Prayagraj Maha Kumbha Mela 2025: अखाड़ा, हिंदू धर्म में साधु-संतों का एक ऐसा संगठन है जो धार्मिक और शारीरिक अनुशासन का संगम प्रस्तुत करता है। इसकी परंपरा की शुरुआत 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। उस समय विदेशी आक्रमणकारियों से हिंदू धर्म की रक्षा के लिए एक योद्धा वर्ग तैयार करने की आवश्यकता थी। अखाड़ा प्रणाली भारतीय धर्म, संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह धर्म की रक्षा के साथ-साथ समाज को एकजुट करने और मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अखाड़े के संत सिर्फ कुंभ और महाकुंभ जैसे मेले में ही बाहर निकलते हैं।

अखाड़ा शब्द का अर्थ

‘अखाड़ा’ का शाब्दिक अर्थ है “कुश्ती का मैदान”। आदि शंकराचार्य ने इसे एक संगठन के रूप में विकसित किया, जहां साधुओं को शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती थी। इन साधुओं का जीवन भौतिक इच्छाओं से मुक्त होता है, जिससे वे धर्म की रक्षा में अपना पूरा योगदान दे सकते थे।

अखाड़ों का इतिहास और संख्या

शुरुआत में सिर्फ चार अखाड़े थे। समय के साथ इनकी संख्या बढ़कर 13 हो गई। वर्तमान में अखाड़ों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. शैव अखाड़े – भगवान शिव की पूजा करने वाले।
  2. वैष्णव अखाड़े – भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करने वाले।
  3. उदासीन अखाड़े – ‘ॐ’ और गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का अनुसरण करने वाले।

शैव अखाड़े: शिव भक्ति के केंद्र

शैव संप्रदाय के कुल 7 अखाड़े हैं:

  1. जूना अखाड़ा – शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा। इसकी स्थापना 1145 में कर्णप्रयाग में हुई।
  2. आवाहन अखाड़ा – स्थापना 547 ई. में।
  3. अग्नि अखाड़ा – इनके इष्ट देव गायत्री हैं।
  4. निरंजनी अखाड़ा – 903 ई. में स्थापित, इसके साधुओं की शिक्षा स्तर उच्च है।
  5. महानिर्वाणी अखाड़ा – 748 ई. में स्थापित, इष्टदेव कपिल मुनि।
  6. आनंद अखाड़ा – स्थापना 856 ई. में।
  7. अटल अखाड़ा – 646 ई. में वाराणसी में स्थापित।

वैष्णव अखाड़े: विष्णु भक्ति का प्रतीक

वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं:

  1. दिगंबर अखाड़ा – 500 साल पहले अयोध्या में स्थापित।
  2. निर्मोही अखाड़ा – 14वीं शताब्दी में रामानंदाचार्य द्वारा स्थापित।
  3. निर्वाणी अखाड़ा – स्थापना 748 ई. में।

उदासीन अखाड़े: भक्ति और सेवा का संगम

उदासीन संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं:

  1. उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा – 1825 में हरिद्वार में स्थापित।
  2. उदासीन पंचायती नया अखाड़ा – 1846 में हरिद्वार के कनखल में स्थापित।
  3. निर्मल अखाड़ा – 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज द्वारा स्थापित।

अखाड़ा परिषद: समन्वय का संगठन

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) की स्थापना 1954 में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य कुंभ मेले का आयोजन और प्रबंधन करना है। इसके अलावा, परिषद अखाड़ों के बीच समन्वय स्थापित करने और विवादों को सुलझाने का कार्य करती है।

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परिषद में 13 अखाड़े शामिल हैं, और इसके अध्यक्ष का चुनाव सभी अखाड़ों के सदस्यों द्वारा मतदान के माध्यम से किया जाता है। अध्यक्ष का कार्यकाल आमतौर पर तीन से छह साल का होता है।

अखाड़ों की वर्तमान भूमिका

आज के समय में अखाड़ों का मुख्य कार्य समाज में धार्मिक और बौद्धिक नेतृत्व प्रदान करना है। ये धर्म की रक्षा के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

अखाड़ा प्रणाली का महत्व

अखाड़ा प्रणाली केवल धर्म की रक्षा तक सीमित नहीं है; यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। कुंभ मेले में इनकी भूमिका सबसे अहम होती है, जहां इनकी भव्य शोभायात्रा और साधुओं का शाही स्नान देखने लायक होता है।