Kerala High Court: केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में सेशन कोर्ट के इस आदेश को खारिज दिया, जिसमें मादक पदार्थ मामले के एक आरोपी को काम के लिए विदेश जाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। जस्टिस वी.जी. अरुण ने याचिकाकर्ता की विजय माल्या तथा नीरव मोदी जैसे हाई-प्रोफाइल भगोड़ों के बीच गलत तुलना करने के लिए सेशन कोर्ट के जजों के आलोचना की। जो देश छोड़कर भाग गए और अभी तक फरार हैं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा कि विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे व्यक्तियों का उदाहरण देकर याचिकाकर्ता को रोजगार के लिए विदेश जाने का अवसर देने से इनकार करना अनुचित था। जज ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर इस तरह का तर्क गलत है।
बता दें, याचिकाकर्ता सूर्यनारायणन, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत दर्ज अपराध में चौथा आरोपी है। वर्तमान में उसके खिलाफ अतिरिक्त सेशन कोर्ट- III, त्रिशूर में मामला लंबित है। उसे 6 मार्च 2019 को जिला सत्र न्यायालय त्रिशूर द्वारा जमानत दी गई थी। बाद में, उन्होंने काम के लिए देश छोड़ने तथा वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति हेतु एक याचिका दायर की।
हालांकि, सेशन कोर्ट ने उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और विदेशों में फरार चल रहे अंतर्राष्ट्रीय भगोड़ों का उदाहरण दिया। सेशन कोर्ट के जज ने याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि यदि याचिकाकर्ता किसी विदेशी देश में फरार रहता है, तो कोर्ट/कानून लागू करने वाले प्राधिकारी के लिए उसे मुकदमे का सामना करने के लिए इस देश में वापस लाना बहुत मुश्किल है। हम नीरव मोदी और विजय माल्या को भी वापस नहीं ला सकते हैं, जिन्होंने कई हजार करोड़ रुपये की वित्तीय धोखाधड़ी की है और एक विदेशी देश में अपने जीवन का आनंद ले रहे हैं। फिर अगर याचिकाकर्ता वापस नहीं आता है तो उसे वापस लाने की जहमत कौन उठाता है?
सेशन कोर्ट के इस टिप्पणी से परेशान होकर याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि कथित अपराध के समय आरोपी की उम्र सिर्फ़ 18 साल थी। अब वह 24 साल का है और उसके फरार होने के डर से उसे विदेश में नौकरी करने का मौका न देना अनुचित है। हालांकि, सरकारी वकील ने अपराध की गंभीरता और फरार होने के जोखिम का हवाला देते हुए याचिका का विरोध किया।
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इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मामले की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी और सेशन कोर्ट ने बताया कि उनके समक्ष 4,000 से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से कम से कम 1,000 पांच वर्ष से अधिक पुराने हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि पुराने मामलों को प्राथमिकता देने के कारण याचिकाकर्ता का मुकदमा आगे नहीं बढ़ पाया है तथा उसके मामले के निपटारे के लिए कम से कम दो वर्ष और लगेंगे।
कोर्ट ने कहा कि केवल फरार होने की आशंका के कारण याचिकाकर्ता को विदेश में रोजगार पाने से रोकना अनुचित है। आदेश में कहा गया है कि इस कोर्ट की राय है कि यदि मामले को निपटाने के लिए दो वर्ष का समय चाहिए तो याचिकाकर्ता को विदेश में काम करके अपनी आजीविका चलाने के अवसर से वंचित करना अन्यायपूर्ण होगा।
इसलिए, हाई कोर्ट ने सेशन जज को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को विदेश यात्रा की अनुमति दे, बशर्ते कि उसकी अनुपस्थिति में उसका प्रतिनिधित्व वकील द्वारा किया जाए और वह सेशन कोर्ट द्वारा लगाई गई किसी भी अतिरिक्त शर्त का पालन करे।
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