Gyanvapi ASI Survey: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को ज्ञानवापी परिसर में एएसआई के सर्वे की अनुमति दे दी है। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वे का काम दोबारा शुरू कर दिया है। एएसआई इस दौरान वजूखाने और कथित शिवलिंग को छोड़कर पूरे परिसर का सर्वे करेगी। इस काम में आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) की एक टीम की भी मदद ली जा रही है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होना चाहिए। आखिर एएसआई क्या है और इसने अब तक किन बड़े मामलों में सर्वे किया है, विस्तार से समझते हैं।
ASI क्या है?
एएसआई यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Archaeological Survey of India) की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में आज से करीब 162 साल पहले 1861 में की गई थी। यह संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसका प्रमुख काम देश के प्राचीन स्मारकों को संरक्षित रखने और खुदाई में मिली चीजों का एतिहासिक पहलु खोज निकालना है। यह आधुनिक तकनीक की मदद से पुरातत्व इमारतों और चीजों का सर्वेक्षण करती है। इसमें इमारत या खंडहर के सर्वे के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और मॉडर्न तकनीक का सहारा लिया जाता है। वहीं किसी इमारत की उम्र निकालने के लिए कार्बन डेटिंग का भी इस्तेमाल करती है। कार्बन डेटिंग के जरिए यह पता लगाया जाता है कि यह इमारत या खंडहर कितना पुराना है।
बाबरी मस्जिद के सर्वे ने बदली देश की राजनीति
अयोध्या में राममंदिर के निर्माण और सुप्रीम कोर्ट के फैसले में एएसआई की अहम भूमिका रही है। एएसआई ने बाबरी मस्जिद का कुल चार बार सर्वे किया था। इसका सर्वे सामने के बाद देश की राजनीति पूरी तरह बदल गई। ASI ने सबसे पहले साल 1975-76 में अयोध्या में स्थित बाबरी मस्जिद का सर्वेक्षण शुरू किया था। इसकी रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर जैसे खंभे होने की बात कही थी। सर्वे के बाद से ही राम मंदिर बनाने की मांग उठने लगी थी। 1990 के दौर में राम मंदिर निर्माण करने के लिए हिन्दू संगठन और बीजेपी ने जोरदार आंदोलन शुरू किया। तत्कालीन ASI के डायरेक्टर जनरल और प्रोफेसर बीबी लाल ने एक लेख लिखकर यह दावा कर दिया कि मस्जिद के नीचे उन्हें मंदिर जैसे खंभे मिले थे। हिन्दू संगठनों ने बीबी लाल के दावों पर हाईकोर्ट में मांग रखी कि बाबरी मस्जिद का फिर से सर्वे कराया जाए। कई सालों तक यह मामला अदालतों में चक्कर लगाता रहा। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का आदेश दिया था। फिलहाल अयोध्या में राम मंदिर बनने का काम तेजी से चल रहा है।
कुतुबमीनार में मंदिर होने के दावे से मचा बवाल
हाल ही में दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार को लेकर सियासत काफी गर्म थी। हिंदू पक्ष का दावा है कि कुतुबमीनार का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपने शासन काल के दौरान करवाया था, जिसे बाद में मुगल शासक ने तोड़वा दिया था। साल साल 1871-72 में ASI ने जेडी बेगलर की अध्यक्षता में मुगल काल के समय बनाई गई कुतुब मीनार परिसर का सर्वेक्षण किया था। ASI सर्वे रिपोर्ट के दम पर कुतुबमीनार के स्वामित्व पर दावा ठोक दिया। हालांकि ASI ने हिन्दू पक्ष के इन दावों का विरोध किया है। फिलहाल दिल्ली की एक अदालत में कुतुबमीनार का पूरा मामला चल रहा है। वहीं ASI ने अदालत में कहा कि कुतुबमीनार कोई पूजा स्थल नहीं है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक कुतुबमीनार को बनाने की शुरुआत मुगल शासक कुतुबुद्दीन-ऐबक ने की थी और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसे पूरी तरह से बनवाया था।
दक्षिण भारत में भी द्रविड़-आर्य को लेकर छिड़ी लड़ाई
एएसआई का सर्वे सिर्फ उत्तर भारत ही नहीं दक्षिण भारत में भी बवाल मचा चुका है। 2001 में तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में स्थित कीझाडी का एएसआई ने सर्वे शुरू किया। यहां एएसआई ने खुदाई शुरू की। कई सालों बाद 2013-14 में ASI को कुछ अहम अवशेष हाथ लगे थे। एएसआई की ओर से सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया कि यहां मिले पुरावशेष के 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के होने का अनुमान लगाया गया है। ASI की रिपोर्ट में कहा गया कि खुदाई से जो साक्ष्य सामने आए हैं उनसे ऐसा लगता है यह वैगई सभ्यता है, जो उद्योग और लिपि के साथ एक विकसित और आत्मनिर्भर शहरी संस्कृति है। अमरनाथ कृष्ण के नेतृत्व में टीम ने जो चीजें खुदाई से बाहर निकालीं थी वह सिंधु घाटी सभ्यता से काफी मिलती-जुलती थी। वहां पर द्रविड़ सभ्यता से जुड़ा कोई भी अवशेष नहीं मिला था। हालांकि दक्षिण भारत के लोगों का मानन है कि आर्य सभ्यता से पहले से उनकी सभ्यता बसी हुई थी।