लेह में पिछले दिनों हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। इनमें चार लोगों की मौत हो गई और 80 लोग घायल हो गए। हिंसक प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार ने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया। लेह में विरोध प्रदर्शन अचानक हिंसक कैसे हो गए, वहां के लोगों की परेशानियां क्या हैं, वहां रोजगार के क्या हालात हैं, ऐसे ही कई अहम सवालों के जवाब लेह की एपेक्स बॉडी के को-चेयरमैन और लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के प्रमुख छेरिंग दोरजे लकरुक ने द इंडियन एक्सप्रेस को इंटरव्यू में दिए हैं।

यह सवाल पूछे जाने पर कि आखिर विरोध प्रदर्शन हिंसक कैसे हो गया, दोरजे कहते हैं, “ऐसा अचानक हुआ। जब चार-पांच हजार लोग सड़क पर उतरते हैं तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें कुछ शरारती तत्व भी होंगे।” दोरजे ने कहा कि प्रदर्शन में शामिल लोग बेरोजगार युवा थे, इन दिनों ऐसे लोगों को Gen Z कहा जाता है।

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बेरोजगारी है बड़ी समस्या

दोरजे कहते हैं, “सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है, युवा बड़ी मुश्किल से पढ़ाई पूरी करते हैं लेकिन उन्हें भी नौकरी नहीं मिल रही है। ठेके पर नौकरियां करने वाले लोगों को अपमानित किया जाता है।” बौद्ध नेता दोरजे कांट्रेक्ट सिस्टम पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान जो दिखा, वह लोगों के अंदर भरा हुआ गुस्सा है।

370 ने हमें 70 साल तक बचाया…

जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री रहे दोरजे ने कहा, “पहले हम अनुच्छेद 370 की आलोचना करते थे क्योंकि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के रास्ते में यह सबसे बड़ा रोड़ा था लेकिन इसने हमें 70 साल तक बचाया, तब हमारी जमीन सुरक्षित थी। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के लोग भी यहां नहीं आते थे लेकिन अब लद्दाख पूरे भारत के लिए खुल चुका है। हमारी कोई सुरक्षा नहीं है। बाहरी लोगों ने यहां जमीन खरीद ली हैं, होटल खुल गए हैं और यहां के स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी छीनी जा रही है।”

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चरवाहे कहां जाएंगे?

दोरजे से जब यह पूछा गया कि सोनम वांगचुक आखिर सोलर प्रोजेक्ट का विरोध क्यों कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “यह उस वक्त का प्रस्ताव है जब मैं जम्मू-कश्मीर की सरकार में मंत्री था। तब यह परियोजना 5000 मेगावाट की थी और अब जो नया प्रोजेक्ट है, वह 15000 गीगावॉट का है। हजारों एकड़ में इसे बनाया जाएगा। यह 45 किलोमीटर लंबा है और हमारी पश्मीना बकरियों की चारागाह की जमीन पर बन रहा है।” दोरजे सवाल उठाते हैं कि ऐसे में चरवाहे कहां जाएंगे?

बौद्ध नेता दोरजे ने कहा, “इस प्रोजेक्ट के लिए 45000 कर्मचारियों की जरूरत है जबकि इस पूरे इलाके की कुल आबादी 15000 है। इतने सारे लोग बाहर से आएंगे, वे यहां रहेंगे यहां के लोग प्रकृति के साथ और सीमित संसाधनों में रहते हैं, आप हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं।”

हमें क्या मिला?

दोरजे ने कहा, “हम 6 साल से सरकार से बातचीत कर रहे हैं, हमें क्या मिला, इतने सालों में हमें सिर्फ मूल निवासी का ही आरक्षण मिला, वह भी 100% नहीं है। हमारे मुख्य मुद्दे पर तो अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है।” दोरजे कहते हैं कि क्या इसमें 6 साल और लगेंगे, तब तक तो हम मर चुके होंगे।

जब दोरजे से सवाल पूछा गया कि सरकार आपकी मांगों को क्यों नहीं मान रही है, तो वह कहते हैं कि यह मामला भाजपा की विचारधारा से जुड़ा हुआ है, वे सब कुछ एक जैसा चाहते हैं। दोरजे ने कहा, “छठी अनुसूची से स्थानीय लोगों को अधिकार मिलते हैं और गांव और स्थानीय स्तर के कानूनों और पुराने रीति-रिवाजों की भी रक्षा होती है।”

गांवों के प्रमुखों को हटा दिया

दोरजे ने कहा, “जब हम जम्मू-कश्मीर का हिस्सा थे, तब भी हमारे पास छठी अनुसूची नहीं थी लेकिन कश्मीर प्रशासन ने कभी भी हमारी स्थानीय परंपराओं में दखल नहीं दिया। हमारे गांवों के प्रमुखों को को नौकरी से हटा दिया गया है। सरकार कहती है उनकी उम्र 60 साल से ज्यादा हो गई है। जम्मू-कश्मीर की सरकार कभी ऐसा नहीं करती थी, गांव के पुराने और बुजुर्ग लोग ही परंपराओं को जानते हैं।”

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