Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट 11 दिसंबर को कहा कि वह अपने आदेश का पालन सुनिश्चित कराने के लिए किसी भी हद तक जाएगा। शीर्ष अदालत ने यह बात एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं। याचिका में प्रार्थना की गई थी कि मैनुअल स्कैवेंजरों के नियोजन और शुष्क शौचालयों के निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 के साथ-साथ मैनुअल स्कैवेंजरों के रूप में नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रमुख प्रावधानों को क़ानून के आदेश के बावजूद लागू नहीं किया गया है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने इस मामले की प्रगति पर निराशा व्यक्त की। साथ ही कोर्ट के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए अवमानना ​​का आदेश जारी करने की मंशा व्यक्त की। आदेशों के अनुपालन पर जस्टिस धूलिया ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि ये सरकार के कम प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं। एक बात तो तय है, हम इसे नहीं छोड़ेंगे। यह मानवीय गरिमा का सवाल है। यह ऐसा मामला जो आपके दिल के करीब है। हम इसे नहीं छोड़ेंगे। मैं आपको बता दूं कि हम आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।

हालांकि, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के सुझाव पर विचार करते हुए कि केंद्रीय निगरानी समिति की बैठक राज्य एजेंसियों के संबंधित हितधारकों के साथ दो सप्ताह के भीतर बुलाई जा सकती है ताकि यह आकलन किया जा सके कि किस हद तक अनुपालन किया गया है। कोर्ट ने केंद्र को हलफनामा दाखिल करने की अनुमति दी। हलफनामे में गैर-अनुपालन के कारणों और कारणों का उल्लेख होना चाहिए।

20 अक्टूबर, 2023 के आदेश के द्वारा कोर्ट ने निर्देश पारित किए थे, जिसके अनुसार संघ को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी थी। हालांकि, कोर्ट ने अपने 11 दिसंबर के आदेश में कहा कि संघ द्वारा 31 जनवरी को दाखिल की गई स्थिति रिपोर्ट बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि दिनांक 20.10.2023 के आदेश में दिए गए अधिकांश निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया है।

उस आदेश के तहत कोर्ट ने निर्देश दिया था कि एक साल के भीतर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मैनुअल स्कैवेंजरों का राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी के.परमेश्वर ने न्यायालय को बताया कि सर्वेक्षण अभी तक नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण जिला स्तरीय सर्वेक्षण समिति की सहायता से किया जाना है और कई राज्यों में जिला स्तरीय सर्वेक्षण समिति का गठन भी नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय निगरानी समिति की भी चार साल से बैठक नहीं हुई है।

मामलों की निराशाजनक स्थिति पर विचार करते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि यहां तक ​​कि कुछ मामलों में वैधानिक निकायों का गठन नहीं किया गया है, जिनका अनुपालन करना राज्यों के लिए अधिनियमों के तहत अनिवार्य है, जैसे कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग, राज्य सफाई कर्मचारी आयोग, केंद्रीय निगरानी समिति, राज्य निगरानी समिति, सतर्कता समितियां, राज्य स्तरीय सर्वेक्षण समिति, जिला स्तरीय सर्वेक्षण समिति।

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कोर्ट के आदेश में यह भी निर्देश दिया गया था कि प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक प्रगति को देखते हुए, अब मैनुअल स्कैवेंजिंग, खराब शौचालयों और सीवर लाइनों में मैनुअल श्रम के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करना पूरी तरह से संभव है, फिर भी इस क्षेत्र में बहुत कम प्रगति हुई है।

परमेश्वर ने यह भी कहा कि नागरिक संगठन सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा इस वर्ष अब तक 40 सीवर मौतों की रिपोर्ट के बावजूद एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि औसतन हर साल सीवर सफाई के कारण 70-80 मौतें होती हैं। जस्टिस धूलिया ने जवाब दिया कि इसे [भारतीय दंड संहिता की धारा] 306 के तहत दर्ज किया जाना चाहिए। यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है। जस्टिस कुमार ने यह भी कहा किआपने कहा कि इस वर्ष 40 मौतें हुई हैं। डीजीपी अब एफआईआर क्यों दर्ज कर रहे हैं? इन परिवारों के पास कोई आवाज नहीं है।

बता दें, 2018 से चल रहे इस मुकदमे में कोर्ट ने पाया कि 1993 और 2013 के अधिनियम में प्रावधान होने के बावजूद देश के सभी भागों में मैला ढोने, गंदे शौचालय बनाने और सीवर लाइनों में हाथ से काम करवाने की प्रथा जारी है, जिसे खतरनाक सफाई के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं, इन अधिनियमों के तहत विभिन्न समितियों का गठन भी नहीं किया गया है। जिसको लेकर 20 अक्टूबर, 2023 को कोर्ट ने जरूरी आदेश जारी किए थे।

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