भारत में मौजूद हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र में इजाफा किया जाना चाहिए। संसदीय समिति ने इसके लिए अपनी रिपोर्ट में बड़ी अनोखी दलील दी है। समिति का कहना है कि 1960 के दशक में जब भारत में संभावित उम्र 40 साल थी तब हाईकोर्ट्स के जजों की सेवानिवृत्ति की सीमा 62 साल और सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए ये आंकड़ा 65 साल रखा गया था। मेडिकल साइंस में तरक्की के बाद संभावित उम्र 70 साल तक जा पहुंची है। इसके परिपेक्ष्य में समिति की सिफारिश है कि जजों की रिटायरमेंट AGE भी बढ़ाए जाने की जरूरत है।
बीजेपी सांसद सुशील मोदी की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने ये रिपोर्ट बीती 7 अगस्त को संसद में पेश की है। समिति में 10 लोकसभा सदस्य हैं जबकि 31 सांसद राज्यसभा से हैं। समिति का मानना है कि हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र में इजाफा होने से न्यायपालिका पर सकारात्मक असर पड़ेगा, क्योंकि अनुभवी जज लंबे समय तक अदालतों में काम करने में सक्षम होंगे।
जजों की सेहत और फैसलों की धार देखने के बाद कॉलेजियम करे सिफारिश
हालांकि समिति ने इसके लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिन पर कॉलेजियम को अमल करना है। समिति का कहना है कि जजों की सेहत को देखने के बाद कॉलेजियम को देखना होगा कि वो जो फैसले दे रहे हैं उनका स्तर क्या है। कॉलेजियम को उन जजों की रिटायरमेंट AGE बढ़ाने की सिफारिश सरकार को भेजनी चाहिए, जो इन मानकों पर खरा उतरते हैं। तभी न्यायपालिका को फायदा मिल सकेगा।
वैसे केंद्र की राय समिति से इत्तेफाक नहीं रखती। केंद्र का मानना है कि ये प्रयोग सही साबित नहीं होगा, क्योंकि IAS और IPS भी इसी तरह की मांग करेंगे। समिति ने सरकार की आशंका को खारिज करते हुए कहा है कि जजों को किसी दूसरी सरकारी सेवा के समानांतर खड़ा करना ठीक नहीं होगा।
Justice MN Venkatachaliah ने भी अपनी रिपोर्ट में कही थी ये बात
समिति का कहना है कि जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ने से कुछ दूसरे फायदे भी होंगे। इससे सबसे बड़ा फायदा कोर्ट में केस दायर करने वाले लोगों को होगा। जजों के पद खाली रहने से केस लंबित रह जाते हैं। जज होंगे तो वो केस सुनेंगे और उनका निपटारा भी तुरंत हो सकेगा। Personnel, Public Grievances, Law and Justice की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी 133वीं रिपोर्ट में कहा है कि इसके लिए संविधान में जरूरी बदलाव किए जाने की जरूरत है। याद रहे कि 2000 में Justice MN Venkatachaliah Commission ने भी ये सिफारिश की थी।