कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने बुधवार शाम उस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया, जिसके तहत प्राइवेट सेक्टर में कन्नड़ भाषियों के लिए रिजर्वेशन अनिवार्य किया गया था। कर्नाटक सरकार ने इस बिल से पीछे हटने का कदम बिजनेस और IT सेक्टर द्वारा सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करने के बाद उठाया।

इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने X के जरिए यह जानकारी दी थी कि सोमवार को उनकी कैबिनेट ने प्राइवेट सेक्टर में कन्नड़ भाषियों को सी और डी ग्रेड नौकरियों में 100% आरक्षण देने का फैसला किया गया है। हालांकि इस पोस्ट को उन्होंने बाद में हटा दिया।

बाद में सीएम के द्वारा जानकारी दी गई कि उनकी कैबिनेट ने मैनेजमेंट रोल्स 50% कोटा और नॉन मैनेजमेंट रोल्स में 75% रिजर्वेशन देने वाले बिल को पास कर दिया है। इस बिल को आज (गुरुवार) विधानसभा में पेश किए जाने की संभावना थी।

कर्नाटक सरकार में मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे से जब न्यूज एजेंसी ANI ने बिल से पीछे हटने का सवाल किया तो उन्होंने कहा कि पीछे हटने का सवाल ही नहीं है। सरकार के रूप में हम लोकल स्तर पर अधिक से अधिक नौकरियां उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कर्नाटक यहां से ग्लोबल वर्कफोर्स प्रदान करे।

कर्नाटक सरकार के बिल में क्या था?

प्राइवेट नौकरियों में कितना रिजर्वेशन?- बिल के अनुसार, मैनेजमेंट जॉब्स में कन्नड़ भाषियों के लिए पचास फीसदी और नॉन मैनेजमेंट जॉब्स में 75% आरक्षण अनिवार्य किया जाना था। बिल के तहत, अगर कंपनियां तुरंत ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं तो वो सरकार के साथ पार्टनरशिप में तीन साल के अंदर इन रोल्स के लिए लोकल लोगों को तैयार कर सकती हैं।

बिल में यह भी कहा गया है कि अगर तीन साल के बाद भी कंपनी को पर्याप्त लोकल कैंडिडेट नहीं मिलते हैं तो वो सरकार से छूट का अनुरोध कर सकती है। बिल के तहत ऐसे हालातों में भी कंपनी को मैनेजमेंट रोल्स में 25% लोकल और नॉन-मैनेजमेंट रोल्स में 50% लोकल लोगों की भर्ती करनी ही होगी।

कौन हैं लोकल?- बिल के अनुसार, जो भी व्यक्ति 15 सालों से राज्य में रह रहा है और कन्नड़ भाषा लिखने और बोलने में परिपक्व है। इस लॉ के तहत फायदा लेने की इच्छा रखने वालों को लैंग्वेज टेस्ट पास करना होगा।

पेनल्टी का भी प्रावधान- इस बिल के तहत नियम का उल्लंघन करने वाली कंपनी पर दस हजार से पच्चीस हजार रुपये पेनल्टी लगाई जा सकती है। इसके तहत जेल का प्रावधान नहीं है।

कंपनियों ने कैसे किया रिएक्ट?- ज्यादातर कारोबारियों ने कहा कि यह नियम हाई-टेक कंपनियों को राज्य से बाहर निकलने को मजबूर कर देगा। इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टी.वी.मोहनदास पाई ने विधेयक को ‘फासीवादी’ करार दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा, “इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए। यह पक्षपातपूर्ण, प्रतिगामी और संविधान के विरुद्ध है। अविश्वसनीय है कि कांग्रेस इस तरह का विधेयक लेकर आ आई है- एक सरकारी अधिकारी निजी क्षेत्र की भर्ती समितियों में बैठेगा? लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी…?”

फार्मा कंपनी ‘बायोकॉन’ की प्रबंध निदेशक किरण मजूमदार शॉ ने कहा, “एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है और हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए…।” (इनपुट – PTI)