राजधानी सहित समूचे उत्तर, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में मौसम के मिजाज में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है। मार्च में पहाड़ ठिठुर रहा है तो मैदानी इलाकों में लोग गरम कपड़ों में लिपटे हैं। मौसम विशेषज्ञों का पूर्वानुमान सच हुआ तो महीने के तीसरे हफ्ते में ही गरमी दस्तक देगी। इस हफ्ते के आखिर में फिर तेज बारिश और भारी बर्फबारी के आसार हैं। मौसम वैज्ञानिक इसे हमारी धरती की आबोहवा में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से आए बदलाव का नतीजा बता रहे हैं। मौसमी तेवर में इस स्तर का बदलाव समान्य बात नहीं है।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मैदानी इलाकों में डेढ़ से दो दशकों में कभी-कभार ही ऐसी बारिश या मौसम के मिजाज में इस कदर उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है, जबकि पहाड़ों में मार्च में भारी बर्फबारी की घटना तो सौ सालों में एकाध बार ही होती है। इन दिनों अधिकतम तामपान में चार से छह डिग्री सेंटीग्रेड की गिरावट देखने को मिल रही है। यह गिरावट राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश जैसे इलाकों में भी दर्ज की गई है। जबकि विदर्भ, पश्चिमी मध्य प्रदेश व अन्य तमाम इलाकों में दो से तीन डिग्री की गिरावट दर्ज की गई है।
भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक और पृथ्वी मंत्रालय के वरिष्ठ मौसम विज्ञानी डाक्टर अजीत त्यागी ने बताया कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखने लगा है।
यही वजह है कि पिछले एक दशक में भारी बर्फबारी, सूखा, बाढ़, गरमी के मौसम में ठंड जैसी घटनाएं दिख रही हैं। डाक्टर त्यागी कहते हैं कि मार्च में दिल्ली या अन्य मैदानी इलाकों में तेज बारिश लगभग 15 साल पहले हुई थी, जबकि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इलाकों में ऐसी बर्फबारी असामान्य है। न केवल इनकी आवृत्ति बढ़ी है बल्कि इनकी सघनता भी खास रूप से दिख रही है।
ग्लोबल वार्मिंग के अलावा कई तरह की स्थानीय पारिस्थितिकी व अन्य कारकों की वजह से भी ऐसी घटनाएं कम अंतराल में घट रही हैं। कहीं भारी बारिश तो तूफान भी आम हो चला है। ये सब खेती से लेकर फल-फूल व अन्य उत्पादों पर असर डाल रहे हैं।
डाक्टर त्यागी कहते हैं कि राहत वाली बात यह है कि अत्याधुनिक तकनीकों की वजह से ऐसी मौसमी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाना संभव हो रहा है। इस बार भी करीब एक हफ्ते पहले पूर्वानुमान लगाया गया था कि पहाड़ों में भारी बर्फबारी होगी। इसी तरह कई बड़े तूफानों के पूर्वानुमान के कारण जानमाल की क्षति को कम किया जा सका। झारखंड, ओड़िशा व अन्य जगहों पर आए तूफानों से समय रहते सतर्क हुआ जा सकता है। मौसम के तीखे तेवरों से अब जानमाल का नुकसान क म होता है। लेकिन इतना तो तय है कि मौसम चक्र में बदलाव देखने को मिल रहा है।
कृषि वैज्ञानिक डाक्टर केके सिंह बताते हैं कि आने वाले सालों में ऐसी घटनाएं और अधिक देखने को मिलेंगी। धरती और धरती से 10-15 किलोमीटर ऊपर के वातावरण में काफी अंतर देखने को मिल रहा है। यह बदलाव जमीन पर भी देखने को मिल रहा है। यहां तक कि दिन व रात के तामपान में भारी अंतर हो रहा है जो कई तरह की मौसमी बीमारियों का कारण बन रहा है।
फरवरी में आम तौर पर अधिकतम चार बार पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति बनती है, लेकिन इस बार सात बार ऐसा हो चुका है। वहीं 14 और 15 मार्च को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमाम आस-पास के इलाकों में तेज आंधी व बारिश के आसार हैं।
डाक्टर सिंह कहते हैं कि बारिश की मात्रा में बढ़ोतरी नहीं हुई है, बल्कि कम दिनों में अधिक बारिश हो रही है, जिसके कारण नुकसान ज्यादा देखने को मिल रहा है। मौसम की बेरुखी के अलावा कृषि प्रक्रिया में इस्तेमाल हो रहे गलत तकनीकों की वजह से फसल चक्र ही प्रभावित हो गई है। ऐसे में कृषि प्रबंधन के जरिए ही नुकसान को कम किया जा सकता है। साथ ही खेती के ज्यादा टिकाऊ विकास की दिशा में भी सोचना और काम करना होगा।
प्रतिभा शुक्ल