असम विधानसभा में मुस्लिम शादियां और तलाक रजिस्टर करने वाले 90 साल पुराने कानून- असम मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1935 को रद्द करने का बिल पास किया। अब इस बिल की जगह हिमंता बिस्वा सरकार असम कंपल्सरी रजिस्ट्रेशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स बिल, 2024 लेकर आई है। सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद बाल विवाह को रोकना और दोनों पक्षों की सहमति के बिना विवाह को रोकना है। विपक्ष इस बिल को लेकर कई आरोप भी लगा रहा है। आखिर इस बिल में ऐसा क्या है और इसे क्यों लाया गया गया है, इसे विस्तार से समझते हैं।

नए कानून में क्या-क्या प्रावधान?

इस बिल के मुताबिक दो मुस्लिमों के बीच होने वाली शादी यानी “निकाह” को मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार पति-पत्नी माना जाएगा। अब शादी का रजिस्ट्रेशन काजी नहीं होगा। पंजीकरण में उसकी कोई भूमिका नहीं होगी। पंजीकरण अधिकारी उस अधिकार क्षेत्र में सरकार का विवाह और तलाक रजिस्ट्रार होगा, जो उप-रजिस्ट्रार है।

इस कानून के मुताबिक शादी के लिए 7 शर्तें पूरी करनी होगी। इसके मुताबिक 18 साल के कम उम्र की लड़की और 21 साल के कम उम्र के लड़के का विवाह नहीं कराया जा सकेगा। दोनों के बीच शादी सहमति से होनी जरूरी है। पंजीकरण अधिकारी को सूचना देने से कम से कम 30 दिन पहले कोई भी एक पक्ष का विवाह और तलाक रजिस्ट्रार के जिले में निवास करना जरूरी है।

दोनों पक्षों को अपनी पहचान, आयु और निवास की जानकारी पंजीकरण अधिकारी को देनी होगी। इन दस्तावेजों की रजिस्ट्रार द्वारा जांच की जाएगी। यदि जांच के बाद रजिस्ट्रार विवाह को संपन्न करने से इनकार करता है, तो विधेयक में अपील के दो चरण हैं, जिला रजिस्ट्रार और फिर विवाह के रजिस्ट्रार जनरल के पास ही अपील की जा सकेगी।

रजिस्ट्रार के पास कार्रवाई का अधिकार

इस कानून में प्रावधान है कि अगर जांच के दौरान रजिस्ट्रार को पता चलता है कि लड़का या लड़की में किसी की भी उम्र कम है तो वह ऐसे मामलों में कार्रवाई कर सकता है। अगर अधिकारी जानबूझ ऐसे मामलों में भी शादी का रजिस्ट्रेशन करता है तो उसके खिलाफ एक साल की सजा और 50 हजार का जुर्माने का प्रावधान किया गया है।