CJI DY Chandrachud: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को रिटायर हो जाएं, लेकिन रिटायर होने से पहले उनके फैसलों को लेकर काफी चर्चा हो रही है। इन्हीं चर्चाओं के बीच सीजेआई चंद्रचूड़ को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता और पूर्व सीजेआई वाई.वी. चंद्रचूड़ के फैसले को पलट दिया था।
जिसमें पहला एडीएम जबलपुर केस और दूसरा व्यभिचार से जुड़े मामले का था। सीजेआई चंद्रचूड़ से जब अपने पिता के फैसले को पलटने के बारे में सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा था कि बतौर जज हमारी ट्रेनिंग ही ऐसी हुई है।
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NDTV से बातचीत में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक जजमेंट, जजमेंट होता है। बतौर जज आपको अपने दिमाग और तर्क शक्ति का इस्तेमाल करना होता है। आपको यह पता तो होता ही है कि यह जजमेंट किसका है, जिसे आप पलटने जा रहे हैं या खिलाफ में फैसला देने वाले हैं। मुझे भी पता था कि मैं अपने पिता के फैसले को पलट रहा हूं। एडीएम जबलपुर और सौमित्र विष्णु केस में यह हुआ, लेकिन एक जज के तौर पर हमारी ट्रेनिंग ही इस तरह की होती है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कब पलटा पिता का फैसला?
सीजेआई चंद्रचूड़ दो बार अपने पिता जस्टिस वाई.वी.चंद्रचूड़ का फैसला पलट चुके हैं। पहला मामला बहुचर्चित एडीएम जबलपुर केस है। 28 अप्रैल 1976 को जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़, पांच जजों की उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 4:1 के बहुमत से कहा था कि इमरजेंसी के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और नागरिक अपनी सुरक्षा के संवैधानिक अधिकार के लिए कोर्ट का रुख नहीं कर सकते हैं। करीब 41 साल बाद जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू के लिए आया तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को पलट दिया।
दूसरा मामला व्यभिचार के कानून से जुड़ा है। 1985 में तत्कालीन चीफ जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ ने धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा था। बाद में जब यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू के लिए आया तब उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ फैसला दिया और कहा कि हमें अपने फैसलों को वर्तमान समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए।