इन दिनों संशोधित नागरिकता कानून (CAA) पर और नेशनल रजिस्ट्रर ऑफ सिटिजन (NRC) पर देशभर में बवाल के बीच मोदी सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) अपडेशन को मंजूरी दे दी। एनपीआर का मकसद देश के स्वभाविक निवासियों की समग्र पहचान का डाटाबेस तैयार करना है। जनगणना का काम 6 महीने तक चलेगा। इसमें तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। मंगलवार को कैबिनेट मीटिंग के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इसके लिए एप का इस्तेमला किया जाएगा।

अब सवाल यह है कि सरकार CAA, NRC पर हंगामे के बीच एनपीए को क्यों ले आई? दरअसल यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2010 में एनपीआर की पहल की गई थी। साल 2011 में हुई जनगणना के पहले इस पर काम शुरू हुआ था। एनपीआर के आंकड़े पिछली बार 2010 में घर की सूची तैयार करते समय लिये गये थे। अब 2021 में जनगणना का काम शुरू होना है ऐसे में इसकी प्रक्रिया एकबार फिर से शुरू हो रही है। असम को नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर अपडेशन की प्रक्रिया से अलग रखा गया है क्योंकि वहां पहले ही राष्ट्रीय नागरिक पंजी. का कार्य हो गया है ।

सरकार ने जनगणना 2021 की कवायद के लिए 8,754.23 करोड़ रूपये के खर्च को मंजूरी दी है। जनगणना 2021 दो चरणों में होगी। इसमें पहले चरण में घर की सूची या घर संबंधी गणना होगी जो अप्रैल से सितंबर 2020 तक होगी । इसका दूसरा चरण नौ फरवरी से 28 फरवरी 2021 में होगा । इसकी संबद्धता तिथि 1 मार्च 2021 होगी। सरकार ने साफ किया है कि एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।

एनपीआर एनआरसी से कैसे है अलग: एनपीआर का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है। स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने यह बात कही है। उन्होंने कहा है कि एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए नहीं किया जाएगा। दरअसल एनआरसी का मकसद देश में अवैध रूप से रह रहे बाहरी नागरिकों की पहचान करना है, वहीं एनपीआर का मकसद देश के स्वाभाविक निवासियों का पता लगाना है।