उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले में गुरुवार (8 फरवरी 2024) को कथित तौर पर नजूल भूमि पर अतिक्रमण हटाने को लेकर बवाल हुआ था। इसके बाद जमकर हिंसा हुई थी। घटना में पांच लोगों की मौत हो गई थी और कई अन्य लोग घायल हो गए थे। प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू लगा दिया था। नजूल भूमि को लेकर हिंसा हुई थी। यह पूछा जा रहा है कि जिस ज़मीन पर तोड़फोड़ की कार्रवाई हुई, क्या वह नज़ूल ज़मीन थी?

क्या होती है नजूल भूमि?

नजूल भूमि का मालिकाना सरकार के पास होती है, लेकिन आम तौर पर इसे सीधे स्टेट प्रापर्टी के रूप में नहीं रखा जाता है। राज्य आम तौर पर ऐसी भूमि को किसी भी इकाई को एक तय अवधि के लिए पट्टे पर आवंटित करता है। यह अवधि आमतौर पर 15 से 99 साल के बीच होती है। यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो रही है, तो कोई व्यक्ति स्थानीय विकास प्राधिकरण के रेवेन्यू डिपार्टमेंट को लिखित आवेदन देकर इसका रिन्यूवल करा सकता है। सरकार नजूल भूमि को वापस लेने या पट्टे को रिन्यूवल करने या इसे रद्द करने के लिए स्वतंत्र है। भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों में कई तरह के कामों के लिए तमाम संस्थाओं को नजूल भूमि आवंटित की गई है।

नजूल भूमि की शुरुआत कैसे हुई?

ब्रिटिश शासन के दौरान उनका विरोध करने वाले राजा और रजवाड़े अक्सर उनके खिलाफ विद्रोह करते थे। इस वजह से उनके और ब्रिटिश सेना के बीच कई लड़ाइयां हुईं। युद्ध में इन राजाओं को हराने पर अंग्रेज अक्सर उनसे उनकी जमीन छीन लेते थे। देश को आजादी मिलने के बाद अंग्रेजों ने ये जमीनें खाली कर दीं, लेकिन राजाओं और राजघरानों के पास अक्सर पूर्व मालिकाना साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेजों की कमी रहती थी। इन जमीनों को नजूल भूमि के रूप में बताया गया। इसका स्वामित्व संबंधित राज्य सरकारों के पास था।

सरकार नजूल भूमि का उपयोग कैसे करती है?

सरकार आम तौर पर नजूल भूमि का उपयोग सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे स्कूलों, अस्पतालों, ग्राम पंचायत भवनों आदि के निर्माण के लिए करती है। भारत के कई शहरों में नजूल भूमि के रूप में चिह्नित भूमि के बड़े हिस्से को आम तौर पर पट्टे पर हाउसिंग सोसाइटियों के लिए उपयोग किया जाता है।

नजूल भूमि का प्रबंधन कैसे किया जाता है?

कई राज्यों ने नजूल भूमि के नियम बनाने के लिए सरकारी आदेश लाए हैं। नजूल भूमि (स्थानांतरण) नियम, 1956 वह कानून है, जिसका उपयोग ज्यादातर नजूल भूमि निर्णय के लिए किया जाता है।

जहां अतिक्रमण हटाया गया, वह नजूल भूमि के रूप में रजिस्टर्ड है?

हल्द्वानी जिला प्रशासन के अनुसार, जिस संपत्ति पर दोनों भवन स्थित हैं, वह नगर निगम (नगर परिषद) की नजूल भूमि के रूप में रजिस्टर्ड है। प्रशासन का कहना है कि पिछले 15-20 दिनों से सड़कों को जाम से मुक्त कराने के लिए नगर निगम की संपत्तियों को तोड़ने का अभियान चल रहा है।

डीएम ने कहा, “30 जनवरी को जारी एक नोटिस में तीन दिनों के भीतर अतिक्रमण हटाने या स्वामित्व दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा गया था। 3 फरवरी को कई स्थानीय लोगों ने हमारी टीम के साथ चर्चा करने के लिए नगर निगम का दौरा किया। उन्होंने एक आवेदन दिया और अदालत के फैसले का पालन करने पर सहमति व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट में अपील करने के लिए समय का अनुरोध किया।” उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालत की मंजूरी के बाद अतिक्रमण हटाया गया।

हालांकि, वार्ड नंबर 31, जहां यह घटना हुई थी, के पार्षद शकील अहमद ने कहा कि स्थानीय लोगों ने प्रशासन से 14 फरवरी को हाईकोर्ट में सुनवाई की अगली तारीख तक इंतजार करने का अनुरोध किया था।