सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल ने बुधवार को राज्यसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति के पास अपनी संपत्ति है और वह उसे दान में देना चाहता है, तो किसी को भी यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह उसे ऐसा करने से रोक सके। सिब्बल ने विधेयक का विरोध करते हुए यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड हमेशा एक वैधानिक और स्वायत्त संस्था रहा है, जिसमें किसी प्रकार का नामांकन नहीं किया जाता था।
संपत्ति का मालिक होने के नाते कोई भी कर सकता है दान
अपनी दलीलें अदालत के रूप में प्रस्तुत करते हुए सिब्बल ने कहा, “यह मेरी संपत्ति है, मेरी मिल्कियत है, आप कौन होते हैं मुझे इसे दान करने से रोकने वाले?” उन्होंने विधेयक के विरोध में कई न्यायालयों के फैसलों का हवाला दिया और उन फैसलों को मोबाइल पर पढ़कर राज्यसभा में प्रस्तुत किया। इसके माध्यम से उन्होंने यह साफ किया कि संपत्ति का मालिक होने के नाते किसी को भी दान करने का अधिकार होना चाहिए, और इसे किसी भी परिस्थिति में बाधित नहीं किया जाना चाहिए।
सिब्बल ने विधेयक के दान संबंधी प्रावधान पर सवाल उठाते हुए यह भी कहा कि अगर हिंदू अपनी ज़मीन दान कर सकते हैं, तो मुसलमानों को भी यही अधिकार क्यों नहीं दिया जा सकता? उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए यह आरोप लगाया कि वह ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ की बात करती है, लेकिन मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप कर रही है। उनका कहना था कि किसी भी समुदाय के धार्मिक मामलों में सरकार को दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। सिब्बल ने आगे कहा कि वक्फ बोर्ड के स्वामित्व वाली जमीन अल्लाह की संपत्ति मानी जाती है, जिसे बेचा नहीं जा सकता, और इस मामले में सरकार का हस्तक्षेप पूरी तरह से अनुचित है।
क्या राजनीतिक नुकसान की वजह से इस विपक्षी दल ने बदल दिया वक्फ पर अपना स्टैंड?
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सिब्बल के हिंदू समुदाय के उत्तराधिकार के अधिकार पर उठाए गए सवालों को खारिज किया। सिब्बल ने दावा किया था कि हिंदू केवल अपनी अर्जित भूमि बेटों को ही दान कर सकते हैं, लेकिन धनखड़ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ऐसी भूमि को किसी भी व्यक्ति को दान किया जा सकता है। इसके बाद कपिल सिब्बल ने यह स्पष्ट किया कि इस्लाम, हिंदू, ईसाई या अन्य कोई भी धर्म हो, हर धर्म में सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि 2014 के बाद से एक खास समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है, और इस पर सरकार को चुप्पी तोड़नी चाहिए।
सिब्बल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी सवाल किया कि वे हिंदू धर्म में सुधार क्यों नहीं चाहते, जब मस्जिदें गिराई जाती हैं या फिर किसी विशेष मामले में सरकार चुप रहती है। उन्होंने कहा, “अगर यह सब हो रहा है, तो प्रधानमंत्री को क्यों नहीं बोलना चाहिए?” इसके अलावा, सिब्बल ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि अब यह देखने वाली बात होगी कि कौन सी पार्टी इस विधेयक का समर्थन करती है और कौन सी पार्टी सेक्युलर है। उन्होंने टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी का उदाहरण देते हुए कहा कि इन दलों को इस विधेयक पर अपने रुख का निर्धारण करना होगा, क्योंकि चुनाव नजदीक हैं और यह उनका भविष्य तय करेगा।
सिब्बल ने विधेयक पर गंभीर आपत्तियां व्यक्त करते हुए कहा कि यह बिल मुस्लिम समुदाय के धार्मिक संस्थानों और वक्फ बोर्डों के कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाएगा, जिससे इन संस्थाओं की स्वायत्तता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना था कि इस विधेयक के माध्यम से वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण राजनीतिक प्रभावों से प्रभावित हो सकता है, और इससे इन संस्थाओं की पारदर्शिता और जिम्मेदारी पर भी सवाल उठ सकते हैं।
कपिल सिब्बल ने कहा, “2014 के बाद से उनकी राजनीति क्या रही है? वे लव जिहाद, बाढ़ जिहाद, ‘थूक’ जिहाद और यूसीसी के बारे में बात करते हैं… उनका तरीका अपने राजनीतिक लाभ के लिए मुस्लिम मुद्दे को जलाए रखना है… 1995 के वक्फ बिल ने वक्फ बोर्ड में न्यूनतम 2 महिलाओं को आरक्षण दिया था, और यह बिल अधिकतम दो महिलाओं को आरक्षण देता है… अगर वे बदलाव करना चाहते हैं, तो उन्हें हिंदू कोड बिल में ऐसा करना चाहिए… अगर संपत्ति मेरी है, तो कोई इसे कैसे हड़प सकता है?… अगर इसे हड़पा गया है, तो इसे वक्फ नहीं कहा जा सकता… अगर मैं अपनी आधी संपत्ति वक्फ को दे दूं, तो किसी को इससे कोई समस्या नहीं होनी चाहिए…”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिए धार्मिक मामलों में अधिक दखलंदाजी करने की कोशिश कर रही है, जो भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। सिब्बल का मानना था कि इस विधेयक से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है और यह संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रताओं के खिलाफ है।