Tashkent Agreement: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर है। भारत ने पहलगाम हमले के बाद पांच कड़े कदम उठाए हैं। जिसमें प्रमुख रूप से सिंधु जल संधि को निलंबित करना, पाकिस्तानी सैन्य राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश देना शामिल है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को निलंबित करने का फैसला किया है। चर्चा अब यह भी है कि पाकिस्तान 1966 के ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) को भी रद्द कर सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि अगर पाकिस्तान ताशकंद संधि को निलंबित करता है तो भारत को फायदा होगा नुकसान? विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
ताशकंद समझौता क्या है?
भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता (Tashkent Agreement) 10 जनवरी, 1966 को हुआ था। भारत और पाकिस्तान ने उज्बेकिस्तान के ताशकंद में ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से सोवियत संघ के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन द्वारा आयोजित इस समझौते पर भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
ताशकंद समझौता क्यों किया गया था?
भारत-पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों को सुधारना था, शांतिपूर्ण विवाद समाधान के लिए एक रूपरेखा तैयार करना और युद्ध-पूर्व स्थिति में सशस्त्र बलों की वापसी करना था। इसके अलावा, इसने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, एक-दूसरे के खिलाफ दुष्प्रचार बंद करने और राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने पर जोर दिया गया था।
ताशकंद समझौता (Tashkent Agreement)
ताशकंद समझौते का मुख्य उद्देश्य शांति के लिए दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग था।
दोनों पड़ोसी राज्य आपसी संबंध मधुर बनाने का प्रयास करेंगे।
आपसी विवादों का मैत्रीपूर्ण ढंग से समाधान करेंगे।
इसके अलावा व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को फिर से शुरू करने पर ध्यान केंद्रित करते हुए पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की गई थी।
इस समझौते में युद्धबंदियों की वापसी, शरणार्थियों और अवैध अप्रवासियों पर चर्चा और द्विपक्षीय हितों को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त निकाय की स्थापना का आह्वान किया गया।
ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) के तुरंत बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हो गई थी मौत
ताशकंद समझौते के बाद विवाद की स्थिति बनी रही, समझौते पर हस्ताक्षर के अगले दिन ताशकंद में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत हो गई। इस समझौते को अनौपचारिक रूप से शास्त्री की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया क्योंकि एक दिन पहले साढ़े नौ बजे लाल बहादुर शास्त्री से अयूब खान मिले थे।
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ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) की क्यों हुई थी आलोचना?
इतना ही नहीं हाजी पीर दर्रे जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को वापस करने के फैसले की भारत के भीतर कड़ी आलोचना हुई। स्वतंत्रता सेनानी और केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने ताशकंद समझौते को रणनीतिक भूल करार दिया।
वहीं पहलगाम हमले के बाद भारत की कार्रवाई के बाद शिमला समझौते को स्थगित करने के पाकिस्तान की धमकी के बाद ताशकंद समझौते को लेकर अटकलें लग रही हैं। याद रहे ताशकंद और शिमला समझौते भारत-पाकिस्तान संबंधों की आधारशिला रहे हैं, जो शांति को बढ़ावा देते हैं और कश्मीर मुद्दे की द्विपक्षीय प्रकृति को बनाए रखते हैं। इन समझौतों को निलंबित करने के पाकिस्तान के कदम इन नींवों को अस्थिर कर सकते हैं, जिससे भारत के लिए जोखिम और अवसर दोनों ही पैदा हो सकते हैं।
ताशकंद समझौते (Tashkent Agreement) के निलंबन से भारत को नुकसान होगा या फायदा?
अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौते को स्थगित करने के लिए आगे बढ़ता है, तो भारत को कई क्षेत्रों में लाभ होगा, जिसमें नियंत्रण रेखा पर रणनीतिक लचीलापन, कश्मीर मुद्दे पर अपना रुख मजबूत करना और आर्थिक और जल संसाधन दबाव डालना शामिल है।
ताशकंद समझौता रद्द होते ही भारत को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अधिक सैन्य रणनीति अपनाने और नियंत्रण रेखा की स्थायित्व को चुनौती देने की परमीशन मिल जाएगी।
भारत का वैश्विक कूटनीतिक प्रभाव और पाकिस्तान को शांति-विरोधी राष्ट्र के रूप में चित्रित करना कश्मीर पर उसकी स्थिति को और मजबूत कर सकता है।
ताशकंद समझौते का रद्द करना पाकिस्तान की आर्थिक स्थिरता को कमज़ोर कर सकता है, जो पहले से ही भारत से व्यापार और आयात पर निर्भरता के कारण अस्थिर है।
ताशकंद समझौते के निलंबन से क्षेत्रीय स्तर पर चुनौती पैदा हो सकती हैं और सैन्य टकराव का जोखिम बढ़ सकता है, लेकिन यह भारत को दक्षिण एशिया में अपने नेतृत्व को स्थापित करने का अवसर भी प्रदान करता है।
पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना और शांति और स्थिरता के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत कर सकता है।
पाकिस्तान की एकतरफा कार्रवाई से उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा भी धूमिल हो सकती है, खासकर रूस जैसे देशों के साथ, क्योंकि ताशकंद समझौते में सोवियत संघ की मध्यस्थता में भूमिका थी। भारत इसका लाभ उठाकर पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर और अलग-थलग कर सकता है।
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