पश्चिम बंगाल के कोननगर के 28 वर्षीय बिक्रम भट्टाचार्जी की ट्रक की चपेट में आने से शुक्रवार को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में मौत हो गई। वहीं अब इसपर विवाद खड़ा हो गया है। यह घटना उस दिन हुई जब राज्य के स्वास्थ्य विभाग को कथित तौर पर ‘डॉक्टरों के संयुक्त मंच’ के आंदोलन के बाद कोलकाता के सभी पांच मेडिकल कॉलेजों में हेल्प डेस्क बंद करने पड़े थे। हुगली के कोननगर के युवक को आरजी कर मेडिकल कॉलेज लाया गया और कथित तौर पर उसी अस्पताल में इलाज न मिलने के कारण उसकी मौत हो गई।
तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर दावा किया कि बिक्रम भट्टाचार्जी को उचित इलाज नहीं मिला। हालांकि अस्पताल ने इन आरोपों का खंडन किया है। हालांकि बिक्रम भट्टाचार्जी के परिवार ने अस्पताल या पुलिस के पास कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है, लेकिन लालबाजार पुलिस सूत्रों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि एक नॉर्मल रिपोर्ट दर्ज की गई है।
अभिषेक बनर्जी का बड़ा बयान
टीएमसी सांसद और राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने भी इस घटना पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, “RG Kar घटना के जवाब में डॉक्टरों के चल रहे विरोध के परिणामस्वरूप, बिना चिकित्सकीय ध्यान दिए 3 घंटे तक ब्लड गिरने के बाद एक युवा लड़के की आज जान चली गई। जबकि जूनियर डॉक्टरों की मांगें उचित और वैध दोनों हैं। मैं उनसे इस तरह से विरोध करने का आग्रह करता हूं जिससे आवश्यक चिकित्सा सेवाएं बाधित न हों। इलाज के बिना मृत्यु की गैर इरादतन हत्या के समान है। यदि विरोध जारी रखना है, तो इसे रचनात्मक रूप से सहानुभूति और मानवता के साथ किया जाना चाहिए।”
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जूनियर डॉक्टरों ने दावा किया था कि हेल्प डेस्क गलत संदेश भेज रहे हैं कि जूनियर डॉक्टरों के काम बंद करने के कारण अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। स्थानीय रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीड़ित को आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लाने से पहले सेरामपुर के एक अस्पताल में ले जाया गया था। आरोप हैं कि पीड़ित को कई घंटों तक लावारिस छोड़ दिया गया और ठीक से अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया। कथित तौर पर परिवार के सदस्यों ने दावा किया कि उन्हें बताया गया था कि कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है और मरीज को कहीं और ले जाना होगा।
कुणाल घोष ने ट्विटर हैंडल पर घटना का जिक्र करते हुए प्रदर्शनकारी डॉक्टरों से काम पर लौटने का आग्रह किया। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आंदोलनकारी डॉक्टरों से अपने काम पर लौटने को कहा था। अस्पताल के एक अधिकारी ने कहा, “आपातकालीन चिकित्सा अधिकारियों और सर्जरी और आर्थोपेडिक विभागों के वरिष्ठ कर्मचारियों ने तुरंत मरीज को देखा। तत्काल उपचार के बावजूद डॉक्टर उन्हें बचाने में असमर्थ रहे।”
