भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के खड़गपुर कैंपस में शोधार्थियों की एक टीम ने खुलासा किया है कि कम से कम 2500 करोड़ साल पहले भारत में जीवन पनप रहा था। चार साल लगातार खोज में जुटे रहने पर टीम को इस बाबत कुछ प्रमाण मिले हैं, जिनके मुताबिक जीवन के शुरुआती संकेत दक्कन में माइक्रो बायोलॉजिकल सेल्स के रूप में पाए गए थे। टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, वे माइक्रोब्स वहां से लगभग तीन किमी दूर गहराई में पाए गए थे।

जीवन पनपने को लेकर इस रिसर्च से जुड़ी कुछ जानकारियां ऑनलाइन जर्नल ‘साइंटफिक रिपोर्ट्सः नेचर’ के दिसंबर अंक में प्रकाशित की गई थीं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय को जैसे ही इस बारे में जानकारी हुई, तो वहां के आलाधिकारी हैरान रह गए। आईआईटी टीम से कहा गया कि वे इस बात का पता लगाएं कि आखिर भारत में कब जीवन पनपने की शुरुआत हुई थी। हालांकि, इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

आईआईटी रिसर्च टीम का नेतृत्व करने वाले पिनाकी सर बायोटेक्नोलॉजी विभाग में पढ़ाते भी हैं। उन्होंने बताया, “ये माइक्रो ऑर्गेनिज्म्स (अधिकतर बैक्टीरिया) तब के हैं, जब पृथ्वी की सतह अस्थिर थी। तब भूकंप, ज्वालामुखी का फटना आम था। लगभग 2500 करोड़ साल पहले सतह इस सबके बावजूद ठंडी तो पड़ती थी, मगर उसमें बार-बार झटके और ताजा लावा गिरने की घटनाएं होती रहती थीं। इसी बीच जीवन के पनपने की शुरुआत माइक्रोब्स के रूप में हुई थी। दक्कन में देश की सबसे पुराने पत्थर (ग्रेनाइट और बासाल्ट) हैं। ये दक्षिण अफ्रीका विटवॉटर्सरैंड, अमेरिका के कोलरैडो रिवर बेसिन और फिनलैंड के फेन्नोस्कैंडियन शील्ड से मिलते-जुलते हैं।”

इस खोज की शुरुआत 2014 में हुई थी। मंत्रालय ने तब आईआईटी के बायोटेक्नोलॉजिस्ट्स को महाराष्ट्र स्थित कोयना के वैज्ञानिकों की टीम के साथ जुड़कर काम करने के लिए कहा था। करार गांव के पास कोयना वही जगह है, जहां पर 1964 में भूकंप आया था।

टीम का नेतृत्व कर रहे सर ने एक अंग्रेजी अखबार से कहा, “इन पुराने पत्थरों में हवा, पानी, ऑर्गैनिक या फिर रोशनी तो नहीं थी। लेकिन जब हमने इन्हें तीन बोरहोल्स से निकाला था, तब हम यह साबित कर सके कि इनका माइक्रोबियल अस्तित्व है।”