रवीन्द्रनाथ टैगोर के जरिए स्थापित किए गए शांति निकेतन ने यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में जगह बना ली है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित यह प्रतिष्ठित संस्थान एक आवासीय विद्यालय और कला केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। यह प्राचीन भारतीय परंपराओं के सिद्धांतों और धार्मिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता के दृष्टिकोण पर बनाया गया था। जब 1901 में शांति निकेतन को जब शुरू किया गया था तो सबसे बड़ी समस्या आर्थिक हालात से निपटने की थी।  दावा किया जाता है कि शांति निकेतन को बड़ी मदद चीन ने दी। क्या है इस दावे का सच और क्या है पूरा मामला? 

चीन से क्या है इसका खास संबंध? 

बीरभूम जिले में मौजूद  इस स्थान का चीन और विशेष रूप से चीनी संस्कृति के साथ एक खास संबंध है। टैगोर चाहते थे कि दुनिया एक ही स्थान पर रहे और विश्वभारती विश्वविद्यालय में चीन भवन उस सपने का फल था। गौरतलब है कि यह दक्षिण एशिया में चीनी अध्ययन का सबसे पुराना केंद्र है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर दुनिया को एक परिवार मानते थे और कुछ ऐसा बनाना चाहते थे जहां हर देश की संस्कृति को जगह मिले। 1927 में मलाया में उनकी मुलाकात टैन युन-शान से हुई। शान टैगोर के शांति के संदेश से प्रेरित हुए और शांतिनिकेतन आये।

टैगोर और शान दोनों ने अपनी बातचीत के दौरान महसूस किया कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंध, जो पिछली शताब्दियों में पनपे थे, वर्षों से रुक गए थे। इसलिए उन्होंने एक स्थायी संस्था बनाने का निर्णय लिया जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र बन सके।

1931 में टैन युन-शान चीन वापस गए और परियोजना के लिए समर्थन जुटाया। 14 अप्रैल, 1937 को चीन भवन का सपना साकार हुआ। टैन युन-शान ने शांति निकेतन के लिए बड़ी आर्थिक मदद जुटाई। 

कौन थे  टैन युन-शान? 

टैन युन-शान ने चीन भवन के विकास के लिए अपने जीवन के 30 वर्ष समर्पित किये। चीनी भाषा और संस्कृति संस्थान के रूप में भी जाना जाने वाला यह स्थान इतना समृद्ध नहीं होता अगर टैगोर की विचारधाराओं को जीवित रखने के लिए शान का दृढ़ संकल्प न होता। 10 अक्टूबर, 1898 को चीन के हुनान प्रांत में जन्मे टैन युन-शान एक विद्वान, कवि, सुलेखक, निबंधकार और लेखक थे। उनका परिवार अपनी विद्वत्तापूर्ण उत्कृष्टता के लिए विख्यात था और शान भी इसका अपवाद नहीं था। इसके अलावा, वह चीनी शास्त्रीय साहित्य और दर्शन में प्रशिक्षित भाषाविद् थे।