवार्य विषय बनाकर बच्चों को शिक्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति सुसंस्कृत बनता है और अपने जीवन मूल्यों और अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक होता है।
सितंबर 2021 में उन्होंने कहा था कि सरकार को संविधान के भाग तीन के तहत गायों को मौलिक अधिकारों के दायरे में शामिल करने के लिए कानून लाना चाहिए और गायों को नुकसान पहुंचाने की बात करने वालों को दंडित करने के लिए सख्त कानून बनाना चाहिए।
‘गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए’
उत्तर प्रदेश में गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा था कि गाय भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग है और उसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि गाय की रक्षा का काम केवल एक धार्मिक संप्रदाय का नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर नागरिक का है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। उन्होंने कहा था कि जब गाय का कल्याण होगा, तभी देश का कल्याण होगा। इसी क्रम में उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिकों का मानना है कि गाय एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन लेती और छोड़ती है।
जुलाई 2021 में एक महिला को गैरकानूनी रूप से इस्लाम में परिवर्तित करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए जस्टिस यादव ने कहा कि देश में धार्मिक कट्टरता, लालच या भय के लिए कोई जगह नहीं है और यदि बहुसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति अपमानित होने के बाद दूसरे धर्म में परिवर्तित हो जाता है, तो देश कमजोर हो जाता है, जिससे विनाशकारी शक्तियों को लाभ मिलता है।
हालांकि, जज शेखर यादव के ताजा बयान की काफी आलोचना हो रही है। कई लोगों ने उनकी न्यायिक निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनके पालन पर गंभीर चिंता जताई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने क्या कहा?
वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने न्यायमूर्ति यादव के भाषण पर कड़ी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि जजों द्वारा अपने पद की शपथ के विपरीत भाषणों को सामान्य बनाना कुछ समय से चल रहा है। अधिवक्ता परिषद (आरएसएस की कानूनी शाखा) जैसे संगठनों को मेरे कानूनी करियर के शुरुआती वर्षों में ज़्यादा जगह नहीं दी गई थी। आज, वे सभी अदालतों के न्यायाधीशों की मेज़बानी करते हैं जो स्वेच्छा से उनके कार्यक्रमों में शामिल होते हैं और उनके कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
रेबेका जॉन ने आगे कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने न केवल विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया, बल्कि एक ऐसा भाषण दिया जो नफ़रत भरे भाषण की सीमा पर है और उनके पद की शपथ की हर पंक्ति का उल्लंघन करता है। यह स्पष्ट प्रश्न उठाता है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पहले उनके नाम की संस्तुति कैसे की और अब वह उनके साथ कैसे पेश आने की योजना बना रहा है। उनका भाषण संविधान पर हमला है और इस पर महाभियोग चलाया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि लेकिन, कुछ नहीं होगा और यही बात इस सबको बहुत परेशान करने वाली बनाती है। संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का अस्तित्व बहुत पहले ही समाप्त हो चुका है।
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